प्रीतम लोधी के बहाने नए मुद्दे पर मध्यप्रदेश में उमा भारती की एंट्री, बीजेपी के लिए बढ़ी मुश्किलें !

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The Sootr CG
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प्रीतम लोधी के बहाने नए मुद्दे पर मध्यप्रदेश में उमा भारती की एंट्री, बीजेपी के लिए बढ़ी मुश्किलें !

हरीश दिवेकर, BHOPAL. मध्यप्रदेश की सियासत में वापसी के लिए छटपटा रहीं उमा भारती लंबे समय से शराबबंदी के मुद्दे पर अपनी धमक दिखाती रहीं। अपनी मौजूदगी का अहसास कराने के लिए उमा ने कभी नर्म तो कभी गर्म तेवर भी दिखाए। इतना ही नहीं शराब की दुकान पर जाकर पत्थर और गोबर फेंकने से लेकर धरना तक दिया लेकिन उमा का पल में तोला, पल में माशा वाला पैंतरा काम नहीं आया। हर बार शिव का आश्वासन लेकर चुप बैठना पड़ा लेकिन अब उमा भारती के हाथ तुरूप का इक्का लग गया है। वो इक्का है प्रीतम लोधी।



मध्यप्रदेश की सियासत में उबाल लाए प्रीतम



बीजेपी से बाहर होने के बाद प्रीतम ने एमपी की सियासत और खासतौर से बुंदेलखंड और ग्वालियर-चंबल की सियासत में जो उबाल लाया है। उसमें उमा भारती भी भविष्य की उम्मीदें देख रही हैं। जो प्रीतम लोधी कभी उमा भारती के आसपास चक्कर काटते थे। उनके समर्थकों की कतार में शुमार रहते थे। क्या अब उसी प्रीतम लोधी के सहारे उमा भारती मध्यप्रदेश की सत्ता में नया अवसर तलाश रही हैं। क्या प्रीतम लोधी की नाव पर सवार होकर उमा भारती प्रदेश में एंट्री लेने में सफल हो पाएंगी। इन सवालों के ख्याल से ही सत्ता के गलियारे हिले हुए हैं।



मध्यप्रदेश में वापसी करना चाहती हैं उमा भारती



उमा भारती किस शिद्दत से एमपी में वापसी करना चाहती हैं इससे कोई अनजान नहीं है। प्रदेश में जल्द ही चुनाव होने हैं। उमा भारती के इरादे साफ नजर आते हैं कि वो यहां से दोबारा चुनाव लड़ने का मौका मिला तो छोड़ेंगी नहीं। कोशिश ये भी हो सकती है कि अपने कुछ करीबियों को भी विधानसभा चुनाव का टिकट दिलवा सकें। इस कोशिश में उमा भारती शराबबंदी के मुद्दे को जब मौका मिला तब हवा देती रहीं लेकिन उनकी कोशिश को न कभी आलाकमान का साथ मिला और न ही कभी शिवराज सिंह चौहान ने तवज्जो दी। उल्टा कभी आलाकमान तो कभी संघ से फटकार मिलने की खबरें जरूर मिलती रहीं।



उमा भारती के हाथ लगा ट्रंप कार्ड



अब लगता है उमा भारती की झोली में खुद ही मुद्दा आकर गिर गया है। ये मुद्दा है प्रीतम लोधी के बयान के बाद उठे बवंडर और अब एससीएसटी और ओबीसी वोटर्स का बड़ा जनसमर्थन। इस पूरे मसले को कैश करने में उमा भारती भी देरी करने के मूड में नहीं हैं। हां बोल जरा नापतोल कर रही हैं। ये इल्म होगा शायद की ज्यादा तेजी उन्हें तो उभरने नहीं देगी मुद्दे को भी ठंडा कर देगी। इसलिए ये फायर ब्रांड नेत्री ने अपनी फायर को खुद पर हावी नहीं होने दिया। बीजेपी उमा भारती के फायर ब्रांड तेवरों से अनजान नहीं हैं जो उमा भारती के प्रदेश में आते ही एक्टिव हो गई है। इधर पता चला कि उमा भारती मीडिया के जरिए जनता से मुखातिब हो जाएंगी उससे पहले खुद ही प्रेस कॉन्फ्रेंस करवा डाली। वो भी ऐसे वक्त में जब वो प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं भी होती तो भी कोई सवाल उठने वाले नहीं थे।



