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भारत में स्वास्थ्य पर बढ़ता खर्च आज एक गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है। आम परिवारों की मासिक आय का बड़ा हिस्सा बीमारियों के इलाज में खर्च हो रहा है, जिससे उनकी आर्थिक स्थिरता प्रभावित हो रही है। अगर समय रहते बीमारियों की रोकथाम और स्वास्थ्य जागरूकता पर जोर दिया जाए, तो यह खर्च न केवल आधा हो सकता है, बल्कि नागरिकों की जीवन गुणवत्ता भी बेहतर बन सकती है।
ऐसे में, हर साल 7 अप्रैल को मनाया जाने वाला 'विश्व स्वास्थ्य दिवस' एक महत्वपूर्ण मौका बनकर सामने आता है। यह दिन न केवल स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाने का माध्यम है, बल्कि पॉलिसी मेकर्स और समाज दोनों के लिए यह सोचने का भी समय है कि अब इलाज नहीं, बल्कि रोकथाम और स्वास्थ्य संवर्धन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
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इलाज के बजाय निरोग रहने की जरूरत
भारत सरकार हर साल करीब 1 लाख करोड़ रुपए स्वास्थ्य बजट में खर्च करती है, लेकिन इसमें से सिर्फ 10-15% हिस्सा बीमारियों की रोकथाम (Prevention) पर जाता है। संतुलित आहार, स्वास्थ्य शिक्षा और नियमित जांच जैसे जरूरी कार्यक्रमों पर 5% से भी कम खर्च होता है। अगर देश की नीति में रोकथाम को प्राथमिकता दी जाए तो बीमारियों के इलाज पर होने वाला खर्च GDP का 6% तक जाने से रोका जा सकता है।
जेब पर भारी इलाज का बोझ
आज के दौर में एक औसत भारतीय परिवार साल में 20 हजार रुपए से 30 हजार रुपए केवल इलाज पर खर्च करता है। जब कोई गंभीर बीमारी सामने आती है, तो यह खर्च कई गुना बढ़ जाता है। इसके अलावा, हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम भी 15 हजार रुपए से 50 हजार रुपए तक पहुंच चुका है। कई राज्य ऐसे हैं, जहां लोग इलाज के लिए कर्ज तक लेने को मजबूर हो जाते हैं। इससे न केवल व्यक्ति की आर्थिक स्थिति प्रभावित होती है, बल्कि देश की प्रोडक्टिविटी और विकास दर (growth rate) भी कमजोर होती है।
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रोकथाम पर शोध और बजट की कमी
स्वास्थ्य के क्षेत्र में ‘रोकथाम’ को लेकर भारत में शोध बहुत ही सीमित है। जबकि पश्चिमी देशों में यह एक गंभीर प्राथमिकता है। भारत में नीतियां अभी भी इलाज केंद्रित हैं। स्वास्थ्य शिक्षा, संतुलित आहार और फिटनेस कार्यक्रम जैसे पहलुओं को सरकार की योजनाओं में उचित स्थान नहीं मिल पाया है।
नीति में बदलाव जरूरी
जनस्वास्थ्य विशेषज्ञों (public health experts) का मानना है कि, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) और आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं में बीमारी से पहले बचाव को भी शामिल किया जाना चाहिए। गांवों और शहरों में बीमारियों की पहचान के लिए भले ही शिविर लगते हों, लेकिन स्वास्थ्य जागरूकता और फिटनेस कैंप अभी तक अनिवार्य रूप से आयोजित नहीं किए जाते। इसके अलावा, स्कूलों में स्वास्थ्य शिक्षा को पाठ्यक्रम में शामिल करना और पंचायत स्तर पर स्थायी जागरूकता अभियान चलाना जरूरी है।
माताओं और नवजातों के स्वास्थ्य पर WHO की चिंता
इस साल विश्व स्वास्थ्य दिवस की थीम है – "स्वस्थ शुरुआत, आशावादी भविष्य" (Healthy beginnings, optimistic future)। यह थीम माताओं और नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य पर केंद्रित है। डब्ल्यूएचओ ने एक साल चलने वाले जागरूकता अभियान की शुरुआत की है, जिसमें सरकारों से अनुरोध किया गया है कि वे मातृ व शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए प्रयास तेज करें।
डब्ल्यूएचओ (WHO) के मुताबिक, महिलाओं को डिलीवरी से पहले और बाद में हाई क्वालिटी वाली देखभाल मिलनी चाहिए। साथ ही मानसिक स्वास्थ्य, गैर-संचारी रोग और परिवार नियोजन को स्वास्थ्य प्रणाली में जोड़ा जाना चाहिए। डब्ल्यूएचओ यह भी कहता है कि महिलाओं के स्वास्थ्य अधिकारों की सुरक्षा के लिए ठोस कानून और नीतियां बनाई जानी चाहिए।
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फिट इंडिया और निरामय योजना
बता दें कि, केंद्र सरकार की ‘फिट इंडिया मूवमेंट’ और राजस्थान सरकार की ‘निरामय योजना’ कुछ ऐसे कदम हैं जिन्होंने रोकथाम की दिशा में लोगों की सोच बदली है। अब जरूरत है कि इन योजनाओं को राष्ट्रीय स्तर पर फैलाया जाए और उन्हें अन्य योजनाओं में समाहित किया जाए ताकि स्वास्थ्य शिक्षा, जागरूकता और फिटनेस को प्राथमिकता मिल सके। "पहला सुख निरोगी काया" केवल एक कहावत नहीं है, बल्कि यह आज के भारत की सबसे बड़ी जरूरत है। जब तक हम स्वास्थ्य को केवल बीमारी से जुड़ा विषय समझते रहेंगे, तब तक अस्पतालों की भीड़ और जेब पर बोझ दोनों बढ़ते रहेंगे।
क्या है विश्व स्वास्थ्य दिवस
विश्व स्वास्थ्य दिवस हर साल 7 अप्रैल को मनाया जाता है, जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की स्थापना की वर्षगांठ भी है। इसकी शुरुआत साल 1950 में हुई थी। तब से यह दिन दुनियाभर में स्वास्थ्य के लिए जागरूकता बढ़ाने, बीमारियों की रोकथाम पर जोर देने और हेल्थकेयर सिस्टम को मजबूत बनाने के लिए मनाया जाता है।
हर साल इसकी एक नई थीम होती है, जो किसी विशेष स्वास्थ्य मुद्दे पर वैश्विक ध्यान केंद्रित करती है। जैसे कि मातृ-शिशु स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य, पर्यावरणीय स्वास्थ्य। इस दिन सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों (Non-governmental organisations) के तहक फ्री हेल्थ कैंप, जागरूकता रैली, सेमिनार और हेल्थ चेकअप कैंप जैसे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, ताकि आम जनता को निरोग रहने के महत्व के बारे में जानकारी दी जा सके।
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