मंदारिन-अंग्रेजी के बाद हिंदी दुनिया में तीसरी सबसे ज्यादा बोलने वाली भाषा, जानें वो यूरोपियंस जिनकी हिंदी जिनकी ऋणी है

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Atul Tiwari
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मंदारिन-अंग्रेजी के बाद हिंदी दुनिया में तीसरी सबसे ज्यादा बोलने वाली भाषा, जानें वो यूरोपियंस जिनकी हिंदी जिनकी ऋणी है

BHOPAL. हर साल 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस मनाया जाता है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह यानी यूपीए-2 सरकार के दौरान 10 जनवरी 2006 को पहली बार विश्व हिंदी दिवस मनाया था। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1900 से 2021 के दौरान यानी 121 साल में हिंदी के बढ़ने की रफ्तार 175.52% रही। यह अंग्रेजी की 380.71% के बाद सबसे तेज है। अंग्रेजी और मंदारिन के बाद हिंदी दुनिया की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। 



1900 में यह दुनिया में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषाओं में चौथे स्थान पर थी। स्टैटिस्टा के मुताबिक, उस समय मंदारिन पहले, स्पैनिश दूसरे व अंग्रेजी तीसरे पायदान पर थी। जैसे-जैसे देश तरक्की की राह पर बढ़ा, भारतीय भाषाओं और खासकर हिंदी की पूछ बढ़ती गई। लंबी यात्रा तय करने के बाद हिंदी 1961 में स्पेनिश को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बन गई। तब दुनियाभर में 42.7 करोड़ लोग हिंदी बोलते थे। इनकी संख्या 2021 में बढ़कर 64.6 करोड़ पहुंच गई। यह संख्या उन 53 करोड़ लोगों के अतिरिक्त है, जिनकी मातृभाषा हिंदी है। अब तो यह शीर्ष-10 कारोबारी भाषाओं में भी शुमार है। आज हम आपको  हिंदी से जुड़ी कई जानकारियां बता रहे हैं...



देश में 53 करोड़ की मातृभाषा हिंदी



देश में 43.63 फीसदी यानी करीब 53 करोड़ लोगों की मातृभाषा हिंदी है। 13.9 करोड़ यानी 11% से ज्यादा की यह दूसरी भाषा है। 55% भारतीयों की मातृभाषा या दूसरी भाषा हिंदी है। दुनिया में 64.6 करोड़ हिंदी भाषा बोलने वाले हैं।



यूरोपियन थे, लेकिन हिंदी के लिए नींव का पत्थर बने कामिल बुल्के



फादर कामिल बुल्के का जन्म बेल्जियम में 1 सितंबर 1909 को हुआ था। शुरुआती शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे एक मिशनरी बन गए थे और भारत में भी एक मिशनरी बनकर ही आए थे, लेकिन भारत की संस्कृति और भाषा से इतने ज्यादा प्रभावित हुए कि उन्होंने अपना जीवन हिंदी और संस्कृत की सेवा में गुजार दिया। हिंदी, तुलसी और वाल्मीकि के अनन्य भक्त रहे फादर कामिल बुल्के कई बार वक्तव्य में कहा करते थे कि संस्कृत महारानी है, हिन्दी बहूरानी और अंग्रेजी तो एक नौकरानी है। साहित्य एवं शिक्षा में योगदान के लिए भारत सरकार ने 1974 में फादर कामिल बुल्के को पद्म भूषण से सम्मानित किया था।



फादर बुल्के को बचपन से ही पढ़ाई में काफी रुचि थी। शुरुआती शिक्षा पूरी करने के बाद कुछ समय नौकरी की और उसके बाद दार्शनिक प्रशिक्षण हासिल करने 1934 में पहली बार भारत आए थे। उसके बाद यहीं के होकर रह गए। उन्होंने कठिन साधना कर हिंदी और संस्कृत सीखी। उन्होंने एक बार कहा भी था कि 1935 में मैं जब भारत पहुंचा, मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि अनेक शिक्षित लोग अपनी सांस्कृतिक परम्पराओं से अनजान थे और इंग्लिश में बोलना गर्व की बात समझते थे। 



