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धनतेरस की कहानी
हर साल कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि पर धनतेरस मनाई जाती है, धनतेरस पर हम माता लक्ष्मी, कुबेर और आरोग्य के देवता धनवंतरि की पूजा करते हैं। (धनतेरस संदेश) आइए, जानते हैं कि धनतेरस क्यों मनाते हैं?
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समुद्र मंथन से संबंध
Dhanteras Puja का संबंध पौराणिक समुद्र मंथन की कथा से है। यह कथा बताती है कि कैसे देवताओं ने अमृत पाने के लिए समुद्र मंथन किया था।
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देवताओं पर श्राप
पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि दुर्वासा के श्राप से देवताओं की सारी शक्तियां चली गईं। इससे असुरों ने देवताओं को हरा दिया और पूरे ब्रह्मांड में अंधेरा छा गया।
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विष्णु जी की शरण
असुरों के अत्याचार बढ़ने पर सभी देवता जगत के पालनहार भगवान विष्णु के पास मदद के लिए पहुंचे। भगवान विष्णु ने ही उन्हें अमृत के लिए समुद्र मंथन करने की सलाह दी थी।
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मंदार पर्वत बना मथनी
भगवान विष्णु ने देवताओं को अमृत के लिए असुरों का सहयोग लेने को कहा। भगवान विष्णु की सलाह पर देवताओं और असुरों ने मिलकर मंथन शुरू किया। मंदार पर्वत को मथने की छड़ी बनाया गया, जिसे भगवान विष्णु ने कछुआ अवतार लेकर अपनी पीठ पर धारण किया।
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सबसे पहले आया विष
मंथन शुरू होते ही सबसे पहले घातक विष निकला, जिसने सृष्टि को खतरे में डाल दिया। इस विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में धारण कर पूरी दुनिया को बचा लिया।
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मां लक्ष्मी हुई प्रकट
विष के बाद समुद्र मंथन से कई दिव्य निधियां (खजाने) बाहर आईं। इसी क्रम में, धन और समृद्धि की देवी, मां लक्ष्मी, स्वयं प्रकट हुईं।
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भगवान धनवंतरि का आगमन
मंथन के अंत में, भगवान धनवंतरि हाथों में अमृत का पात्र और आयुर्वेद की पुस्तक लेकर प्रकट हुए। ( जानें धनतेरस का महत्व ) उनके आने की तिथि को ही धनतेरस कहा जाने लगा।