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हर साल 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इसका उद्देश्य समाज में महिलाओं के अधिकारों और समानता के प्रति जागरूकता फैलाना है। यह दिन महिलाओं की उपलब्धियों को सम्मानित करने का अवसर है, साथ ही यह हमें यह भी याद दिलाता है कि हमें महिला सशक्तिकरण के लिए लगातार कार्य करते रहना चाहिए।
दुनियाभर में महिलाएं अनेक क्षेत्रों में श्रेष्ठ कार्य कर रही हैं, लेकिन इस समानता की ओर और कदम बढ़ाने की आवश्यकता है। महिला दिवस के मौके पर आज हम आपको पिंक कलर से जुड़ी कुछ रोचक बात बताएंगे कि ये महिलाओं से कैसे जुड़ा। साथ ही इस साल की थीम के बारे में भी बात करेंगे। चलिए बताते हैं...
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पिंक कलर महिलाओं से कैसे जुड़ा
पिंक कलर को आजकल महिलाओं के प्रतीक के रूप में देखा जाता है, चाहे वह कपड़े हों, खिलौने, या कोई सामान। यह रंग महिलाओं से जुड़ा हुआ माना जाता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक समय पर यह पुरुषों से जुड़ा हुआ था? पिंक कलर का इतिहास काफी दिलचस्प है, क्योंकि एक समय पर इसे शक्ति, रॉयल्टी और पुरुषों का रंग माना जाता था। 19वीं शताब्दी में मार्केटिंग और फैशन के प्रभाव से यह महिलाओं से जुड़ने लगा। समय के साथ, फैशन और मार्केटिंग के प्रभाव से पिंक को महिलाओं से जोड़ दिया गया और आज यह रंग महिलाओं के अधिकारों, सशक्तिकरण और पहचान का प्रतीक बन चुका है।
पिंक कलर का इतिहास
पिंक कलर की पहचान एक समय में शक्ति, रॉयल्टी और उच्च वर्ग की निशानी मानी जाती थी। इस रंग का उपयोग खासतौर पर पुरुषों द्वारा किया जाता था। 800 ईसा पूर्व में होमर की "Odyssey" में पिंक रंग का उल्लेख किया गया था। इसके बाद 17वीं शताब्दी में ग्रीक बॉटनिस्ट ने इसे फूलों के उपदेश के लिए प्रयोग किया था। यूरोप में पिंक को शक्ति और जोश का प्रतीक माना जाता था और 18वीं शताब्दी तक यह रंग लिंग से जुड़ा हुआ नहीं था।
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फ्रांसीसी रॉयल्टी में एक नया मोड़
पिंक कलर को और अधिक प्रसिद्धि मिली फ्रांस के राजा लुई XV की प्रसिद्ध प्रेमिका, मैडम पी पोम्पाडौर की वजह से। उन्होंने पिंक को अपनी पहचान बनाया और इस रंग को "पोम्पाडौर पिंक" के नाम से जाना जाने लगा। इस दौर में पिंक कलर को दोनों लिंगों द्वारा पहना जाता था, लेकिन फिर 19वीं शताब्दी में एक बड़ा बदलाव हुआ।
महिलाओं से पिंक कलर का जुड़ाव
19वीं शताब्दी में रंगों को लिंग से जोड़ने का चलन बढ़ा। पिंक को पहले लड़कों से और नीले रंग को लड़कियों से जोड़ा जाता था। लेकिन 20वीं शताब्दी के मध्य में यह रंग महिलाओं से जुड़ने लगा। 1940-50 के दशक में पिंक कलर को महिलाओं के अधिकार, शक्ति और जुड़ाव का प्रतीक माना जाने लगा। इसका मुख्य कारण मार्केटिंग था। कंपनियों ने रणनीतिक रूप से पिंक रंग का उपयोग महिलाओं के सामान में करना शुरू किया और यही कारण था कि पिंक अब महिलाओं की पहचान बन गया।
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पिंक कलर का फैशन में एंट्री
1950 में अमेरिका की पहली महिला प्रथम महिला, मैमी आइजनहावर ने एक सार्वजनिक उद्घाटन में पिंक कलर पहना, और फिर पिंक कलर फैशन का एक अहम हिस्सा बन गया। इससे महिलाओं के बीच पिंक कलर को अपनाने का चलन और बढ़ा और आज यह रंग महिलाओं के अधिकारों, सशक्तिकरण और पहचान का प्रतीक बन गया है।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2025 की थीम
2025 की थीम "Accelerate Action" यानी "तेजी से कार्य करना" हमें इस दिशा में तेजी से कदम उठाने की प्रेरणा देती है। यह दिन महिलाओं की उपलब्धियों को सम्मानित करने का अवसर है। साथ ही यह हमें यह भी याद दिलाता है कि हमें महिला सशक्तिकरण के लिए लगातार कार्य करते रहना चाहिए। दुनियाभर में महिलाएं अनेक क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य कर रही हैं, लेकिन समानता की ओर और कदम बढ़ाने की जरूरत है। इस महिला दिवस पर, हम सबको मिलकर महिला अधिकारों के लिए ठोस और त्वरित कदम उठाने का संकल्प लेना चाहिए।
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