/sootr/media/media_files/2025/04/05/ndEtOeHWogwViAVLw9sa.jpg)
Photograph: (the sootr)
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए महत्वपूर्ण टिप्पणी की और दिल्ली सरकार से तीखा सवाल किया कि "क्या ऐसा कोई कानून है जो कहता है कि बिना आधार लिंक किए बैंक खाता संचालित नहीं किया जा सकता?" यह सवाल उस वक्त उठा जब दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) के तहत निर्माण कार्यों पर लगी रोक के कारण प्रभावित हजारों निर्माण श्रमिकों में से 5,907 लोगों को अब तक निर्वाह भत्ता नहीं दिया जा सका, क्योंकि उनके बैंक खाते आधार से लिंक नहीं थे। यह मामला एम.सी. मेहता बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एवं अन्य की याचिका की सुनवाई के दौरान सामने आया, जिसमें दिल्ली एनसीआर में वायु प्रदूषण के प्रबंधन और उससे जुड़े प्रशासनिक कार्यों की निगरानी की जा रही है। दिल्ली सरकार द्वारा प्रस्तुत हलफनामे पर सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि किसी पात्र और सत्यापित श्रमिक को महज़ आधार लिंक न होने के कारण राहत राशि से वंचित नहीं किया जा सकता।
/sootr/media/media_files/2025/04/05/SlhmlkWLfiTZBxj8bzSo.jpeg)
दिल्ली सरकार ने कोर्ट में दिया हलफनामा
दिल्ली भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड (DBOCWW) की ओर से दायर किए गए हलफनामे में कहा गया कि 3 दिसंबर 2024 को हुई बोर्ड बैठक में यह निर्णय लिया गया था कि GRAP प्रतिबंधों से प्रभावित प्रत्येक पात्र निर्माण श्रमिक को 8,000 रुपये की निर्वाह सहायता दी जाएगी। इस निर्णय के तहत कुल 93,272 श्रमिकों को अब तक 74,61,76,000 रुपये वितरित किए जा चुके हैं। हालांकि, हलफनामे में यह भी साफ किया गया कि यह भुगतान केवल उन्हीं श्रमिकों को हुआ जिनके बैंक खाते आधार से जुड़े हुए थे। ऐसे में जिन श्रमिकों ने या तो आधार लिंक नहीं करवाया या तकनीकी कारणों से लिंक नहीं हो सका, उन्हें भत्ता नहीं मिल पाया। ऐसे लगभग 5,907 श्रमिक आज भी अपने हक के इंतजार में हैं।
यह भी पढ़ें... Weather Report : 19 राज्यों में 9 अप्रैल तक तूफान, बारिश और ओलावृष्टि की आशंका
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा “ऐसा कौन-सा कानून है?”
सुनवाई के दौरान जब दिल्ली सरकार के वकील ने यह तर्क दिया कि आधार लिंक न होने के कारण भुगतान नहीं किया जा सका, तब जस्टिस अभय ओका ने सीधा सवाल दागा कि "क्या कोई कानून ऐसा कहता है कि बिना आधार लिंक के बैंक खाता नहीं चल सकता? कौन-सा कानून है जो ऐसा प्रावधान करता है?" इसके बाद वकील ने स्वीकार किया कि ऐसा कोई स्पष्ट और अनिवार्य प्रावधान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की दलील को नकारते हुए दिल्ली सरकार को फौरन इस नीति पर पुनर्विचार करने और आधार न होने की स्थिति में भी पात्र लाभार्थियों को भत्ता प्रदान करने की दिशा में कदम उठाने का निर्देश दिया।
यह भी पढ़ें... भोपाल से लखनऊ के बीच जून से दौड़ेगी नई वंदे भारत एक्सप्रेस, जानें पूरी जानकारी
5,907 श्रमिक अब भी वंचित, डिजिटल प्रणाली बनी बाधा
