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सुप्रीम कोर्ट जनवरी 2025 में उस जनहित याचिका पर सुनवाई करेगा, जिसमें देशभर के मंदिरों में 'वीआईपी दर्शन' के लिए लगाए जाने वाले अतिरिक्त शुल्क को समाप्त करने की मांग की गई है। इस याचिका का तर्क है कि यह प्रथा संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 21 (जीने का अधिकार) के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है।
मीडिया रिपोर्ट्स पर कोर्ट की फटकार
न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना और न्यायाधीश संजय कुमार की पीठ ने सुनवाई के दौरान कुछ मीडिया रिपोर्ट्स पर सख्त आपत्ति जताई। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "पिछली बार अदालत में जो कुछ भी हुआ, उसे मीडिया में पूरी तरह गलत तरीके से पेश किया गया।"
यह पूरे देश में हो रहा है....
इस पर वकील ने जवाब दिया, "माई लॉर्ड्स, मुझे इसकी जानकारी नहीं है। उन्होंने इसे पूरी तरह से अपने अनुसार पेश कर दिया है।" इस पर न्यायाधीश संजय कुमार ने टिप्पणी की, "यह पूरे देश में हो रहा है।" मुख्य न्यायाधीश ने इसे "पूरी तरह गलत प्रस्तुतीकरण" करार दिया। जब वकील ने यह कहा कि उन्होंने यह बातें केवल अखबार में पढ़ी हैं, तो न्यायमूर्ति कुमार ने कटाक्ष करते हुए कहा, "जाहिर है, आप मीडिया के पास गए होंगे। उन्हें अदालत में हो रही कार्यवाही की जानकारी का सवाल ही नहीं उठता। आपने सीजेआई की टिप्पणियों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया।"
हालांकि इस बात पर याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि इस मामले में संवाददाता नियमित रूप से नजर रख रहे हैं कि क्या हो रहा है। अब इस मामले की अगली सुनवाई 27 जनवरी 2025 को होगी।
VIP दर्शन रोकने के लिए दायर की गई है याचिका
जनहित याचिका में कहा गया है कि मंदिरों में 'वीआईपी दर्शन' के लिए 400-500 रुपए तक का अतिरिक्त शुल्क वसूला जाता है। यह शुल्क आम भक्तों के साथ भेदभावपूर्ण है, जो इसे वहन करने में असमर्थ होते हैं। इससे विशेष रूप से महिलाओं, विकलांगों और वरिष्ठ नागरिकों को बड़ी परेशानी होती है।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि यह प्रथा न केवल समानता और धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करती है, बल्कि मंदिर प्रबंधन की प्राथमिकता केवल संपन्न भक्तों तक सीमित हो गई है। याचिकाकर्ता ने इस समस्या को सुलझाने के लिए गृह मंत्रालय को कई बार ज्ञापन दिए, लेकिन अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
यह हैं याचिका की मुख्य मांगें
1. वीआईपी दर्शन शुल्क को समाप्त किया जाए।
2. सभी भक्तों के साथ समान व्यवहार सुनिश्चित किया जाए।
3. मंदिरों के लिए समानता आधारित मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए।
4. मंदिरों के प्रबंधन की देखरेख के लिए एक राष्ट्रीय बोर्ड का गठन किया जाए।
याचिका पर सुनवाई जनवरी 2025 में
सुप्रीम कोर्ट में इस याचिका पर जनवरी 2025 में सुनवाई होगी। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि न्यायालय इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाता है। अदालत के इस विषय पर हस्तक्षेप से न केवल धार्मिक संस्थानों की कार्यशैली पर असर पड़ेगा, बल्कि आम भक्तों के अधिकारों को भी एक नई दिशा मिल सकती है।
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