छत्तीसगढ़ी शादियों की अनोखी रस्में, जानें क्यों माना जाता हैं इन्हें अहम?

छत्तीसगढ़ी शादियों में चुलमाटी और देवतेला की रस्में महत्वपूर्ण हैं, जो शादी की शुरुआत और देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए की जाती हैं।

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Kaushiki
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भारत में हर राज्य की अपनी-अपनी शादी की परंपराएं और रस्में होती हैं जो उसकी सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाती हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ी शादियों में भी कुछ विशेष रस्में होती हैं, जिनमें चुलमाटी और देवतेला की रस्में प्रमुख हैं। ये दोनों रस्में शादी की शुरुआत और देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त करने का महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं।

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चुलमाटी की रस्म

चुलमाटी छत्तीसगढ़ी शादी की पहली रस्म होती है, जो शादी से पहले की जाती है। इस रस्म में दूल्हा-दुल्हन के घरवालों के साथ गांव या शहर में एक स्थान पर जाते हैं, जिसे चुलमाटी स्थल कहा जाता है। इस स्थान पर पूजा के सामान और हल्दी लेकर सभी लोग एकत्रित होते हैं।

यहां पर दुल्हन और दूल्हे के परिवार के लोग विशेष रूप से महिला सदस्य मिट्टी और धान लेकर नाई की पत्नी को दान में देते हैं। इसके बाद, यह मिट्टी शादी के मंडप के लिए उपयोग की जाती है और दुल्हन या दूल्हे को हल्दी लगाने की रस्म शुरू होती है।

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मुख्य जिम्मेदारियां

  • हल्दी चढ़ाना: दुल्हन और दूल्हे को हल्दी लगाना और उन्हें शुभकामनाएं देना।
  • सामग्री का दान: परिवार के लोग पूजा में सम्मिलित होकर आवश्यक सामान और हल्दी का दान करते हैं।
  • देवी-देवताओं की पूजा: सभी देवी-देवताओं को हल्दी चढ़ाना और पूजा करना।
  • हल्दी लगाने की रस्म: दुल्हन और दूल्हे को हल्दी लगाने की रस्म का पालन करना।

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देवतेला की रस्म

देवतेला की रस्म में गांव या शहर के सभी देवी-देवताओं को हल्दी चढ़ाई जाती है। इस रस्म को विशेष रूप से घर की महिलाएं निभाती हैं। पूजा का सामान जैसे नारियल और हल्दी पीसकर एक बांस के परात में रखा जाता है।

इसके बाद, सभी देवी-देवताओं की पूजा की जाती है और हल्दी चढ़ाई जाती है। इस रस्म का उद्देश्य भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करना और शादी के पवित्रता को बढ़ाना है।

इसके बाद दुल्हन और दूल्हे को मंडप में बिठाकर हल्दी लगाने की प्रक्रिया शुरू होती है, जहां सबसे पहले पंडित जी हल्दी लगाते हैं, फिर घर की महिलाएं यह रस्म निभाती हैं।

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