BHOPAL. भारत के क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर की आज यानी 26 फरवरी को पुण्यतिथि है। कभी महाराष्ट्र चुनाव में बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में सावरकर को भारत रत्न दिलाने का वादा किया था। बीजेपी विनायक दामोदर की तरफ खड़ी दिखती है तो कांग्रेस उन्हें आड़े हाथ लेती है। जानते हैं कि सावरकर किसी के लिए हीरो तो किसी के लिए विलेन कैसे बन गए।
वाजपेयी ने भेजा था भारत रत्न देने का प्रस्ताव
1883 में मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) में जन्मे विनायक सावरकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी थे। इसके साथ ही वह एक राजनेता, वकील, लेखक और हिंदुत्व दर्शन के प्रतिपादक थे। मुस्लिम लीग के जवाब में उन्होंने हिंदू महासभा से जुड़कर हिंदुत्व का प्रचार किया था। 2000 में वाजपेयी सरकार ने तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन के पास सावरकर को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' देने का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन उन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया था।
गांधी जी हत्या की साजिश में अरेस्ट हुए थे
1948 में महात्मा गांधी की हत्या के छठे दिन विनायक दामोदर सावरकर को गांधी की हत्या की साजिश में शामिल होने के लिए मुंबई से गिरफ्तार कर लिया गया था। हालांकि, उन्हें फरवरी 1949 में बरी कर दिया गया था। 'द आरएसएस-आइकॉन्स ऑफ द इंडियन राइट के लेखक नीलांजन मुखोपाध्याय बताते हैं- हम नहीं भूल सकते कि गांधी हत्याकांड में उनके खिलाफ केस चला था। वो छूट जरूर गए थे, लेकिन उनके जीवन काल में ही उसकी जांच के लिए कपूर आयोग बैठा था और उसकी रिपोर्ट में शक की सुई सावरकर से हटी नहीं थी। 26 मई, 2014 को नरेंद्र मोदी शपथ लेते हैं, उसके दो दिन बाद ही वीर सावरकर की 131वीं जन्मतिथि पड़ी। वो संसद भवन जाकर सावरकर के चित्र के सामने सिर झुकाकर उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। हमें मानना पड़ेगा कि सावरकर बहुत ही विवादास्पद शख्सियत थे।
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नासिक के कलेक्टर की हत्या के सिलसिले में गिरफ्तारी
अपने राजनीतिक विचारों के लिए सावरकर को पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज से निकाल दिया गया था। 1910 में उन्हें नासिक के कलेक्टर की हत्या में संलिप्त होने के आरोप में लंदन में गिरफ्तार कर लिया गया था। सावरकर पर खासा शोध करने वाले निरंजन तकले बताते हैं- 1910 में नासिक के जिला कलेक्टर जैक्सन की हत्या के आरोप में पहले सावरकर के भाई को गिरफ्तार किया गया था। सावरकर पर आरोप था कि उन्होंने लंदन से अपने भाई को एक पिस्टल भेजी थी, जिसका हत्या में इस्तेमाल किया गया था। 'एसएस मौर्य' नाम के शिप से उन्हें भारत लाया जा रहा था। जब वो जहाज फांस के मार्से बंदरगाह पर 'एंकर' हुआ तो सावरकर जहाज के शौचालय के 'पोर्ट होल' से बीच समुद्र में कूद गए।
