दीपावली का पर्व 5 दिनों का होता है। इसकी शुरुआत धनतेरस से होती है और भाई दूज को समापन होता है। धनतेरस का पर्व हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर मनाया जाता है। आइए अब आपको बताते हैं धनतेरस की कथा और पूजन विधि
धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त
29 अक्टूबर को गोधूलि काल शाम 6 बजकर 31 मिनट से शुरू होकर रात 8 बजकर 31 मिनट तक रहेगा।
धनतेरस की पूजा के लिए आपको 1 घंटा 42 मिनट का समय मिलेगा।
धनतेरस की कथा
धनतेरस की पहली कथा भगवान धनवंतरी से जुड़ी है, जो समुद्र मंथन के समय अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इस कथा के अनुसार, देवता और असुरों ने अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र मंथन किया था। मंथन के दौरान समुद्र से कई रत्न, दिव्य वस्तुएं और शक्तियां प्राप्त हुईं, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण था अमृत कलश। अमृत को प्राप्त करने के लिए देवताओं और असुरों के बीच संघर्ष शुरू हो गया था।
समुद्र मंथन के दौरान भगवान धनवंतरी, जो आयुर्वेद के देवता और वैद्य माने जाते हैं, अपने हाथ में अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए। उन्होंने अमृत का वितरण देवताओं में किया, जिससे वे अमर हो गए। इसलिए, धनतेरस के दिन भगवान धनवंतरी की पूजा की जाती है। इस दिन को स्वास्थ्य, दीर्घायु और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है, और इसी कारण इस दिन लोग भगवान धनवंतरी की आराधना करते हैं।
तो दूसरी कथा राजा हेम के पुत्र से जुड़ी है। ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि राजा हेम का पुत्र विवाह के चार दिन बाद सांप के डसने से मृत्यु को प्राप्त होगा। जब यह बात राजा और रानी को पता चली, तो वे चिंतित हो गए।
विवाह के बाद, पुत्र की पत्नी ने उसे मरने से बचाने के लिए उपाय किया। उसने अपने पति को सोने नहीं दिया और घर के चारों ओर सोने-चांदी के गहने और दीप जलाकर घर को रोशनी से भर दिया। यमराज सांप के रूप में आए, लेकिन उस चमक-दमक से उनकी आंखें चौंधिया गईं, जिससे वे दरवाजे पर बैठ गए। तभी उन्होंने सुहागिन पत्नी के गीत सुने, जिससे प्रभावित होकर वे बिना पुत्र की जान लिए वापस लौट गए। तभी से धनतेरस के दिन दीप जलाकर यमराज की पूजा की जाती है और इसे “यम दीपदान” कहा जाता है।
यही कारण है कि धनतेरस की पूजा हमेशा प्रदोष काल में की जाती है। भगवान धन्वंतरि की पूजा उपासना करने के साथ- साथ दीपदान भी किया जाता है। साथ ही घर के मेन गेट, छत, नल के पास एक एक दीपक भी जलाया जाता है। घर के बाहर भी दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके जलाया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है।
धनतेरस की पूजा विधि
- साफ-सफाई: सबसे पहले घर और पूजा स्थल की अच्छी तरह सफाई करें और घर को सजाएं।
- दीप प्रज्वलन: संध्या के समय तेरह दीपक जलाएं और उन्हें घर के मुख्य द्वार, आंगन, और पूजास्थल पर रखें। यमराज के लिए घर के बाहर दीपक रखना जरूरी है।
- धनवंतरी पूजा: भगवान धनवंतरी की पूजा करें, जो स्वास्थ्य के देवता हैं। उनके साथ मां लक्ष्मी और कुबेर देव की पूजा भी की जाती है।
- कुबेर पूजा: धन के देवता कुबेर की पूजा करें और उनके सामने चावल, फल, फूल और मिठाई अर्पित करें।
- संकल्प: हाथ में जल और फूल लेकर व्रत और पूजा का संकल्प लें।
- पंचोपचार पूजा: भगवान धनवंतरी, माता लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पंचोपचार पूजा करें। उन्हें गंध, पुष्प, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें।
- दीपदान: यमराज के लिए घर के बाहर दीपक जलाएं, जिससे अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिले।
पूजा सामग्री
- तेरह दीपक
- घी/तेल
- रुई की बाती
- फूल (माला और पुष्प)
- चावल
- मिठाई
- धूप और दीप
- जल
- फल
- सिंदूर, रोली और हल्दी
धनतेरस पूजा के मंत्र
धनवंतरी मंत्र:
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय धन्वंतरये अमृतकलश हस्ताय
सर्वामय विनाशनाय त्रिलोकपथाय त्रिलोकनाथाय श्री महाविष्णवे नमः।
कुबेर मंत्र:
ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये
धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा।
लक्ष्मी मंत्र:
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं महालक्ष्मयै नमः।
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