सुप्रीम कोर्ट ने सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की कम पेंशन पर जताया आश्चर्य

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि न्यायाधीशों ने अपना करियर सार्वजनिक सेवा के लिए समर्पित कर दिया है। जस्टिस गवई ने टिप्पणी में कहा कि यदि हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को 6 हजार रुपए और 15 हजार रुपए पेंशन मिल रही है तो यह चौंकाने वाला है...

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Jitendra Shrivastava
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सुप्रीम कोर्ट में एक सुनवाई के दौरान चौंकाने वाले खुलासा हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को मिलने वाली मामूली पेंशन पर आश्चर्य व्यक्त किया। जो कि 6 हजार रुपए से लेकर 15 हजार रुपए प्रति माह तक है। जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस पीके मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश द्वारा दायर याचिका पर विचार कर रही थी। इस याचिका पर उन्होंने मिलने वाली अपनी मात्र 15 हजार रुपए की पेंशन पर ध्यान दिलवाया था।

मिलने वाले लाभों में असमानता चिंता का विषय

याचिकाकर्ता जो हाईकोर्ट में पदोन्नति से पहले 13 वर्षों तक न्यायिक अधिकारी के रूप में कार्यरत थे। उन्होंने दावा किया कि उनकी पेंशन की गणना में उसकी पिछली सेवा पर विचार नहीं किया गया। जिन्होंने अपना करियर सार्वजनिक सेवा के लिए समर्पित कर दिया उन लोगों को लगता है कि न्यायाधीशों के लिए एक अन्यायपूर्ण स्थिति है। जस्टिस गवई ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि हमारे सामने हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश हैं, जिन्हें 6 हजार रुपए और 15 हजार रुपए पेंशन मिल रही है, तो यह चौंकाने वाला है। ऐसा कैसे हो सकता है? यह टिप्पणी विभिन्न राज्यों और हाईकोर्टों के न्यायाधीशों के बीच सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले लाभों में असमानता के बारे में बढ़ती चिंताओं को बताती है।

इस मामले पर अगली सुनवाई 27 नवंबर को 

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सेवानिवृत्ति के बाद की सुविधाएं एक हाईकोर्ट से दूसरे हाईकोर्ट में बहुत अलग-अलग होती हैं। कुछ राज्य दूसरों की तुलना में कहीं बेहतर लाभ प्रदान देते हैं। यह असंगतता न्यायाधीशों के सेवानिवृत्ति के बाद उनके इलाज में समानता और निष्पक्षता के बारे में सवाल उठाती है। पीठ ने इस मामले पर 27 नवंबर को आगे की सुनवाई निर्धारित की है, इसमें वे इन पेंशन व्यवस्थाओं की व्यवस्थाओं का पता लगाना जारी रखेंगे।

पेंशन लाभों में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए

इस संबंध में इस वर्ष की शुरुआत में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया था। इस फैसले में कहा था कि सेवानिवृत्त हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के लिए उनकी पिछली सेवा के आधार पर पेंशन लाभों की गणना में कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। चाहे वे बार से या जिला न्यायपालिका से पदोन्नत हुए हों। न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि सेवानिवृत्त न्यायाधीश की पेंशन में हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में उनके अंतिम वेतन को दर्शाया जाना चाहिए, चाहे उनकी पिछली भूमिका कुछ भी हो।

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