प्रताप ने कभी मुगलों की अधीनता नहीं मानी, 208 किलो का वजन उठाकर युद्ध लड़ते थे, हल्दीघाटी में घायल चेतक ने ऐसे बचाई थी जान

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Pratibha Rana
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प्रताप ने कभी मुगलों की अधीनता नहीं मानी, 208 किलो का वजन उठाकर युद्ध लड़ते थे, हल्दीघाटी में घायल चेतक ने ऐसे बचाई थी जान

BHOPAL. भारतीय इतिहास में महाराणा प्रताप का अलग ही स्थान है। मुगल सम्राट अकबर ने कई राजपूत राजाओं को अपने अधीन कर लिया था, लेकिन वो महाराणा प्रताप को अपने अधीन नहीं कर पाया। मई 1540 में पैदा हुए महाराणा प्रताप उदय सिंह और रानी जयवंता बाई की संतान थे। राणा प्रताप की जयंती पर मध्य प्रदेश समेत कई जगहों पर कार्यक्रम आयोजित हैं। आज हम आपको महाराणा प्रताप की वीरता और पराक्रम के बारे में बता रहे हैं....





208 किलो का वजन उठाकर युद्ध लड़ते थे





महाराणा प्रताप ने अपनी मां से ही युद्ध कौशल सीखा था। महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम से पुकारा जाता था। प्रताप की वीरता के साथ उनके घोड़े चेतक को भी याद किया जाता है। महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो वजन का था और उनके छाती का कवच 72 किलो का था। उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों का वजन मिलाकर 208 किलो था। महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और लंबाई 7 फीट 5 इंच थी। 





सबसे ऐतिहासिक लड़ाई थी- हल्दीघाटी का युद्ध





देश के इतिहास में दर्ज हल्दीघाटी का युद्ध आज भी पढ़ा जाता है। राजा महाराणा प्रताप और मुगल बादशाह अकबर के बीच लड़ा गया ये युद्ध बहुत ही विनाशकारी था। महाराणा प्रताप के पास चेतक नाम का एक घोड़ा था। चेतक की फुर्ती, रफ्तार और बहादुरी की कई लड़ाइयां जीतने में अहम भूमिका रही। हल्दीघाटी युद्ध में उसका भी निधन हो गया था। बता दें, प्रताप ने मुगलों से कई लड़ाइयां लड़ीं थी। लेकिन 1576 में हुए हल्दीघाटी युद्ध में करीब 20 हजार सैनिकों के साथ महाराणा प्रताप ने 80 हजार मुगल सैनिकों का सामना किया। हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के पास सिर्फ 20000 सैनिक थे और अकबर के पास 85000 सैनिक थे। इस युद्ध में प्रताप का घोड़ा चेतक जख्मी हो गया था। इस युद्ध के बाद मेवाड़, चित्तौड़, गोगुंडा, कुंभलगढ़ और उदयपुर पर मुगलों का कब्जा हो गया था। अधिकांश राजपूत राजा मुगलों के अधीन हो गए लेकिन महाराणा ने कभी भी स्वाभिमान को नहीं छोड़ा। उन्होंने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार नहीं की और कई सालों तक संघर्ष किया।  





हमेशा दो तलवार रखते थे प्रताप 





महाराणा प्रताप अपने पराक्रम और शौर्य के लिए पूरी दुनिया में मिसाल के तौर पर जाने जाते हैं। एक ऐसा राजपूत सम्राट जिसने जंगलों में रहना पसंद किया लेकिन कभी विदेशी मुगलों की दासता स्वीकार नहीं की। उन्होंने देश, धर्म और स्वाधीनता के लिए सब कुछ त्याग कर दिया। महाराणा प्रताप हमेशा दो तलवार रखते थे। वे एक अपने लिए और दूसरी निहत्थे दुश्मन के लिए रखते थे। प्रताप जिस घोड़े पर बैठते थे वह घोड़ा दुनिया के सर्वश्रेष्ठ घोड़ों में से एक था। 





26 फीट का नाला एक छलांग में लांघ गया था चेतक





प्रताप का घोड़ा चेतक भी उन्हें जीत दिलाने के लिए अंतिम समय तक लड़ता रहा। उसके मुंह के आगे हाथी कि सूंड लगाई जाती थी। जब मुगल सेना महाराणा प्रताप के पीछे लगे थी, तब चेतक प्रताप को अपनी पीठ पर लिए 26 फीट के उस नाले को लांघ गया, जिसे मुगल पार ना कर सके।





ना दुश्मनों के आगे झुके, ना समझौता किया





महाराणा प्रताप उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। उनके कुल देवता एकलिंग महादेव हैं। मेवाड़ के राणाओं के आराध्यदेव एकलिंग महादेव का मेवाड़ के इतिहास में बहुत महत्व है। एकलिंग महादेव का मंदिर उदयपुर में स्थित है। प्रताप ने अपने राज्य को वापस पाने के लिए लगातार संघर्ष किया। वे दुश्मन के आगे कभी झुके नहीं और किसी कीमत पर समझौता नहीं किया। कहा जाता है कि अकबर ने प्रताप से समझौते के लिए शान्ति दूतों को भेजा था, ताकि शांतिपूर्ण तरीके से सब खत्म हो जाए। प्रताप ने हर बार यही कहा कि राजपूत योद्धा अधीनता कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता। 



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