PRAYAGRAJ. उत्तरप्रदेश के ज्ञानव्यापी मस्जित मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट का 12 मई शुक्रवार को बड़ा फैसला आया है। दरअसल कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को कैंपस में पाए गए 'शिवलिंग' की कार्बन डेटिंग करने की अनुमति दी है। हालांकि, स्ट्रक्चर में किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाने का भी निर्देश दिया है।
सर्वे मांग की याचिका हुई स्वीकार
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर में सर्वे के दौरान मिले शिवलिंग की कार्बन डेटिंग जांच और साइंटिफिक सर्वे की मांग को लेकर दाखिल याचिका का स्वीकार कर लिया है। ASI को बिना क्षति पहुंचाए शिवलिंग की कार्बन डेटिंग जांच करने का आदेश दिया है। वाराणसी की अधीनस्थ अदालत ने सुप्रीम कोर्ट की यथास्थिति कायम रखने के आदेश के चलते कार्बन डेटिंग जांच कराने से इंकार कर दिया था, जिसे चुनौती दी गई थी। हाई कोर्ट ने वाराणसी की अदालत के आदेश को रद्द कर दिया है। यह आदेश जस्टिस अरविंद कुमार मिश्र ने लक्ष्मी देवी और अन्य की याचिका पर दिया है।
शिवलिंग की आयु का पता करने होगी जांच
इस याचिका पर राज्य सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता एमसी चतुर्वेदी और मुख्य स्थाई अधिवक्ता बिपिन बिहारी पांडे ने पक्ष रखा। याचिका पर अधिवक्ता हरिशंकर जैन, विष्णु शंकर जैन और ज्ञानवापी मस्जिद की तरफ से SFA नकवी ने पक्ष रखा। कोर्ट ने भारत सरकार के अधिवक्ता मनोज कुमार सिंह से पूछा था कि क्या शिवलिंग को नुकसान पहुंचाए बगैर कार्बन डेटिंग से जांच की जा सकती है। क्योंकि इस जांच से शिवलिंग की आयु का पता चलेगा। एएसआई ने कहा- बिना क्षति शिवलिंग की कार्बन डेटिंग जांच की जा सकती है।
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ज्ञानवापी मस्जिद का इतिहास
ज्ञानवापी मस्जिद वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर से सटी हुई है। दावा किया जाता है कि मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी। ज्ञानवापी परिसर एक बीघा, नौ बिस्वा और छह धूर में फैला क्षेत्र है। हिंदू पक्ष दावा करता है कि ज्ञानवापी मस्जिद के नीचे 100 फीट ऊंचा विशेश्वर का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है। काशी विश्वनाथ मंदिर के निर्माण को लेकर कई दावे किए जाते हैं। हालांकि यह मामला पहली बार1991 में वाराणसी की अदालत में दाखिल किया गया था। याचिका में ज्ञानवापी में पूजा करने की अनुमति मांगी गई थी। प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विश्वेशर की ओर से सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय इस मामले के याचिकाकर्ता थे।