BHOPAL. भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को भगवान गणेश का जन्मोत्सव मनाया जाता है। ट्रैवल डेस्टिनेशन से भरे मध्यप्रदेश में भगवान गणेश के कई मंदिर हैं, जहां विदेशी भी दर्शन करने आते हैं। इन मंदिरों में उज्जैन का बड़ा गणेश मंदिर, श्री चिंताहरण गणेश मंदिर, इंदौर के खजराना गणेश मंदिर, सीहोर के चिंतामन गणेश मंदिर, ग्वालियर के अर्जी वाले गणेश, शिवपुरी का पोहरी गणेश मंदिर प्रमुख है। आइए चतुर्थी के मौके पर जानते हैं इन मंदिरों के एतिहासिक महत्व और महिमा के बारे में...
उज्जैन का बड़ा गणेश मंदिर
भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन में स्थित बड़ा गणेश का मंदिर काफी मशहूर है। इस मंदिर में भगवान गणेश की विशाल प्रतिमा को बनाने में सीमेंट नहीं बल्कि गुड़ और मेथीदाने का उपयोग किया गया है। भगवान गणेश की यह विशालकाय मूर्ति विश्व की सबसे ऊंची और विशाल गणेश जी की मूर्तियों में से एक मानी जाती है। यह मूर्ति करीब 18 फीट ऊंची और 10 फीट चौड़ी है। गणेश जी की इस मूर्ति की सूंड दक्षिणावर्ती दिखाई गई है जो बहुत ही कम देखने को मिलती है। गणेश जी की इस विशालकाय प्रतिमा के निर्माण में एक और खास बात यह है कि इसमें देश की सात मोक्ष पुरियों- जैसे मथुरा, माया, अयोध्या, काँची, उज्जैन, काशी व द्वारिका सहित अन्य अनेकों प्रमुख तीर्थ स्थलों की मिट्टी और पवित्र जल का इस मूर्ति के निर्माण में उपयोग किया गया है।
श्री चिंताहरण गणेश मंदिर उज्जैन
ऐसा माना जाता है कि राजा दशरथ के उज्जैन में पिण्डदान के दौरान भगवान श्री रामचन्द्र ने यहां आकर पूजा अर्चना की थी। उज्जैन से करीब 6 किलोमीटर दूर भगवान श्री गणेश के तीन रूप एक साथ विराजमान है, जो चितांमण गणेश, इच्छामण गणेश और सिद्धिविनायक के रूप में जाने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि राजा दशरथ के उज्जैन में पिण्डदान के दौरान भगवान श्री रामचन्द्र जी ने यहां आकर पूजा अर्चना की थी। इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप महारानी अहिल्याबाई द्वारा करीब 250 वर्ष पूर्व बनाया गया था। इससे भी पूर्व परमार काल में भी इस मंदिर का जिर्णोद्धार हो चुका है। यह मंदिर जिन खंभों पर टिका हुआ है वह परमार कालीन हैं। चिंतामण गणेश की आरती दिन में तीन बार होती है प्रातः कालिन आरती, संध्या भोग आरती, रात्री शयन आरती।
इंदौर का खजराना गणेश मंदिर
प्रसिद्ध खजराना गणेश मंदिर की अपनी अनूठी महिमा है। खजराना के गणेशजी को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है। मंदिर निर्माण को लेकर मान्यता है कि औरंगजेब के शासनकाल में जब देश में कई मंदिरों को तोड़ा जा रहा था, तो इस मंदिर में स्थापित गणपति की मूर्ति को एक कुएं में छुपा दिया गया था। बरसों बाद एक पंडित मंगल भट्ट को सपने में इस मूर्ति के होने का आभास हुआ। तब रानी अहिल्या बाई होलकर ने इसे निकलवाया और सन 1735 में इस जगह पर स्थापित कराया। यह एक ऐसा मंदिर है जहां भगवान की चौखट पर पट नहीं है। 24 घंटे एक विशेष मंत्र का जाप होता रहता है। विपत्ति के समय यहां पुजारियों के द्वारा विशेष अनुष्ठान और पूजन किया जाता है। इसके बाद भगवान गणेश अपने भक्त का विघ्न हर लेते हैं।
