चैत्र नवरात्रि हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व होता है, जो इस साल 30 मार्च को रविवार से शुरू हुआ है। इस पर्व में मां दुर्गा की पूजा की जाती है। नवरात्रि के समय, विशेष पूजा और आयोजन होते हैं और भक्त विशेष रूप से काली मां की पूजा में भाग लेते हैं। आज हम आपको मध्य प्रदेश के महू स्थित 3 सौ साल पुराना काली माता मंदिर के बारे में बताएंगे, जो अपनी अलग पूजा विधि और अद्भुत इतिहास के लिए प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि यह मंदिर दुनिया का इकलौता ऐसा स्थान है, जहां पर तांत्रिक पूजा और दिव्य श्रृंगार की परंपरा निभाई जाती है।
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मंदिर में विशेष पूजा
मंदिर में नवरात्रि के समय विशेष पूजा विधि अपनाई जाती है। मान्यता के मुताबिक, यहां मैथिली काली पूजा विधि से पूजा की जाती है, जो काफी प्रचलित है। रोज सुबह सवा पांच बजे और शाम सवा सात बजे माता की आरती होती है। विशेष रूप से अष्टमी और नवमी के दिन रात में महा आरती का आयोजन किया जाता है। इस दिन मां को विशेष भोग अर्पित किया जाता है और महानिशाकाल में रात 12 बजे विशेष आरती होती है।
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मंदिर की विशेषताएं
ऐसा कहा जाता है कि, यह मंदिर न केवल अपनी ऐतिहासिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि इसके धार्मिक महत्व के कारण भी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ आकर्षित करती है। यह मंदिर सात रास्तों के संगम पर स्थित है, जो इसे और भी अद्वितीय बनाता है। कहा जाता है कि बंगाल के देवी उपासकों ने वायुमार्ग के जरिए यहां माता काली की प्रतिमा की स्थापना की थी। इसके बाद से मंदिर में विशेष आरती और पूजा की जाती है।
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श्रद्धालुओं के लिए खास मौके
यहां माता का दिव्य श्रृंगार भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है। कहते हैं कि यहां काली मां के दर्शन करने मात्र से ही सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। तांत्रिक पूजा के समय भक्तों को आध्यात्मिक अनुभव होता है, जिससे उनकी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। नवरात्रि के दौरान यहां हजारों श्रद्धालु आते हैं और पूजा में भाग लेते हैं।
विशेष आयोजन
मान्यता के मुताबिक, इस मंदिर में तांत्रिक पूजा के साथ-साथ विभिन्न धार्मिक अनुष्ठान भी आयोजित होते हैं, जिसमें पूजा अर्चना के अलावा मंत्र जाप और विशेष आरती की जाती है। इन आयोजनों में लोग अपने परिवार और साथियों के साथ शांति, समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना करते हैं।
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