यूएन में सबसे पहले अटल ने हिंदी का मान बढ़ाया, हिंदी में ही गरजी थीं उमा



अटल बिहारी वाजपेयी ने 1977 में संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण दिया था। तब वे मोरारजी देसाई सरकार में विदेश मंत्री थे। अटल जी ने कहा था कि भारत में वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा बहुत पुरानी है। भारत में हमेशा से विश्वास करता रहा है कि सारा संसार एक परिवार है। मैं यहां राष्ट्रों की सत्ता और महत्ता के बारे में नहीं सोच रहा हूं। यहां आम आमदी की प्रतिष्ठा और प्रगति मेरे लिए कहीं अधिक महत्व रखती है। अंतत: हमारी सफलताएं और असफलताएं केवल एक ही मापदंड से मापी जानी चाहिए कि क्या हम पूरे मानव समाज के लिए न्याय और गरिमा का आश्‍वासन देने में अग्रसर हैं। भारत सभी देशों से मैत्री संबंध चाहता है। भारत किसी भी मुल्‍क पर प्रभुत्व स्थापित नहीं करना चाहता। 1977 से 2003 तक बतौर विदेश मंत्री एवं प्रधानमंत्री अटल जी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को सात बार संबोधित किया था। 



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में हिंदी में भाषण दिया। 2017 में तत्‍कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने आतंकवाद के मसले पर पाकिस्‍तान पर करारा हमला बोला था। उन्‍होंने कहा था कि हम तो गरीबी से लड़ रहे हैं लेकिन हमारा पड़ोसी पाकिस्तान हमसे लड़ रहा है। जो मुल्क (पाकिस्तान) हैवानियत की हदें पार करके सैकड़ों बेगुनाहों को मौत के घाट उतारता है, वह यहां खड़ा होकर हमें इंसानियत का ज्ञान दे रहा है, हमें मानवाधिकार का पाठ पढ़ा रहा है। भारत और पाकिस्तान एक साथ आजाद हुए थे, लेकिन क्‍या कारण है कि भारत की पहचान दुनिया में आईटी के सुपरपावर के रूप में बन रही है, जबकि पाकिस्तान की पहचान एक आतंकी मुल्‍क के तौर पर। सुषमा ने कहा था कि भारत ने दुनिया को आईआईटी-आईआईएम दिए और पाकिस्तान ने लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठन।  



ये अंग्रेज हिंदी के रंग में रंग गए



जब भारत आजाद हुआ तो यहां रह रहे अंग्रेज विदा होने लगे। 13 साल के रस्किन बॉन्ड भी तब मां के साथ इंग्लैंड लौट गए। लेकिन, वहां पहुंचते ही उन्हें देहरादून और मसूरी की याद सताने लगी और मौका मिलते ही भारत लौट आए। मसूरी में रह रहे रस्किन बॉन्ड कहते हैं कि मैंने कभी माना ही नहीं कि मैं हिंदुस्तानी नहीं हूं। जिसे मेरा देश बताया जा रहा था, वहां पर मेरे लिए एक दिन रहना भी मुश्किल हो रहा था। कुछ साल बाद मेरी एक किताब छापने के बदले में मुझे प्रकाशक ने 50 पौंड दिए। भारत आने के लिए इतना पैसा काफी था। मैं समुद्री मार्ग से मुंबई लौट आया।



वहीं, बीबीसी के रहे मार्क टली 1965 से खबरों की खोज में सारे भारत में घूमते रहे। 1994 में रिटायर हो गए, लेकिन इंग्लैंड नहीं लौटे। भारत को ही अपना घर बना लिया पर मार्क का मानना है कि भारत ने मुझे अपना बना लिया। मार्क जब हिंदी बोलते हैं तो हिंदी भाषियों को मात दे देते हैं। मार्क की किताबें ‘अमृतसर: मिसेज गांधीज लास्ट बैटल’, ‘राज टू राजीव’ और ‘टलीज नो फुल स्टाप’ बेहद चर्चित रहीं।



हिंदी के लिए ये फैक्ट भी जानें




  • मुंबई विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के वरिष्ठ प्रोफेसर डॉ. करुणाशंकर उपाध्याय के मुताबिक, गूगल पर सात साल में हिंदी सामग्री 94% की दर से बढ़ी है। गूगल पर 10 लाख करोड़ पन्ने हिंदी में उपलब्ध हैं।


  • दुनिया के 10 सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले अखबारों में शीर्ष-6 हिंदी भाषी हैं।

  • भारत से बाहर 260 से ज्यादा यूनिवर्सिटीज में हिंदी पढ़ाई जा रही है।

  • विदेश में 28 हजार से ज्यादा शिक्षण संस्थान हिंदी सिखा रहे हैं। 


  • लेखक रस्किन बॉन्ड फादर कामिल बुल्के सुषमा स्वराज यूएन हिंदी अटल बिहारी वाजपेयी यूएन में हिंदी स्पीच विश्व हिंदी दिवस 2023 Writer Ruskin Bond Father Kamil Bulke Sushma Swaraj UN Hindi Atal Bihari Vajpayee UN Hindi Speech World Hindi Diwas 2023
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