सावरकर की जीवनी 'ब्रेवहार्ट सावरकर' लिखने वाले आशुतोष देशमुख बताते हैं- सावरकर ने जानबूझ कर अपना नाइट गाउन पहन रखा था। शौचालय में शीशे लगे हुए थे ताकि अंदर गए कैदी पर नजर रखी जा सकें। सावरकर ने अपना गाउन उतार कर उससे शीशे को ढंक दिया। उन्होंने पहले से ही शौचालय के 'पोर्ट होल' को नाप लिया था और उन्हें अंदाजा था कि वो उसके जरिए बाहर निकल सकते हैं। उन्होंने अपने दुबले-पतले शरीर को पोर्ट-होल से नीचे उतारा और बीच समुद्र में कूद गए। उनकी नासिक की तैरने की ट्रेनिंग काम आई और वो तट की तरफ तैरते हुए बढ़ने लगे। सुरक्षाकर्मियों ने उन पर गोलियाँ चलाईं, लेकिन वो बच निकले। तैरने के दौरान सावरकर को चोट लगी और उससे खून बहने लगा। सुरक्षाकर्मी भी समुद्र में कूद गए और तैरकर उनका पीछा करने लगे। सावरकर करीब 15 मिनट तैर कर तट पर पहुंच गए। तट फिसलन भरा था। पहली बार तो वो फिसले, लेकिन दूसरी कोशिश में वो जमीन पर पहुंच गए। वो तेजी से दौड़ने लगे और एक मिनट में उन्होंने करीब 450 मीटर का फासला तय किया। उनके दोनों तरफ ट्रामें और कारें दौड़ रही थीं। सावरकर करीब-करीब नंगे थे। तभी उन्हें एक पुलिसवाला दिखाई दिया। वो उसके पास जाकर अंग्रेजी में बोले, मुझे राजनीतिक शरण के लिए मजिस्ट्रेट के पास ले चलो। तभी उनके पीछे दौड़ रहे सुरक्षाकर्मी चिल्लाए, 'चोर! चोर! पकड़ो उसे। सावरकर ने बहुत प्रतिरोध किया, लेकिन कई लोगों ने मिल कर उन्हें पकड़ ही लिया।
अंडमान में काला पानी और अंग्रेजों को माफीनामा
करीब 25 सालों तक सावरकर किसी न किसी रूप में अंग्रेजों के कैदी रहे। उन्हें 25-25 साल की दो अलग-अलग सजाएं सुनाई गईं और सजा काटने के लिए भारत से दूर अंडमान यानी 'काला पानी' भेज दिया गया। लेकिन यहां से सावरकर की दूसरी जिंदगी शुरू होती है। सेल्युलर जेल में उनके काटे 9 साल 10 महीनों ने अंग्रेजों के प्रति सावरकर के विरोध को बढ़ाने के बजाय खत्म कर दिया। निरंजन तकले बताते हैं कि गिरफ्तार होने के बाद असलियत से उनका सामना हुआ। 11 जुलाई 1911 को सावरकर अंडमान पहुंचे और 29 अगस्त को उन्होंने अपना पहला माफीनामा लिखा। इसके बाद 9 सालों में उन्होंने 6 बार अंग्रेजों को माफी पत्र दिए। कई कारणों से उन्हें जेल में अन्य कैदियों की तुलना में कई रियायतें भी मिलीं। सावरकर ने अपनी आत्मकथा में लिखा था, अगर मैंने जेल में हड़ताल की होती तो मुझसे भारत पत्र भेजने का अधिकार छीन लिया जाता।
सावरकर का हिंदुत्व
अंडमान से वापस आने के बाद सावरकर ने एक पुस्तक लिखी हिंदुत्व - हू इज हिंदू (Hindutva - Who is Hindu) जिसमें उन्होंने पहली बार हिंदुत्व को एक राजनीतिक विचारधारा के तौर पर इस्तेमाल किया। निलंजन मुखोपाध्याय के मुताबिक, हिंदुत्व को वो एक राजनीतिक घोषणापत्र के तौर पर इस्तेमाल करते थे। हिंदुत्व की परिभाषा देते हुए वो कहते हैं कि इस देश का इंसान मूलत: हिंदू है। इस देश का नागरिक वही हो सकता है जिसकी पितृ भूमि, मातृ भूमि और पुण्यभूमि यही हो। 26 फरवरी 1966 को उनका निधन हो गया।