ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, खर मास 14 मार्च से सूर्य के मीन राशि में आने के साथ आरंभ हुआ है, जो 13 अप्रैल तक रहेगा। ज्योतिष मानते हैं कि, इस अवधि में सूर्य की गति धीमी हो जाती है, जिससे पृथ्वी पर उसका प्रभाव कम पड़ता है। इस कारण इस समय शुभ कार्यों को वर्जित माना जाता है। सूर्य के रथ का खींचना और इस दौरान शनि ग्रह की स्थिति के कारण यह मास खर मास कहलाता है।
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खरमास की उत्पत्ति कैसे हुई
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, खर मास की उत्पत्ति एक दिलचस्प कथा से जुड़ी है, जो मार्कण्डेय पुराण में वर्णित है। मार्कण्डेय पुराण के मुताबिक, जब सूर्य के सात घोड़ों का रथ थक गया, तब सूर्य देव ने रथ को मंद गति से खींचने के लिए खरों को जोतने का निर्णय लिया।
सूर्य देव के रथ को जब खरों ने खींचा तो सूर्य का तेज भी मंद हो गया और यही कारण है कि इसे खर मास कहा गया। यह मास सूर्य के मीन और धनु राशि में आने पर आता है और इस दौरान सूर्य का प्रभाव कमजोर रहता है, जिससे पृथ्वी पर शुभ कार्यों से बचने की सलाह दी जाती है।
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खरमास और मल मास में अंतर
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, खरमास और मलमास में अंतर होता है। ऐसा माना जाता है कि, खर मास में सूर्य की गति धीमी हो जाती है, जिससे उसका प्रभाव कमजोर पड़ता है और किसी भी नए कार्य को शुरू करने से बचने की सलाह दी जाती है। वहीं, मल मास साल में एक बार नहीं, बल्कि हर तीन साल में एक बार आता है।
यह वह समय होता है जब सूर्य और चंद्रमा की गति में कुछ विशेष बदलाव होते हैं। इसे अधिक मास भी कहा जाता है और यह मास भगवान विष्णु के द्वारा असुर हिरण्यकश्यप के वध के लिए रचित था। मल मास में धार्मिक कार्यों का विशेष महत्व होता है और इसे भगवान विष्णु की पूजा के लिए आदर्श माना जाता है।
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खरमास में क्या करें और क्या न करें
ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, खर मास के दौरान ये उपाय और सावधानियां रखी जाती हैं:
- शुभ कार्यों से बचें: इस समय नए घर का निर्माण, विवाह, वाहन खरीदारी और अन्य मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं।
- सूर्य और बृहस्पति की पूजा करें: सूर्य और बृहस्पति की पूजा इस समय विशेष फलदायी मानी जाती है।
- धार्मिक अनुष्ठान करें: इस समय दान करना, मंत्र जाप करना, और विशेष रूप से सूर्य देव की उपासना करना शुभ रहता है।
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