Bangalore. चंद्रमा पर साफ्ट लैंडिंग के बाद से लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान वैज्ञानिक प्रयोग में जुटे हुए हैं। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने शनिवार (26 अगस्त) को बताया कि चंद्रयान-3 मिशन के तीन लक्ष्यों में से दो पूरे हो चुके हैं। तीसरे उद्देश्य के तहत वहां वैज्ञानिक प्रयोग किए जा रहे हैं। इसरो ने बताया कि प्रज्ञान रोवर अगले 11 दिनों में लैंडर के आसपास आधा किमी घूमेगा। ये एक सेमी प्रति सेकंड की रफ्तार से चल रहा है और अपने आसपास की चीजों को स्कैन करने के लिए नेविगेशन कैमरों का इस्तेमाल करता है। तीसरे उद्देश्य के तहत प्रज्ञान रोवर दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रमा के रहस्यों की खोज में शिव शक्ति केंद्र के आसपास घूम रहा है। इसरो अब तक मून मिशन की 10 फोटो और चार वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफार्म ‘एक्स’ पर शेयर कर चुका है।
चंद्रयान-3 मिशन के ये हैं 3 उद्देश्य
- चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग।
चांद की सतह पर रोवर को चलाने में कामयाब रहे।
चांद की सतह पर वैज्ञानिक परीक्षण फिलहाल चल रहा है।
राहत : सभी पेलोड सामान्य तरीके से काम कर रहे हैं।
अब तक क्या-क्या हुआ....
- 21 अगस्त : लैंडिंग से दो दिन पहले चंद्रयान-3 ने चांद के साउथ पोल की कुछ तस्वीरें जारी की थीं। ये तस्वीरें सेफ लैंडिंग सुनिश्चित करने के लिए ली गई थीं। इससे देशभर में उत्साह बढ़ गया था।
23 अगस्त : चंद्रयान-3 के लैंडर माड्यूल (एलएम) ने 23 अगस्त की शाम छह बजकर चार मिनट पर चंद्रमा की सतह को चूम कर इतिहास रचा था। भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला विश्व का पहला राष्ट्र बन गया।
24 अगस्त : इस दिन जारी किए गए एक वीडियो में चांद की सतह पर शुरुआत में लहरों जैसा नजारा दिखा, पास पहुंचते ही वहां काफी सारे बड़े और छोटे गड्ढे नजर आए।
25 अगस्त : रोवर के बाहर आने का वीडियो, चांद की मिट्टी पर अशोक स्तंभ की छाप छोड़ी
प्रज्ञान रोवर के पीछे के दो पहियों पर भारत के राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ और इसरो के लोगो के इंडेंट हैं। जैसे ही रोवर चंद्रमा पर उतरा तो उसके पहियों ने चांद की मिट्टी पर इन प्रतीकों की छाप छोड़ी।
26 अगस्त: चांद पर लैंडर जिस जगह उतरा उसके आस-पास रोवर चक्कर लगा रहा है। लैंडिंग चांद के साउथ पोल पर हुई है। दरअसल, चंद्रमा के पोलर रीजन दूसरे रीजन्स से काफी अलग हैं। यहां कई हिस्से ऐसे हैं जहां सूरज की रोशनी कभी नहीं पहुंचती और तापमान -200 डिग्री सेल्सियस से नीचे तक चला जाता है। ऐसे में वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यहां बर्फ के फॉर्म में पानी अभी भी मौजूद हो सकता है।