भारत की आजादी में महिलाओं की भी थी भूमिका : इतिहास की किताबों में न मिलने वाली कहानियां

भारत की आजादी की जंग केवल बड़े नेताओं तक सीमित नहीं थी। इसमें किसान, महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे। जानिए 10 अनसुनी कहानियां, जो किताबों में कम ही मिलती हैं और जिनकी संघर्षों ने भारत को स्वतंत्रता दिलाई।

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Jitendra Shrivastava
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Photograph: (THESOOTR)

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भारत की स्वतंत्रता का संघर्ष लंबा और कठिन था। यह संघर्ष सिर्फ बड़े नेताओं का नहीं था, बल्कि इसमें देश के कोने-कोने से किसान, महिलाएं, बच्चे, और आम लोग भी शामिल थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में ऐसी कई कहानियां हैं, जो किताबों में कम ही मिलती हैं। आइए जानते हैं उन 10 अनसुनी कहानियों के बारे में, जिन्होंने भारत को स्वतंत्रता दिलाने में अहम भूमिका निभाई।

1. पूना पैक्ट से पहले यरवदा जेल की भूख हड़ताल

1932 में महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव अंबेडकर के बीच पूना पैक्ट से पहले एक महत्वपूर्ण घटना घटी। ब्रिटिश सरकार ने दलितों के लिए अलग निर्वाचक मंडल की घोषणा की, जिसे गांधीजी ने विरोध किया। उन्होंने यरवदा जेल में भूख हड़ताल शुरू की। यह भूख हड़ताल एक ऐतिहासिक मोड़ साबित हुई, जिसके परिणामस्वरूप पूना पैक्ट हुआ। इस समझौते के तहत, दलितों के लिए आरक्षित सीटों का प्रावधान किया गया, लेकिन अलग निर्वाचक मंडल की मांग को खारिज कर दिया गया।

2. काकोरी कांड में कई गुमनाम नायकों ने दी जान 

काकोरी कांड को राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खां और राजेंद्र लाहिड़ी जैसे क्रांतिकारियों के लिए जाना जाता है। लेकिन इस घटना में शामिल कई युवा क्रांतिकारियों के नाम इतिहास में उतने प्रसिद्ध नहीं हो पाए। इन गुमनाम नायकों ने अपनी जान की बाजी लगाकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ बहादुरी से संघर्ष किया।

3. 1857 की गदर में महिलाओं की भी थी अहम भूमिका

1857 की पहली स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही। रानी लक्ष्मीबाई के अलावा, अवंतीबाई लोधी, झलकारी बाई, और ऊदा देवी जैसी वीरांगनाओं ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी की रक्षा के लिए वीरतापूर्वक संघर्ष किया, और अवंतीबाई लोधी ने रामगढ़ की रानी के रूप में सेना का नेतृत्व किया।

4. 1942 में टोक्यो से दिया था नेताजी ने रेडियो संदेश

सुभाष चंद्र बोस ने 1942 में टोक्यो रेडियो से ‘दिल्ली चलो’ का संदेश दिया था। यह संदेश भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) के लिए एक आह्वान था, जो ब्रिटिश शासन से भारत को मुक्त करने के उद्देश्य से लड़ा जा रहा था। इस संदेश ने भारतीय युवाओं में आज़ादी की लड़ाई के प्रति जोश भर दिया था।

5. 1940 में स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत नागालैंड में हुई

1940 के दशक में नागालैंड में नागा नेताओं ने स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत की। नागा राष्ट्रीय परिषद (NNC) ने 1946 में एक स्वायत्त असम में शामिल होने की इच्छा व्यक्त की। इसके बाद, नागालैंड में संप्रभुता की घोषणा की गई और अंगामी जापू फिजो के नेतृत्व में अवैध जनमत संग्रह हुआ, जिसने भारत की स्वतंत्रता संग्राम की कम ही सुनी जाने वाली कहानियों को जन्म दिया।

6. स्वतंत्रता संग्राम में कई नायकों का था योगदान 

वीर सावरकर को 1911 में काला पानी की सजा मिली और उन्हें अंडमान की सेल्युलर जेल भेजा गया। यहां सावरकर के अलावा कई अन्य क्रांतिकारी भी कठोर परिस्थितियों में रखे गए थे। ये गुमनाम क्रांतिकारी स्वतंत्रता संग्राम के नायक थे, लेकिन उनके योगदान को कभी इतिहास में जगह नहीं मिली।

7. चंपारण सत्याग्रह के नायक थे राजकुमार शुक्ल

महात्मा गांधी का चंपारण सत्याग्रह भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। इस सत्याग्रह में स्थानीय किसान राजकुमार शुक्ल का बड़ा योगदान था। उन्होंने ही गांधीजी को चंपारण आने के लिए प्रेरित किया और नील की खेती करने वाले किसानों के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आंदोलन किया।

8. हसरत मोहानी ने दिया था 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा 

‘इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा भगत सिंह से जुड़ा हुआ माना जाता है, लेकिन यह नारा असल में उर्दू कवि हसरत मोहानी द्वारा 1921 में दिया गया था। इस नारे ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जोश भरने का काम किया और आज भी यह नारा अन्याय के खिलाफ संघर्ष की पहचान बना हुआ है।

9. भारत छोड़ो आंदोलन में बच्चों की भूमिका

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1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में बच्चों ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 12-14 साल के बच्चों ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया, कई जगहों पर इन बच्चों ने झंडा फहराया और संदेश भेजने का काम किया।

10. तिरंगा फहराने भीगते हुए खड़े रहे

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15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली। उस दिन दिल्ली में भारी बारिश हो रही थी, लेकिन लोग लाल किले पर तिरंगा फहराने के लिए भीगते हुए भी खड़े रहे। यह भारतीय जनता की स्वतंत्रता के प्रति अडिग इच्छा और साहस का प्रतीक था।

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