हनुमान चालीसा में सबकुछ; बड़ों का सम्मान, ड्रेसिंग सेंस, इष्ट की सेवा सबकी सीख

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हनुमान चालीसा में सबकुछ; बड़ों का सम्मान, ड्रेसिंग सेंस, इष्ट की सेवा सबकी सीख

हनुमान चालीसा अनेक घरों में हर दिन दोहराई जाती है, लेकिन कई बार तोते समान यह प्रक्रिया सामान्य हो जाती है। इस संदर्भ में हनुमान चालीसा की चौपाइयों से सफलता के सूत्र काफी उपयोगी और मनोबल बढ़ाने वाले हैं। 





1)  श्री गुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुरु सुधारि 





बरनऊं  रघुवर विमल जसु, जो दायक फल चारि





आदर : प्रात:काल सबसे पहला प्रणाम गुरु एवं अपने से बड़ों के प्रति। इसी क्रम में माता पिता भी बालक के प्रथम गुरु ही हैं, जो उसे संस्कारित कर गुरु को सौंपते है विद्यार्जन के लिये।





2)  कंचन बरन बरन विराज सुबेसा





कानन कुंडल कुंचित केसा





वेषभूषा : उनका सम्पूर्ण शरीर सोने सा चमकीला है तथा वस्त्र यानी वेश प्रभावी। इसी तरह प्रथम दृष्ट्या हमारी वेषभूषा ही सामनेवाले के समक्ष हमारे व्यक्तित्व की परिचायक है। यहां वेषभूषा का तात्पर्य मंहगे वस्त्रों से न होकर भोंडे प्रदर्शन से सर्वथा परे शालीन वेश से है। आपकी वेषभूषा ही आपके रहन, सहन एवं व्यक्तित्व को दर्शाती है।





3)   हाथ बज्र और ध्वजा बिराजै 





कांधे मूँज जनेऊ साजै





व्यक्तित्व : एक ओर जहां हाथ में वज्र एवं ध्वजा उनके शक्तिशाली होने का प्रतीक है, वहीं दूसरी ओर जनेऊ उनकी सरलता सादगी और शुद्ध मन की वाहक।





4)    विद्यावान गुणी अति चातुर 





राम काज करिबे को आतुर





 बुद्धिमत्ता :  केवल डिग्री आपके ज्ञान की सूचक कतई नहीं हो सकती। बुद्धिमान होने के लिए गुणी होना प्राथमिक आवश्यकता है। तभी आप लक्ष्य के प्रति न केवल समर्पित होंगे बल्कि उसे पूरा करने के लिए भी आतुर। यही है प्रतिबद्धता।





5)    प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया 





राम लखन सीता मन बसिया।           





श्रोता : यानी अच्छा श्रोता होना अच्छे वक्ता होने से अधिक श्रेष्ठ है, क्योंकि बगैर ध्यान से सुने न तो आप लक्ष्य से अवगत हो पाएंगे और न उसका संधान। 





6)    सूक्ष्म रूप धारि सियाहिं दिखावा 





विकट रूप धरि लंक जरावा





 आचरण : हर एक के लिये देश, काल, परिस्थिति के अनुसार कार्य सम्पादन की कला को जानने से सफलता असंदिग्ध हो जाती है। इसके विपरित व्यवहार से संकट का आगमन सुनिश्चित है। 





7)    तुम  उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा 





राम मिलाय राज पद दीन्हा





परोपकारी  : मित्र के लिये निर्मल उपकार की भावना से भलाई के अद्भुत संदेश के अंतर्गत उसे सही व्यक्ति से न केवल मिलवाना, अपितु सफलता की सुनिश्चितता।





8)    तुम्हरो मंत्र विभीषन जाना 





लंकेश्वर भये सकल जग जाना





सही सलाह : किसको कहां, कैसी सलाह देना उचित होगा यह समझा जाना जरूरी है। इसे उपरोक्त चौपाई से समझा जा सकता है। इसमें न केवल सामनेवाले का वरन हमारा अपना हित भी निहित है।





9)     प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं, 





जलधि लांघ गए अचरज नाहीं





आत्मविश्वास : खुद अपने तथा ईश्वर पर अगर सच्चे मन से विश्वास है तो कठिन परिस्थिति से भी आसानी से पार पाया जा सकता है। कठिन से कठिन अवरोध भी आपको रोक नहीं पाते।



                                                            



10) साधु संत के तुम रखवारे 





असुर निकंदन राम दुलारे 





निर्बल के सहायक : दुर्बल,  निर्बल, निस्सहाय की न केवल रक्षा , बल्कि इसके लिये दुष्ट व्यक्तियों का दंड देकर समाज में शांति और व्यवस्था की सुनिश्चितता।  





11) साधु हनुमंत, बलवंत, जसवंत तुम 





गए एक काज को, अनेक करि आए 





सकारात्मक एवं अग्रसक्रिय : इसके अतिरिक्त रामचरित मानस के उपरोक्त उदाहरण से स्पष्ट होता है कि मात्र सकारात्मकता  (Positivity) से नहीं अपितु अग्रसक्रियता (Proactive) रूपी गुण से लक्ष्य से भी आगे बढ़कर अन्य अनेक उपलब्धियां स्वयमेव प्राप्त हो जाती हैं बशर्ते हमारे नेत्र खुले हों और मस्तिष्क में स्वीकार्यता।





संदेश : कुल मिलकर बात का मंतव्य सिर्फ यह है कि पढ़ते समय हमारा ध्यान उसके मूल या भावार्थ पर केन्द्रित होना चाहिये, जिसके लिये ऐसे धार्मिक ग्रन्थों की संरचना हुई जिसके एकरसता के साथ प्रति दिन दोहरा देने से हम केवल सतह पर रह जाते हैं तह तक पहुंच ही नहीं पाते।





(विजय जोशी BHEL के पूर्व ग्रुप महाप्रबंधक हैं )



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