देश की 47 एसटी सीटों के साथ-साथ अनेक सीटों पर निर्णायक हैं आदिवासी वोट, आम चुनाव के पहले इन्हें रिझाने में लगी पार्टियां

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Chandresh Sharma
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देश की 47 एसटी सीटों के साथ-साथ अनेक सीटों पर निर्णायक हैं आदिवासी वोट, आम चुनाव के पहले इन्हें रिझाने में लगी पार्टियां

NEW DELHI. देश में सुरक्षित सीटों का आंकड़ा 131 है जिसमें से 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित हैं, वहीं झारखंड, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में आदिवासी वोट निर्णायक स्थिति में हैं तो पूर्वोत्तर के राज्यों में तो इनकी तादाद सर्वाधिक है। ऐसे में 2024 में होने जा रहे आम चुनाव में कोई भी दल इस विशाल तबके को नजरअंदाज नहीं करता। मौजूदा हालात की बात करें तो बीजेपी इस आदिवासी तबके को रिझाने हरसंभव प्रयास कर रही है। एमपी और छत्तीसगढ़ में वोटिंग के 2 दिन पहले ही जनजातीय गौरव दिवस पर पीएम मोदी ने झारखंड में अति पिछड़े और कमजोर आदिवासी समुदाय के समग्र विकास के लिए 24 हजार करोड़ रुपए की योजनाओं की घोषणा की है।

लगातार पैठ बना रही बीजेपी

भारतीय जनता पार्टी की बात की जाए तो साल 2014 के आम चुनाव में बीजेपी ने 131 सुरक्षित सीटों में से 67 पर जीत हासिल की थी। 2019 में इसमें और इजाफा किया और 77 सुरक्षित सीटें अपने खाते में कर ली। पार्टी 2024 में इस आंकड़े में और इजाफा चाहती है। हालांकि विधानसभा चुनावों में बीजेपी अपना प्रदर्शन नहीं दोहरा पाती, जो उसकी चिंता का सबब है। पार्टी इसी कारणवश दलित और आदिवासी हितग्राहियों संबंधी योजनाओं का जमकर प्रचार प्रसार करती है और पीएम मोदी अपने हर भाषण में दलितों और आदिवासियों का जिक्र जरूर करते हैं।

कभी इन पर कांग्रेस का था एकछत्र राज

किसी समय आदिवासी वोटों पर कांग्रेस का एकछत्र राज होता था। दूसरी तरफ बीजेपी ने विकास की योजनाओं के साथ-साथ आदिवासियों को आरएसएस के जरिए हिंदुत्व के नजदीक लाने के प्रयास किए। बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस का नाम दिया। उधर देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति के पद पर पहले दलित समुदाय के रामनाथ कोविंद तो उनके बाद आदिवासी समुदाय से पहली मर्तबा द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्रपति भी बनाया गया।

बीजेपी ने मजबूत की पैठ

2014 के आम चुनाव में बीजेपी ने 67 सुरक्षित सीटों पर जीत हासिल की थी, इसमें 40 सीटें अनुसूचित जाति और 27 सीटें अनुसूचित जनजाति की थीं। वहीं 2019 में बीजेपी और उसके सहयोगियों ने 77 सुरक्षित सीटों पर कब्जा किया। इसमें 31 सीटें अनुसूचित जनजाति की थीं। बीजेपी अपनी इस उत्तरोत्तर प्रगति को इन चुनावों में और बढ़ाना चाहती है।

राहुल कर रहे वनवासी और आदिवासी का भेद

इधर कांग्रेस लगातार बीजेपी को आदिवासी विरोधी करार देने का प्रयास कर रही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी आदिवासियों को आदिवासी और वनवासी का भेद समझाते चले जा रहे हैं। कांग्रेस बीजेपी पर आदिवासी समुदाय का अपमान करने, उनके हितों से जुड़े कानून कमजोर करने के आरोप मढ़ रही है। मणिपुर में हुई हिंसा को भी काफी जोरशोर से उठाने का प्रयास किया गया है। सीएनटी/एसने वाले झारखंड सरकार के बिल को गवर्नर की मंजूरी न मिलने और बिल को लटकाने, वन संरक्षण नियम 2022 में वन भूमि अभियोजन में ग्राम सभा के अधिकार को खत्म करना जैसी घटनाओं को लेकर कांग्रेस केंद्र सरकार को घेर रही है।

आदिवासी भी हो रहे गोलबंद

इधर आम चुनाव के मद्देनजर आदिवासी समाज भी एकजुट होने का प्रयास कर रहा है। झारखंड में पिछले दिनों आयोजित कार्यक्रम में आदिवासियों के संगठन अखिल भारतीय जनजातीय संगठन आदिवासी सेंगेल अभियान (एएसए) आदिवासी समुदाय के लिए सरना धर्म कोड की मांग की। संगठन ने ऐलान किया है कि संसद के शीतकालीन सत्र में बीजेपी या कांग्रेस में से जो भी पार्टी सरना धर्म कोड की बात करेगी, आने वाले लोकसभा चुनाव में आदिवासी समुदाय उसी को वोट देगा। इतना ही नहीं अगर आदिवासियों को उनकी धार्मिक आजादी नहीं मिली तो आगामी 30 दिसंबर को भारत बंद का भी ऐलान किया गया है। दूसरी ओर आंध्र प्रदेश में पिछले दिनों आदिवासी शिक्षकों ने एक बड़ा धरना दिया, उनकी मांग थी कि आंध्र प्रदेश में आदिवासियों के लिए आरक्षित इलाकों में गैर आदिवासी टीचरों की नियुक्ति की जा रही है।

यह है आदिवासी वोट की ताकत

पूरे देश में आदिवासियों की अच्छी खासी तादाद है, लेकिन मतदाताओं की तादाद में ये ओबीसी, मुसलमान और दलितों के बाद चौथे नंबर पर आते हैं। अंतिम जनगणना 2011 के मुताबिक देश में आदिवासियों की भागीदारी 8.6 थी। हालांकि लक्षद्वीप में 94.8 फीसदी, मिजोरम में 94.4, नागालैंड में 86.5, मेघालय में 86.1, अरुणाचल प्रदेश में 68.8 फीसदी आबादी थी। मध्य प्रदेश में 14.7, महाराष्ट्र में 10.10, ओडिशा में 9.20, राजस्थान में 8.90, गुजरात में 8.60, झारखंड में 8.60 और छत्तीसगढ़ में 7.50 फीसदी आदिवासी आबादी है।

Everyone needs tribal votes Modi government is busy in wooing Congress is busy in provoking tribal voters. आदिवासी वोट की सबको जरूरत मोदी सरकार रिझाने में जुटी कांग्रेस भड़काने में लगी आदिवासी वोटर्स