रिप्रोडक्टिव राइट्स: बच्चा रखना या गिराना महिला का अधिकार, मर्द नहीं कर सकते बाध्य

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रिप्रोडक्टिव राइट्स: बच्चा रखना या गिराना महिला का अधिकार, मर्द नहीं कर सकते बाध्य

भोपाल. आजकल की माडर्न लाइफस्टाइल में लिव इन यानी की शादी के बिना साथ रहने का ट्रेंड काफी लोग फॉलो कर रहे हैं। लेकिन लिव इन (Live in Relationship) के ऐसे कई केस मामले सामने आए हैं जिनमें फिजिकल रिलेशन्स बनाने और युवती के प्रेगनेंट होने के बाद छोड़ देते हैं या फिर अबॉर्शन कराने के लिए फोर्स करते हैं। इसके अलावा मैरिड कपल्स के बीच में भी देखने को मिलता है कि पत्नी की मर्जी के बैगर पति उसे अबॉर्शन कराने के लिए फोर्स करता है। बहुत कम महिलाएं जानती हैं की उनके पास ऐसे रिप्रोडक्टिव राइट्स यानि मां बनने के कानूनी अधिकार हैं जिनका उपयोग कर वो अपने हक़ की लड़ाई लड़ सकती हैं।

आखिर क्या होते हैं रिप्रोडक्टिव राइट्स

रिप्रोडक्टिव राइट्स (Reproductive Rights) का मतलब किसी व्यक्ति की रिप्रोडक्शन हेल्थ से जुड़ा फैसला होता है। यानी की कौन कब प्रेग्नेंट होना चाहता है, अबॉर्शन (Abortion Act and Rules) करना चाहता है, कॉन्ट्रासेप्टिव का इस्तेमाल करना चाहता है और फैमिली प्लानिंग करना चाहता है। इसमें प्रेग्नेंसी के दौरान पोषण और स्वास्थ्य सुविधाएं, प्रेग्नेंसी से पहले महिला-पुरुष दोनों की सहमति होने जैसी बातें शामिल हैं।

बच्चा पैदा करने का अधिकार दोनों पार्टनर्स का

रिप्रोडक्टिव राइट्स के तहत दोनों ही पार्टनर्स को यह फैसला लेने का अधिकार होता है कि कितने बच्चे करने हैं और कब करना है। बच्चों के बीच कितने साल का अंतर रखना है। शारीरिक, मानसिक और समाजिक रूप से स्वास्थ्य होने के अधिकार के साथ ही प्रेग्नेंसी और अबॉर्शन के लिए बिना किसी भेदभाव के फैसला लेने का अधिकार भी आपको दिया जाता है।

भारत में अबॉरशन को लेकर क्या हैं कानून??

देश में 1971 से ही अबॉर्शन लीगल है, पर आज भी बहुत-सी महिलाएं इस बात को नहीं जानतीं। एक अनुमान के मुताबिक करीब 8% मैटर्नल डेथ अनसेफ कंडीशन्स में अबॉर्शन कराने के दौरान हो जाती है। लेकिन यह हर महिला को पता होना चाहिए कि कुछ विशेष हालात में आप कानूनन अपना गर्भपात करवा सकती हैं।

द्वारका कोर्ट की अहम टिप्पणी

हाल ही में दिल्ली (Delhi) के द्वारका कोर्ट ने एक केस में फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर किसी महिला ने संबंध बनाने के लिए अपनी सहमति दी है, इसका यह मतलब नहीं है कि महिला ने इस संबंध के बाद बच्चे को पैदा नहीं करने की भी सहमति दी है। यानी महिला का संबंध बनाने का मतलब यह नहीं है कि उसने अपने रिप्रोडक्टिव राइट्स भी छोड़ दिए हैं।

रिप्रोडक्टिव राइट संवैधानिक अधिकार

इसके पहले भी 2017 में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पुट्टास्वामी मामले में निजता के अधिकार (Right To Privacy) को लेकर फैसला सुनाया था। 9 जजों की बेंच ने कहा था कि संविधान (Constitution) के आर्टिकल-21 के तहत दिया गया राइट टू लाइफ एंड पर्सनल लिबर्टी में रिप्रोडक्टिव राइट्स एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। किसी भी महिला का रिप्रोडक्टिव राइट उसका संवैधानिक अधिकार है।

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