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Pitru Paksha:हिंदू धर्म में पितरों की आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए श्राद्ध और पिंडदान का विशेष महत्व है। माना जाता है कि बिना श्राद्ध के पितरों की आत्मा को मुक्ति नहीं मिलती और वे पृथ्वी लोक पर भटकते रहते हैं। सभी तीर्थों में बिहार का गया एकमात्र ऐसा स्थान है जहां श्राद्ध करने से पितरों को सीधे मोक्ष प्राप्त होता है।
इसी कारण इसे मोक्ष की भूमि भी कहा जाता है। यह मान्यता है कि गया जी में श्राद्ध करने से न सिर्फ पितरों की आत्मा को शांति मिलती है, बल्कि श्राद्ध करने वाले व्यक्ति को भी पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
यहां का श्राद्ध कर्म 108 कुलों और 7 पीढ़ियों तक के पितरों को तृप्त कर देता है। इस साल पितृ पक्ष 7 सितंबर (रविवार) से शुरू हो रहा है और 21 सितंबर (रविवार) को सर्व पितृ अमावस्या तक चलेगा।
यह 15 दिनों की अवधि पितरों को समर्पित है। ऐसी मान्यता है कि इन दिनों हमारे पूर्वज धरती पर आते हैं और अपने वंशजों द्वारा दिए गए श्राद्ध को स्वीकार करते हैं। इस मौके पर आइए जानें गया जी में श्राद्ध की पौराणिक कथा...
गया जी में श्राद्ध
गया जी, जिसे 'मोक्ष की भूमि' भी कहा जाता है का महत्व सदियों से चला आ रहा है। यहां श्राद्ध की परंपरा के पीछे एक बहुत ही महत्वपूर्ण पौराणिक कथा है, जो गयासुर नामक एक शक्तिशाली असुर से जुड़ी है। आइए जानें...
पौराणिक कथापौराणिक काल में गयासुर नाम का एक पराक्रमी असुर था। वह अत्यंत धर्मात्मा और दयालु था। उसने भगवान ब्रह्मा की कठोर तपस्या की और उनसे एक ऐसा वरदान मांगा कि उसका शरीर सबसे पवित्र हो जाए। ब्रह्माजी उसकी तपस्या से प्रसन्न हुए और उसे वरदान दिया कि जो कोई भी उसके शरीर को स्पर्श करेगा, वह पाप मुक्त हो जाएगा और उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी। इस वरदान के कारण गयासुर का शरीर इतना पवित्र हो गया कि जो भी व्यक्ति उसके दर्शन करता या उसके शरीर को छूता, उसे सीधे स्वर्ग की प्राप्ति होती थी। यहां तक कि पापी से पापी व्यक्ति भी स्वर्ग जाने लगा। इससे स्वर्ग लोक में अव्यवस्था फैल गई और यमराज का काम रुक गया। देवता चिंतित होकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने गयासुर की पवित्रता और भक्ति को देखते हुए एक योजना बनाई। वे गयासुर के पास गए और उससे कहा कि वे एक महायज्ञ करना चाहते हैं, जिसके लिए उन्हें एक पवित्र यज्ञवेदी की आवश्यकता है। गयासुर ने बिना किसी हिचकिचाहट के अपना पूरा शरीर यज्ञ के लिए अर्पित कर दिया। जब गयासुर यज्ञवेदी के लिए लेटा, तो उसका शरीर पांच कोस तक फैल गया। लेकिन उसके विशाल शरीर के हिलने-डुलने से यज्ञ में बाधा आ रही थी। तब भगवान विष्णु ने धर्मशिला को गयासुर के सिर पर रखा और उस पर अपनी गदा रख दी। गयासुर पत्थर में तब्दील हो गया लेकिन वह हिलना बंद नहीं हुआ। तब भगवान विष्णु ने अपने चरणों को उस पर स्थापित किया। गयासुर का शरीर पूरी तरह शांत हो गया। गयासुर की भक्ति और त्याग से प्रसन्न होकर, भगवान विष्णु ने उसे वरदान दिया: "आज से यह स्थान तुम्हारे नाम से 'गया' के नाम से जाना जाएगा। जो भी व्यक्ति इस पवित्र भूमि पर अपने पितरों का श्राद्ध, पिंडदान या तर्पण करेगा, उसके सभी पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होगी। यहाँ श्राद्ध करने से उनके पितरों को जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति मिल जाएगी और वे सीधे स्वर्ग लोक को प्राप्त होंगे।" भगवान विष्णु ने यह भी कहा कि वे स्वयं इस भूमि पर पितृदेव के रूप में विराजमान रहेंगे। यही कारण है कि गया के श्राद्ध का इतना अधिक महत्व है। |