प्रीतम लोधी के आसपास घूम रहा सारा माजरा



सारा माजरा प्रीतम लोधी के आसपास घूम रहा है। अपने आपत्तिजनक बयान और फिर उस बयान पर माफी मांगने के बाद प्रीतम लोधी जिस तरह से मास लीडर बनकर उभरे हैं, वो बीजेपी की रातों की नींद उड़ाने के लिए काफी है। हालांकि इस मसले पर बीजेपी ने खामोश रहकर ये जताने की पूरी कोशिश तो की ही है कि प्रीतम लोधी उनके लिए कोई मायने नहीं रखता। उमा भारती की सिफारिश पर ही प्रीतम को विधानसभा चुनाव का टिकट मिला था। भारतीय जनशक्ति बनाकर उमा भारती लोधी समाज का जो समर्थन हासिल नहीं कर पाई थीं। प्रीतम लोधी वो हासिल करते नजर आ रहे हैं। अब उमा भारती बहती गंगा में हाथ धोना चाहें तो कोई मुश्किल नहीं होगा। हवा का रुख फिलहाल उनके पक्ष में नजर आ रहा है।



उमा की दस्तक से सत्ता और संगठन सक्रिय



जब तक मामला प्रीतम लोधी तक सीमित था। भीड़ को अनदेखा करके बीजेपी खामोश रही लेकिन जैसे ही उमा भारती की दस्तक हुई। सत्ता और संगठन का पूरा तंत्र सक्रिय हो गया। पिछड़ों की हिमायती होने का पूरा श्रेय कहीं उमा न ले जाएं, इसे देखते हुए आनन-फानन में आगे किया गया पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष गौरी शंकर बिसेन को।



हर शब्द तोलकर बोल रहीं उमा



प्रीतम लोधी के मसले पर उमा भारती का हर शब्द तोल-मोलकर बोला हुआ है। हर बात बड़ी किफायत से खर्च की गई है। उमा भारती तकरीबन आधा घंटा मीडिया से मुखातिब रहीं। यूं हर मुद्दे पर वो हमेशा मुखर रही हैं लेकिन प्रीतम लोधी से जुड़े सवाल पर जिस चतुराई से उन्होंने अपने इरादे छुपाएं हैं वो काबिले तारीफ हैं। इस मामले में उमा भारती वैसे भी ऐसे सीसॉ पर सवार हैं कि जिधर वजनदारी बढ़ाएंगी, वहां तो दबदबा बढ़ा सकती हैं लेकिन दूसरे सिरे से दूर फिंका भी सकती हैं। एक तरफ उनके प्रिय लोधी बंधु हैं तो दूसरी तरफ उनकी पार्टी जो पहले ही उन्हें हाशिए पर कर चुकी हैं। अब इस हाशिए से खींचकर वापसी के लिए वो प्रीतम लोधी पर निर्भर नजर आ रही हैं।



उमा भारती की चतुराई



कथावाचकों पर बयान देने के बाद प्रीतम लोधी ने ब्राह्मणों से माफी मांगी। इसका श्रेय उमा भारती अपने खाते में डालने से नहीं चूकीं। प्रीतम लोधी के बयान पर हल्की-फुल्की नाराजगी तो दिखाई लेकिन मुद्दा खत्म करने की पहल ब्राह्मणों को ही करने की नसीहत दे डाली। प्रीतम लोधी की वजह से सुर्खियों में आए बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री को तो उमा भारती जानती तक नहीं। इस दावे के साथ बागेश्वर धाम पर वो ये तंज कसना भी नहीं भूलीं कि वो बड़े संत हैं लेकिन अब प्रीतम लोधी के स्तर पर आ चुके हैं। अब मामला उनके और प्रीतम लोधी के बीच का है।



