धनतेरस पर होती है भगवान धनवंतरि की पूजा, विष्णु ने वामन अवतार लेकर बलि से दान में सबकुछ लेकर देवताओं को दे दिया था

author-image
Atul Tiwari
एडिट
New Update
धनतेरस पर होती है भगवान धनवंतरि की पूजा, विष्णु ने वामन अवतार लेकर बलि से दान में सबकुछ लेकर देवताओं को दे दिया था

BHOPAL. कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुद्र-मंथन से भगवान धनवंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान धनवंतरि ने कलश में भरे हुए अमृत को देवताओं को पिलाकर अमर बना दिया था। धनवंतरि के जन्म के उपलक्ष्य में ही धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है। इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धन त्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। भारत सरकार ने धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया।



जैन आगम में धनतेरस को 'धन्य तेरस' या 'ध्यान तेरस' भी कहते हैं। भगवान महावीर इस दिन तीसरे और चौथे ध्यान में जाने के लिये योग निरोध के लिये चले गए थे। तीन दिन के ध्यान के बाद योग निरोध करते हुए दिवाली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुए। तभी से यह दिन धन्य तेरस के नाम से प्रसिद्ध हुआ। धनतेरस पर कुछ नया खरीदने की परंपरा है। इसका विशेष कारण है कि धनतेरस पर कुछ खास ग्रहों के योग बनते हैं। जो बहुत शुभ फलदायक होते हैं।



धनतेरस के दिन की लोककथा



धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के पीछे एक लोककथा है। कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुंडली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुआ और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक-दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।



धनतेरस पर दीप जलाने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता



विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा। लेकिन विधि के अनुसार उन्हें अपना काम करना पड़ा। यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे, उसी समय उनमें से एक ने यम देवता से विनती की- हे यमराज! क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यम देवता बोले, हे दूत! अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है, इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीपमाला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।



धनतेरस पर दक्षिण दिशा में दीया जलाएं



धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक हैं और चिकित्सा के देवता हैं, इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। धनतेरस के सन्दर्भ में एक लोक कथा प्रचलित है कि एक बार यमराज ने यमदूतों से पूछा कि प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय तुम्हारे मन में कभी दया का भाव नहीं आता? दूतों ने यमदेवता के भय से पहले तो कहा कि वह अपना कर्तव्य निभाते है और उनकी आज्ञा का पालन करते हैं। जब यमदेवता ने दूतों के मन का भय दूर कर दिया तो उन्होंने कहा कि एक बार राजा हेमा के ब्रह्मचारी पुत्र का प्राण लेते समय उसकी नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर हमारा हृदय भी पसीज गया, पर विधि के विधान के अनुसार हम चाह कर भी कुछ न कर सके।



एक दूत ने बातों ही बातों में तब यमराज से प्रश्न किया कि अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय है क्या। इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यम देवता ने कहा कि जो प्राणी धनतेरस की संध्या यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती। इस मान्यता के अनुसार धनतेरस की संध्या लोग आंगन में यम देवता के नाम पर दीप जलाकर रखते हैं। इस दिन लोग यम देवता के नाम पर व्रत भी रखते हैं।



धनतेरस के दिन दीप जलाकर भगवान धन्वन्तरि की पूजा करें। भगवान धन्वन्तरि से स्वास्थ बनाये रखने हेतु प्रार्थना करें। चांदी का कोई पात्र और लक्ष्मी गणेश अंकित सोने-चांदी का सिक्का खरीदा जाता है। दीपावली की रात भगवान श्री गणेश और देवी लक्ष्मी के लिए भोग चढ़ाया जाता है। कहा जाता है कि समुद्र मन्थन के समय भगवान धन्वन्तरि और मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था, यही कारण है कि धनतेरस को भगवान धन्वन्तरि और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। धनतेरस दिवाली के दो दिन पहले मनाया जाता है।



धनतेरस से जुड़ी अन्य मान्यताएं



कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन देवताओं के शुभ कार्य में बाधा डालने पर भगवान विष्णु ने असुरों के गुरु शुक्राचार्य की एक आंख फोड़ दी थी। कथा के अनुसार देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया। शुक्राचार्य ने वामन रूप में भगवान विष्णु को पहचान लिया और राजा बलि से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगें तो उन्हें मना कर देना। लेकिन बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी। वामन भगवान की मांगी गई तीन पग भूमि दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगे। 



publive-image



बलि को दान करने से रोकने के लिए शुक्राचार्य राजा बलि के कमंडल में लघु रूप धारण करके प्रवेश कर गए। तब भगवान वामन ने अपने हाथ में रखे हुए कुशा को कमण्डल में ऐसे रखा कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई। इसके बाद राजा बलि ने संकल्प लेकर तीन पग भूमि वामन भगवान को दान कर दी। इस तरह बलि के भय से देवताओं को मुक्ति मिल गई और बलि ने जो धन-संपत्ति देवताओं से छीन ली थी उससे कई गुणा धन- संपत्ति देवताओं को फिर से प्राप्त हो गई। इस कारण से भी धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।



धनतेरस पर बर्तन, चांदी खरीदने की परंपरा



धनवंतरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था। भगवान धनवंतरि कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए ही इस दिन पर बर्तन खरीदने की परंपरा है। कहीं-कहीं लोक मान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुना वृद्धि होती है। इस अवसर पर लोग धनिया के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं। धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है।



भगवान धनवंतरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं। उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी, गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हैं।



धनतेरस पूजा विधि 



धनतेरस को संध्या के समय शुभ मुहूर्त में उत्तर दिशा में मां लक्ष्मी, भगवान धनवंतरी और कुबेर जी की स्थापना करें। इसके बाद घी का दीपक जलाएं और चंदन का तिलक लगाएं। पूजा के समय कुबेर जी के मंत्र ओम ह्रीं कुबेराय नमः का 108 बार जाप करें और धनवंतरी स्तोत्र का पाठ करें। इस दिन कुबेर जी को सफेद मिठाई और धनवंतरी को पीली मिठाई का भोग लगाना शुभ माना जाता है। धनतेरस के दिन मां लक्ष्मी और गणेश जी का पूजन भी अवश्य करें। मां लक्ष्मी के समक्ष भी दीपक जलाएं और तिलक लगाएं। मां लक्ष्मी और गणेश जी को फल, फूल, मिठाई अर्पित करें। इसके बाद मां लक्ष्मी की आरती उतारें।


Importance of Dhanteras धनतेरस का महत्व Dhanteras History of Dhanteras Dhanteras 2022 Dhanteras worship method Why Dhanteras is special धनतेरस धनतेरस का इतिहास धनतेरस क्यों है खास