BHOPAL. आज जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर यानी भगवान महावीर की जयंती है। हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को महावीर जयंती के रुप में मनाया जाता है। 3 अप्रैल 2023 को भगवान महावीर का 2563वीं जयंती मनाई जा रही है। भगवान महावीर ने सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अस्तेय और ब्रह्मचर्य के पंचशील सिद्धांत बनाए थे। दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म को श्रमणों का धर्म कहा जाता है। जैन धर्म का संस्थापक ऋषभ देव को माना जाता है, जो जैन धर्म के पहले तीर्थंकर थे और भारत के चक्रवर्ती सम्राट भरत के पिता थे। भारत में जैन धर्म 6वां सबसे बड़ा धर्म है। लक्षद्वीप को छोड़कर देश में हर राज्य में जैन धर्मावलंबी हैं।
'वज्जि साम्राज्य' में जन्मे थे महावीर
भगवान महावीर का जन्म 540 ईसा पूर्व में 'वज्जि साम्राज्य' में कुंडग्राम के राजा सिद्धार्थ और लिच्छवी की राजकुमारी त्रिशला के यहां हुआ था। वज्जि संघ आधुनिक बिहार में वैशाली क्षेत्र के अंतर्गत आता है। भगवान महावीर 'इक्ष्वाकु वंश' से संबंधित थे। इनके बचपन का नाम वर्धमान था। 30 साल की उम्र में इन्होंने राजपाट त्यागकर संन्यास धारण कर अध्यात्म की राह पर चल दिए थे। जब वर्धमान को ज्ञान मिला, तब उनकी उम्र 42 साल थी। जुम्भिक ग्राम (वर्तमान जमुई, बिहार) में ऋजुपालिका नदी के तट पर वर्धमान को ज्ञान मिला। इसके बाद वे जिन (इंद्रियों पर नियंत्रण के कारण) कहलाए। तप करते हुए वे डरे नहीं, इसलिए महावीर कहलाए। 468 ईसा पूर्व में पावापुरी में उन्हें निर्वाण (जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति) प्राप्त हुआ। महावीर 72 साल जीवित रहे।
इस तरह 'कैवल्य' की प्राप्ति हुई
वर्धमान के बड़े भाई का नाम नंदिवर्धन और बहन का नाम सुदर्शना था। वर्धमान का बचपन राजमहल में बीता। 8 बरस के हुए, तो उन्हें पढ़ाने, शिक्षा देने, धनुष आदि चलाना सिखाने के लिए शिल्प शाला में भेजा गया था। वर्धमान ने अपार धीरज के साथ अपनी तपस्या में 12 वर्ष 5 माह और 15 दिन तक लीन रहे। 13 वर्ष में वैशाखी की दसवीं के दिन उन्हें कैवल्य अर्थात ज्ञान प्राप्त हुआ और वे केवलिन कहलाए।
भगवान महावीर का विवाह
दिगम्बर परंपरा के अनुसार भगवान महावीर को बाल ब्रह्मचारी बताया गया है। तो वहीं श्वेताम्बर परंपरा के अनुसार महावीर का विवाह यशोदा नामक लड़की के साथ हुआ था। दोनों की एक पुत्री प्रियदर्शिनी थी, जिसका विवाह राजकुमार जमाली के साथ हुआ था।
कैसे पड़ा महावीर नाम
उज्जयिनी नगरी के अतिमुक्तक नामक शमशान में वर्धमान ध्यान में विराजमान थे। उन्हें देखकर महादेव नामक रुद्र ने उनके धैर्य और तप की परीक्षा ली। महादेव रुद्र रात्रि के समय महावीर के सामने अनेक बड़े-बड़े वेतालों का रूप धारण करके ध्वनि उत्पन्न करने लगे, लेकिन वे महावीर को ध्यान से नहीं भटका पाए। इंद्रियों पर विजय प्राप्त करने से उनका नाम 'जिन' और 'महावीर' पड़ा।
भगवान महावीर के शिष्य
भगवान महावीर के हजारों शिष्य थे जिनमें राजा-महाराजा और अनेक गणमान्य नागरिक थे, लेकिन कुछ प्रमुख शिष्य भी थे जो हमेशा उनके साथ रहते थे। महावीर के निर्वाण के बाद जैन संघ का नायकत्व 3 शिष्यों ने संभाला। गौतम, सुधर्म और जम्बू। इनका काल क्रमशः 12, 12 और 38 वर्ष अर्थात कुल 62 वर्ष तक रहा। इसके बाद ही आचार्य परम्परा में भेद हो गया। श्वेतांबर और दिगंबर पृथक-पृथक परंपराएं हो गईं।
महावीर की शिक्षाएं
- सत्य- हमेशा सच बोलना, सच का साथ देना।
जैन धर्म में कितने तीर्थंकर हुए?
जैन धर्म में 24 तीर्थंकर हुए हैं। पहले तीर्थंकर ऋषभदेव और 24वें महावीर हैं। 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ हैं। हिंदू और जैन ग्रंथों में जैन तीर्थंकर नेमिनाथ (अरिष्टनेमि) को कृष्ण का संबंधी बताया गया है।
जैन धर्म क्या है?
बौद्ध धर्म की तरह जैन धर्म पूरी तरह निरीश्वरवादी (ईश्वर को ना मानने वाला) नहीं है। जैन ईश्वर को मानते हैं, लेकिन उनका स्थान तीर्थंकरों से नीचे है। हां, जैन धर्म, बौद्ध धर्म की तरह अनात्मवादी है।
क्या कभी बुद्ध और महावीर मिले थे?
बुद्ध और महावीर समकालीन थे। बुद्ध 563 ईसा पूर्व से 483 ईसा पूर्व तक (80 साल) रहे। बुद्ध लुंबिनी (नेपाल की तराई) में पैदा हुए और कुशीनारा (वर्तमान कुशीनगर, यूपी) में महानिर्वाण हुआ। बुद्ध और महावीर का कार्यक्षेत्र बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाके रहे। ऐतिहासिक स्रोतों के मुताबिक, एक बार दोनों (ज्ञान मिलने के बाद) वैशाली में आमने-सामने आए थे, दोनों ने एक-दूसरे को देखा और मुस्कुराकर निकल गए।
मगध के पहले सम्राट और महावीर आपस में जीजा-साले थे
मगध का पहला वंश हर्यक वंश था। इसके पहले सम्राट बिंबिसार थे। वैशाली के राजा चेटक की बेटी चेल्लना थी। चेल्लना की शादी बिंबिसार से हुई थी। महावीर की मां का नाम त्रिशला था। त्रिशला, चेटक की बहन थीं यानी चेटक, महावीर के मामा हुए। चेल्लना, महावीर के मामा की बेटी यानी ममेरी बहन हुई। इस लिहाज से बिंबिसार और महावीर जीजा-साले हुए। हालांकि, बिंबिसार ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया था। मगध में हर्यक के बाद कालाशोक वंश, नंद और इसके बाद मौर्य वंश की स्थापना हुई थी।