अन्य प्रमुख मान्यताएं
भगवान राम का श्राद्ध:
धार्मिक ग्रंथों और लोक कथाओं के मुताबिक, भगवान राम और माता सीता ने भी अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध गया जी में ही किया था। यह घटना गया जी में श्राद्ध की परंपरा को और भी प्रमाणित करती है। महाभारत के वन पर्व में भीष्म पितामह और पांडवों की गया यात्रा का भी उल्लेख मिलता है।
तीन प्रमुख श्राद्ध वेदियां:
गया जी में श्राद्ध के लिए तीन प्रमुख स्थान हैं जिन्हें पिंड वेदियां कहा जाता है: विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी का तट और अक्षय वट। माना जाता है कि इन तीनों स्थानों पर पिंडदान करने से ही श्राद्ध पूर्ण होता है।
फल्गु नदी का रहस्य:
यहां की फल्गु नदी आमतौर पर सूखी रहती है। इसके पीछे भी एक कथा है कि माता सीता ने रेत का पिंड बनाकर राजा दशरथ का श्राद्ध किया था और फल्गु नदी से झूठ बोलने के कारण उसे श्राप दिया था कि वह हमेशा सूखी रहेगी।
अक्षय वट (अमर वटवृक्ष):
यह एक प्राचीन बरगद का पेड़ है, जहां पिंडदान और श्राद्ध कर्म का अंतिम अनुष्ठान होता है। माना जाता है कि इस पेड़ के नीचे किए गए श्राद्ध का फल कभी खत्म नहीं होता और यह पूर्वजों को अनन्त शांति प्रदान करता है।
विष्णुपद मंदिर:
इस मंदिर में भगवान विष्णु के पदचिह्न हैं। मान्यता है कि गयासुर का शरीर यहीं दबाया गया था। यहां पिंडदान करने से पूर्वज सीधे बैकुंठ धाम जाते हैं।
पितृ ऋण से मुक्ति:
गरुड़ पुराण और वायु पुराण जैसे ग्रंथों में गया जी का विशेष उल्लेख है। माना जाता है कि गया जी में श्राद्ध करने से व्यक्ति को अपने पितृ ऋण से मुक्ति मिल जाती है और वह जीवन में सभी कष्टों से दूर हो जाता है।
गया जी में श्राद्ध का महत्व
गया जी (गया पिंडदान महत्व) में श्राद्ध करना न सिर्फ एक धार्मिक कर्म है, बल्कि इसके कई गहरे आध्यात्मिक और सामाजिक महत्व भी हैं:
पितृ ऋण से मुक्ति:
हिंदू धर्म में पितृ ऋण (पूर्वजों का कर्ज) को एक महत्वपूर्ण ऋण माना जाता है। गया में श्राद्ध करके इस ऋण को चुकाया जाता है, जिससे वंशजों के जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं।
पूर्वजों को मोक्ष:
यह माना जाता है कि गया में श्राद्ध करने से पूर्वजों की अतृप्त आत्माओं को शांति मिलती है और वे मोक्ष प्राप्त करते हैं, जिससे उन्हें जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति मिलती है।
आध्यात्मिक शांति:
इस पवित्र अनुष्ठान को करने से न केवल दिवंगत आत्माओं को शांति मिलती है, बल्कि परिवार के सदस्यों को भी एक गहरी आध्यात्मिक संतुष्टि और शांति का अनुभव होता है।
गया जी में श्राद्ध सिर्फ एक कर्मकांड नहीं है बल्कि यह अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान, कृतज्ञता और प्रेम व्यक्त करने का एक तरीका है जिसके माध्यम से उन्हें शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही वजह है कि लाखों लोग हर साल अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए यहां आते हैं।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।
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