उमा की सरकार को नसीहत



प्रीतम के बहाने से उमा भारती  उस मुद्दे को हवा दे गईं जिससे सरकार भी डर रही थी। उमा भारती को ये अहसास हो चुका है कि सिर्फ हिंदुत्व के मुद्दे या शराबबंदी का राग अलापकर उनकी दाल गल नहीं रही है। प्रीतम लोधी के बहाने बुंदेलखंड और चंबल में एससी, एसटी और ओबीसी वोटर एक हो चुके नजर आ रहे हैं। प्रीतम लोधी नाम के अम्ब्रेला के नीचे फिलहाल लोधी वोटर्स के साथ ये तबका भी खड़ा नजर आ रहा है। अब उमा भारती भी वही बात कह रही हैं जो फिलहाल उनके अपने क्षेत्र बुंदेलखंड का मतदाता सुनना चाहता है। इसलिए लगे हाथ उन्होंने सरकार को नसीहत दे डाली कि वक्त ओबीसी, एससीएसटी को सत्ता में भागीदारी देने का है। उमा के तरकश का ये आखिरी तीर सही निशाने पर लगता भी दिखा। इस वर्ग का मतदाता तो उमा भारती की बात सुनकर उनके गुणगान करेगा ही शिवराज के इर्द-गिर्द भी खलबली मच ही गई।



सत्ता और संगठन की बौखलाहट का सबब उमा भारती



हड़बड़ी में बहुत जल्दबाजी में पिछड़ा वर्ग आयोग की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई। आयोग के अध्यक्ष गौरी शंकर बिसेन मीडिया के सामने आए और अपने काम गिनवा दिए। कोई उनसे ये पूछे कि अभी वो कौन-सा मौका है जब वो एससी, एसटी और ओबीसी के कामों का जिक्र लेकर बैठे हैं। अब तो नगरीय निकाय चुनाव भी निपट चुके हैं जिसके बारे में वो जानकारी दे रहे हैं। बेशक प्रीतम लोधी बड़े नेता बड़ा नाम बन रहे हैं लेकिन सत्ता और संगठन की बौखलाहट का सबब यकीनन उमा भारती हैं। उमा के तेवर साफ जाहिर कर रहे हैं कि मुद्दा अभी ठंडा पड़ने वाला नहीं है।



उमा ने अपनाया वेट एंड वॉच का फॉर्मूला



उमा ये अच्छे से समझती हैं कि अभी मामला गर्मजोशी दिखाने का नहीं है। स्थिति अभी वेट एंड वॉच की है इसलिए न खुलकर प्रीतम लोधी के पक्ष में आईं और न पार्टी पर सीधे कोई हमला बोला। हालांकि ये सब समझ रहे हैं कि प्रीतम लोधी को पर्दे के पीछे से उमा भारती का फुल सपोर्ट है। इनके बीच में एक और बड़ा लोधी लीडर मिसिंग है वो हैं प्रहलाद पटेल। शायद वो भी तेल की धार देखने और समझने का वक्त ले रहे हैं। फिलहाल ये तय माना जा रहा है कि अगर प्रीतम लोधी की पार्टी में दोबारा वापसी होती है तो उसका जरिया उमा भारती ही बनेंगी। ये मौका मिला तो उमा भारती पार्टी के सामने अपनी शर्तें रख सकती हैं। हो सकता है वो विधानसभा चुनाव में बड़ी भूमिका या चुनाव के बाद किसी पद की डिमांड भी कर दें। इसी आशंका से बीजेपी के गलियारों में अभी से प्रीतम लोधी मसले का हल तेजी से तलाश किया जाने लगा है।


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