सरकार की ओर से कहा गया कि लाभार्थियों को आधार लिंकिंग के लिए कई बार SMS और IVR कॉल के जरिए सूचित किया गया। इसके बावजूद जिनके खाते अब तक आधारकार्ड से लिंक नहीं हुए, उन्हें भुगतान नहीं किया जा सका। यह स्थिति बताती है कि डिजिटल आधारभूत ढांचे के अभाव में ज़मीनी स्तर पर कितने लोग सरकार की योजनाओं से वंचित रह जाते हैं। 25 मार्च 2025 तक 5,907 ऐसे श्रमिक चिह्नित किए गए हैं जो सभी मापदंडों पर पात्र पाए गए, लेकिन तकनीकी अड़चनों के कारण उन्हें उनका हक नहीं मिल पाया।
यह भी पढ़ें... IPL 2025: दिल्ली ने CSK को 25 रन से हराया
श्रमिकों की पहचान के लिए हुआ बड़ा सर्वे, पर अधूरी रही तस्वीर
दिल्ली सरकार ने दावा किया कि 15 सरकारी विभागों को पत्र भेजकर उनसे निर्माण गतिविधियों में लगे प्रभावित श्रमिकों की जानकारी मांगी गई। इनमें से केवल 6 विभागों ने जवाब दिया, और शेष 9 विभागों से कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला। इसके अलावा जिला श्रम अधिकारियों से भी ठेकेदारों और पंजीकृत प्रतिष्ठानों के माध्यम से जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया गया, जिससे 505 और श्रमिकों की पहचान हुई और उन्हें भत्ता वितरित किया गया।36 ट्रेड यूनियनों से भी संपर्क किया गया, जिनमें से केवल 3 यूनियनों ने जवाब देते हुए कुल 82 श्रमिकों की जानकारी दी। इनमें से 14 को ही निर्वाह भत्ते के लिए पात्र पाया गया और उन्हें 25 से 27 मार्च 2025 के बीच भुगतान किया गया।
यह भी पढ़ें... जबलपुर में बनेगा इंटरनेशनल क्रिकेट स्टेडियम, जमीन बेचकर निगम जुटाएगा पैसा
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व आदेश भी नजरअंदाज
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले 28 फरवरी 2025 को एक स्पष्ट आदेश में NCR के सभी राज्यों को यह सुनिश्चित करने को कहा था कि GRAP प्रतिबंधों के कारण काम से वंचित निर्माण श्रमिकों को मुआवज़ा दिया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया था कि यह भुगतान श्रम उपकर (labour cess) निधि से किया जाए, जो पहले 24 नवंबर 2021 के आदेश के तहत दिया गया था। अब जब सुप्रीम कोर्ट को यह बताया गया कि लगभग 6,000 श्रमिक केवल आधार लिंक न होने के कारण सहायता से वंचित हैं, तो सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार की जवाबदेही तय करने का साफ संकेत दिया है।
अगली सुनवाई में दिल्ली सरकार को देना होगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने सेंटर फॉर होलिस्टिक डेवलपमेंट को दिल्ली सरकार के हलफनामे पर विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है। इस मामले में अगली सुनवाई 17 अप्रैल को होगी अब सुप्रीम कोर्ट के सवालों से यह स्पष्ट है कि सरकार को अब यह स्पष्ट करना होगा कि योजनाओं के कार्यान्वयन में तकनीकी शर्तें गरीबों के हक में बाधा न बनें।
तकनीक की आड़ में किया इंसाफ से इनकार
यह मामला केवल आधार लिंकिंग की तकनीकी अड़चन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह उन नीतियों पर सवाल उठाता है, जो एक ओर गरीबों के नाम पर बनाई जाती हैं और दूसरी ओर उन्हीं की पहुंच से दूर रह जाती हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह हस्तक्षेप न केवल न्याय की दिशा में एक कदम है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि भविष्य में ‘डिजिटल बाध्यता’ को हक के रास्ते में दीवार नहीं बनने दिया जाएगा।