सीहोर का चिंतामन गणेश मंदिर
सीहोर में स्थित चिंतामन गणेश मंदिर की कहनी बड़ी दिलचस्प है। माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना विक्रमादित्य ने की थी। महाराजा विक्रमादित्य को गणपति की यह मूर्ति स्वयं गणेश जी ने ही दी थी। कहा जाता है कि विक्रमादित्य के पूजन से प्रसन्न होकर भगवान गणपति ने उन्हें दर्शन दिए और मूर्ति रूप में स्वयं ही यहां स्थापित हो गए और सदैव भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने का आशीर्वाद दिया। स्थानीय लोग बताते हैं कि जब भी महाराजा विक्रमादित्य संकट में होते थे या उन्हें कोई चिंता परेशान करती थी, तो वे यहां आकर बप्पा से अपनी चिंता दूर करने की मन्नत मांगते थे। चिंतामण गणेश की चार प्रतिमाएं देशभर में मौजूद मानी जाती हैं। एक सवाई माधोपुर राजस्थान के रणथंभौर में, दूसरी उज्जैन में, तीसरी गुजरात के सिद्धपुर में और चौथी सीहोर में स्थित है।
ग्वालियर के अर्जी वाले गणेश
ग्वालियर में स्थित भगवान गणेश का मंदिर काफी प्रसिद्ध हैं, जिन्हें अर्जी वाले गणेश जी के नाम से जाना जाता है। तीन पीढ़ियों से इस मंदिर की सेवा करते आ रहे खंडेलवाल परिवार के मुखिया ललित खंडेलवाल ने कहा कि यह मंदिर लगभग 350 वर्ष से भी अधिक प्राचीन है। भगवान गणेश का यह मंदिर बेहद छोटे स्वरूप में हुआ करता था। इस मंदिर में स्थापित श्री गणेशजी की प्रतिमा बेहद चमत्कारी और दयालु है। खंडेलवाल ने बताया कि अक्सर मंदिर में लोग जमीनी विवाद, दांपत्य जीवन में सुख, संतान प्राप्ति, पारिवारिक कलह और व्यापार में बढ़ोतरी जैसी अर्जियां लेकर आते हैं। भगवान से अर्जी लगाने के लिए लोग अर्जी लिखकर लाते हैं। यह क्रम 5, 7 और 9 बुधवार तक चलता है। कहते हैं कि अक्सर नौवें बुधवार तक आते-आते भगवान उनकी अर्जी जरूर सुन लेते हैं।
शिवपुरी का पोहरी गणेश मंदिर
शिवपुरी जिले के पोहरी किले में बना प्राचीन गणेश मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। किले में बसा गणेश मंदिर जो लगभग 200 वर्ष प्राचीन है। ये मंदिर पोहरी दुर्ग सिंधिया स्टेट के अंतर्गत आता था उस समय के जागीरदारनी बाला बाई सीतोले हुआ करती थीं। उन्होंने 1737 में इस मंदिर का निर्माण कराया था। बता दें कि मंदिर को इच्छापूर्ण गणेशजी के नाम से जाना जाता है। पोहरी गणेश मंदिर में कुंवारी लड़की शादी के लिए नारियल रख देती है तो उनकी शादी जल्दी हो जाती है। श्रीजी के इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि जो भी भक्त यहां बप्पा की मूर्ति को एक बार आंख भरकर देख लेते हैं। उनके मन में छिपी इच्छा बप्पा के सामने अपने आप ही जाहिर हो जाती हैं। तब बप्पा अपने भक्त की मुराद पूरी कर उनकी झोली भर देते हैं।