नवरात्रि का पांचवां दिन : ऐसे करें मां स्कंदमाता की पूजा-अर्चना, सभी मनोकामना होगी पूरी

पूजा के स्‍थान को गंगाजल से शुद्ध कर लें। उसके बाद लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर मां की मूर्ति या फिर तस्‍वीर को स्‍थापित करें। पीले फूलों से मां का श्रृंगार करें। पूजा में फल, फूल मिठाई, लौंग, इलाइची, अक्षत, धूप, दीप और केले का फल अर्पित करें।

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Sandeep Kumar
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7 अक्टूबर 2024

मां स्कंदमाता 

मां स्कंदमाता की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, तारकासुर नाम का एक राक्षस था, जिसका आतंक बहुत बढ़ गया था। लेकिन तारकासुर का अंत कोई नहीं कर सकता था। भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय के हाथों ही उसका अंत संभव था। ऐसे में मां पार्वती ने अपने पुत्र स्कंद यानी कार्तिकेय को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने के लिए स्कंदमाता का रूप धारण किया था। स्कंदमाता से युद्ध का प्रशिक्षण लेने के बाद कार्तिकेय ने तारकासुर का अंत किया।

मां स्कंदमाता की पूजा विधि 

पूजा के स्‍थान को गंगाजल से शुद्ध कर लें। उसके बाद लकड़ी की चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर मां की मूर्ति या फिर तस्‍वीर को स्‍थापित करें। पीले फूलों से मां का श्रृंगार करें। पूजा में फल, फूल मिठाई, लौंग, इलाइची, अक्षत, धूप, दीप और केले का फल अर्पित करें। उसके बाद कपूर और घी से मां की आरती करें। पूजा के बाद क्षमा याचना करके दुर्गा सप्‍तशती और दुर्गा चालीसा का पाठ करें। स्‍कंदमाता की पूजा में पीले या फिर सुनहरे रंग के वस्‍त्र पहनना शुभ माना जाता है। मां का श्रृंगार पीले फूल से करें। मां को सुनहरे रंग के वस्‍त्र अर्पित करें। पीले फल चढ़ाएं।

स्कंदमाता का भोग

मां स्कंदमाता को पीले रंग की वस्तुएं प्रिय है। इसलिए उन्हें केले, बेसन के लड्डू, केसर की खीर या फिर कोई अन्य पीली मिठाई अर्पित कर सकते हैं।

मां स्कंदमाता मंत्र

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया.
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥

स्कंदमाता की आरती

जय तेरी हो स्कंद माता, पांचवा नाम तुम्हारा आता।
सब के मन की जानन हारी, जग जननी सब की महतारी।
तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं, हरदम तुम्हे ध्याता रहूं मैं।
कई नामो से तुझे पुकारा, मुझे एक है तेरा सहारा।
कहीं पहाड़ों पर है डेरा, कई शहरों में तेरा बसेरा।
हर मंदिर में तेरे नजारे गुण गाये, तेरे भगत प्यारे भगति।
अपनी मुझे दिला दो शक्ति, मेरी बिगड़ी बना दो।
इन्दर आदी देवता मिल सारे, करे पुकार तुम्हारे द्वारे।
दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आये, तुम ही खंडा हाथ उठाये।
दासो को सदा बचाने आई, चमन की आस पुराने आई।

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