फिर बाहर आया जिन्नः वित्त मंत्री ने कहा, लाएंगे electoral bond स्कीम

वित्त मंत्री के बयान पर कांग्रेस ने बवाल काट दिया है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया साइट X पर लिखा कि यदि वे जीते और इलेक्टोरल बॉन्ड फिर से लेकर आए तो इस बार कितना लूटेंगे? रमेश ने पुराने मामलों का भी जिक्र किया है...

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Jitendra Shrivastava
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NEW DELHI. देश में लोकसभा चुनाव के बीच इलेक्टोरल बॉण्ड ( Electoral bond )  का जिन्न एक बार फिर बाहर आ गया है। पार्टियों में आरोप-प्रत्यारोप शुरू हो गए हैं। दरअसल, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा है कि हम सत्ता में आए तो इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को फिर से लाएंगे। इसके लिए पहले बड़े स्तर पर सुझाव मांगकर पूरा ड्रॉफ्ट तैयार करेंगे। वित्त मंत्री ने मीडिया से बातचीत करते हुए यह दावा किया है। इधर, वित्त मंत्री के बयान पर कांग्रेस ने बवाल काट दिया है।

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोशल मीडिया साइट X पर लिखा कि यदि वे जीते और इलेक्टोरल बॉन्ड फिर से लेकर आए तो इस बार कितना लूटेंगे? रमेश ने पुराने मामलों का भी जिक्र किया है। इधर, कपिल सिब्बल ने भी इस मामले में बयान दिया। बोले, सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि पारदर्शिता नहीं थी। अब समस्या है कि उनके पास इस चुनाव के लिए तो पैसा है, लेकिन वे ये भी जानते हैं कि यदि हार गए तो भी पैसे की जरूरत होगी। मैं मोहन भागवत से पूछना चाहता हूं कि वे इस मुद्दे पर खामोश क्यों हैं।

क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड की ABCD

आपको ये तो पता ही है कि चुनाव में राजनीतिक पार्टियां करोड़ों, अरबों रुपए खर्च करती हैं। अब ये पैसा आता कहां से है? तो पार्टियों को दो तरह से चंदा मिलता है। एक तो पार्टियां सीधे आम जन और अपने नेताओं से चंदा लेती हैं। इसे क्राउड फंडिंग भी कह सकते हैं। अमूमन इसमें चंदे की रकम कम होती है। जैसे आपने देखा होगा कि चुनाव से पहले बीजेपी ने डोनेशन लिया था। कांग्रेस भी ऐसा कर चुकी है। दूसरी पार्टियां भी यही तरीका अपनाती हैं। अब आपके मन में सवाल होगा कि हजार, दो हजार रुपए से क्या होगा? तो राजनीतिक पार्टियों को लाखों, करोड़ों वाला चंदा इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए मिलता है। दरअसल, इलेक्टोरल बॉन्ड पार्टियों को चंदा (डोनेशन) देने का एक सिस्टम है। यह एक तरह से वचन पत्र की तरह होता है। 

कब चलन में आया यह बॉन्ड? 

चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम सबसे पहले देश के सामने 2017 में आई थी। 2017 के बजट में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इसे पेश करते हुए पूरा ब्यौरा दिया था। इसके बाद भारत सरकार ने जनवरी 2018 में इसे कानूनन लागू कर दिया। आपको बता दें कि इलेक्टोरल बॉन्ड एक तरह का प्रॉमिसरी नोट होता है। इसे बैंक नोट भी कहा जाता है। इस बॉन्ड को कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है।

इलेक्टोरल बॉन्ड मिलता कहां है?

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में रोक लगा रखी है। इसके पहले चुनावी बॉन्ड स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनी हुई शाखाओं में मिल रहे थे। खरीदने वाला इस बॉन्ड को अपनी पसंद की पार्टी को डोनेट कर सकता है। चंदा देने के इच्छुक लोग 1 हजार रुपए से लेकर 1 करोड़ रुपए तक के बॉन्ड खरीद सकते हैं। इसके लिए उन्हें बैंक को अपनी KYC देनी होती थी। जिस भी राजनीतिक पार्टी को ये बॉन्ड डोनेट किए जाते हैं, उसे पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम 1 प्रतिशत वोट मिलना जरूरी होता है। 

पार्टियों को रुपए कैसे मिल जाते हैं?

दानदाता जब किसी पार्टी को बॉन्ड देता है तो उसके 15 दिन के भीतर संबंधित पार्टी को इसे चुनाव आयोग से वैरीफाई कराना होता है। इसके बाद बॉन्ड को बैंक अकाउंट से कैश करवा लिया जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान पूरी तरह गुप्त रखी जाती है। इसे खरीदने वाले व्यक्ति को टैक्स में छूट भी मिलती है।  

इसे कब खरीदा जा सकता है?

इलेक्टोरल बॉन्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर के महीने में जारी किए जाते हैं। यानी साल में चार बार 10 दिनों के लिए ये बॉन्ड खरीदने के लिए उपलब्ध कराए जाते हैं। इसे भारतीय नागरिक ही खरीद सकते हैं। साथ ही दूसरी खास बात यह है कि कोई व्यक्ति या संस्था कितनी भी राशि के बॉन्ड कितनी भी बार खरीद सकती है। 

इलेक्टोरल बॉन्ड पर विवाद क्या है?

इसे समझने के लिए आपको थोड़ा पीछे जाना होगा। दरअसल, 2017 में अरुण जेटली ने बॉन्ड स्कीम पेश करते वक्त यह दावा किया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। काले धन पर रोक लगेगी। वहीं, आलोचकों का कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, ऐसे में ये देश में चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया भी बन सकते हैं।

कब-कब कोर्ट पहुंचा मामला?

बॉन्ड स्कीम को 2017 में चुनौती दी गई, लेकिन अदालत में सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी राजनीतिक पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई 2019 तक चुनावी बॉन्ड से जुड़ी जानकारी बंद लिफाफे में चुनाव आयोग को सौंपे। हालांकि, तब कोर्ट ने इस स्कीम पर कोई रोक नहीं लगाई थी। बाद में दिसंबर 2019 में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इसमें दावा किया गया कि बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया है। अब एक बार फिर इस बॉन्ड पर विवाद खड़ा हुआ है। 

चुनाव से पहले उठा था मुद्दा 

देश में लोकसभा चुनाव से पहले सुप्रीम कोर्ट ने करीब 6 साल पुरानी इलेक्टोरल बॉन्ड योजना पर रोक लगा दी थी। अदालत का तर्क था कि यह योजना असंवैधानिक है। इलेक्टोरल बॉन्ड की गोपनीयता बनाए रखना असंवैधानिक है। यह योजना सूचना के अधिकार का भी उल्लंघन है।  

किस पार्टी को कितना चंदा मिला?

अब बताते हैं कि किस पार्टी को कितना चंदा मिला है। चुनाव आयोग की वेबसाइट पर जारी रिपोर्ट की मानें तो बीजेपी ने सबसे ज्यादा चंदा लेने वाली पार्टी है। आंकड़ों के अनुसार, 12 अप्रैल 2019 से 11 जनवरी 2024 तक बीजेपी को सबसे ज्यादा 6,060 करोड़ रुपए चंदे के रूप में मिले हैं। तृणमूल कांग्रेस दूसरे पायदान पर है। उसे 1,609 करोड़ का चंदा मिला है। वहीं, तीसरे नंबर पर कांग्रेस है, जिसने कुल 1,421 करोड़ का चंदा पाया है। यहां खास यह है कि किस कंपनी ने किस पार्टी को कितना चंदा दिया है, इसका सूची में जिक्र नहीं किया गया है।

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