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गुड़ी पड़वा, महाराष्ट्र का एक प्रमुख पर्व है, जो न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके साथ जुड़े पारंपरिक व्यंजन भी हर किसी को आकर्षित करते हैं। यह पर्व चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को मनाया जाता है और पूरे भारत में इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे बैसाखी, उगादी, युगादि। यह त्योहार वसंत ऋतु के आगमन, नई फसल की खुशी और हिंदू नववर्ष के स्वागत का प्रतीक होता है। इस बार गुड़ी पड़वा 30 मार्च 2025 को मनाया जाएगा। विशेष रूप से महाराष्ट्र और कुछ अन्य क्षेत्रों में यह दिन बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, जहां परंपराओं और रीति-रिवाजों का विशेष महत्व है।
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गुड़ी पड़वा का महत्व
गुड़ी पड़वा नाम दो शब्दों से मिलकर बना है: गुड़ी और पड़वा। गुड़ी का अर्थ होता है "विजय पताका", जो विजय और सफलता का प्रतीक होता है। पड़वा का अर्थ है "प्रतिपदा", जो नए महीने की शुरुआत को दर्शाता है। यह पर्व हिंदू नववर्ष के रूप में मनाया जाता है और इसका धार्मिक महत्व बहुत अधिक है। इस दिन को लेकर मान्यता है कि भगवान राम ने राक्षसों पर विजय अर्जित करने के बाद घर लौटने के दौरान इस दिन को "विजय उत्सव" के रूप में मनाया था।
इसके बाद से यह परंपरा बन गई और हर साल इस दिन विजय की प्रतीक के रूप में घरों और महलों के बाहर गुड़ी लगाई जाती है। गुड़ी पड़वा के दिन लोग अपने घरों को सजाते हैं, नई शुरुआत के रूप में अपनी खुशियों को मनाते हैं और नए साल की शुरुआत के साथ सूर्य देवता की पूजा करते हैं। इस दिन की धार्मिक मान्यता के मुताबिक, भगवान राम का अयोध्या लौटना, ब्रह्माजी द्वारा सृष्टि का निर्माण और नए जीवन की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है। इसे विक्रम संवत के मुताबिक नए साल की शुरुआत के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन विशेष रूप से घरों के मुख्य द्वार पर गुड़ी को सजाना जाता है, जो एक विजय पताका के रूप में प्रतिष्ठित होती है।
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गुड़ी क्यों लगाइ जाती है
मराठी समाज में गुड़ी लगाने की परंपरा बहुत पुरानी है। यह परंपरा उस समय से शुरू हुई जब योद्धा युद्ध जीतने के बाद अपने घर लौटते थे और अपने घरों के द्वार पर विजय पताका के रूप में ध्वज लगाते थे। यह विजय उत्सव के रूप में मनाया जाता था। गुड़ी पड़वा पर भी यह परंपरा अब तक चली आ रही है। इस दिन घरों में गुड़ी स्थापित करने से समृद्धि, सुख और सफलता की प्राप्ति होती है।
गुड़ी की सामग्री
गुड़ी बनाने के लिए कुछ विशेष सामग्री का उपयोग किया जाता है। इसमें शामिल हैं:
लकड़ी का डंडा, रेशमी साड़ी या चुनरी, नीम की टहनी और आम के पत्ते, फूलों की माला और शक्कर की माला, तांबे, पितल या चांदी का लोटा, रंगोली और पूजा सामग्री।
कैसे बनती है गुड़ी
गुड़ी के लिए सबसे पहले लकड़ी का एक साफ डंडा लिया जाता है और उस पर रेशमी साड़ी या चुनरी बांधी जाती है। फिर उस पर नीम की टहनी, आम के पत्ते, फूलों की माला और शक्कर की माला डाली जाती है। इसके ऊपर तांबे या चांदी का लोटा रखा जाता है और इसे घर के द्वार पर या ऊंचे स्थान पर स्थापित किया जाता है। यह गुड़ी समृद्धि, विजय और नए साल की खुशहाली का प्रतीक मानी जाती है।
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गुड़ी की पूजा
गुड़ी की पूजा सूर्योदय से पहले की जाती है। गुड़ी को तेल, सुगंध और अगरबत्ती से सजाया जाता है। फिर उसे दीपक से पूजा कर प्रसाद अर्पित किया जाता है। इस दिन शक्कर, पूरन पोली, श्रीखंड-पुरी और अन्य पारंपरिक व्यंजन तैयार किए जाते हैं। इसके बाद, शाम के समय सूर्यास्त के साथ गुड़ी को उतारा जाता है और हल्दी-कुमकुम, अक्षत आदि अर्पित किए जाते हैं।
स्वादिष्ट व्यंजन की तैयारी
गुड़ी पड़वा के दिन परंपरागत रूप से कई स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाए जाते हैं, जैसे कि पूरन पोली, श्रीखंड, मीठे चावल (जिन्हें शक्कर भात भी कहा जाता है), खीर, और पुरी। इन व्यंजनों का विशेष महत्व होता है, और इन्हें प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाता है।इस दिन के लिए विशेष पूजा का समय भी तय किया जाता है, जो सूर्योदय से पहले और बाद में होता है।
घर और द्वार की सजावट
गुड़ी पड़वा के दिन घर और द्वार की सजावट भी की जाती है। लोग प्रातः जल्दी उठकर स्नान करते हैं और घर को अच्छे से सजाते हैं। घर के मुख्य द्वार पर आम के पत्तों का तोरण बनाया जाता है और सुंदर फूलों से द्वार को सजाया जाता है। साथ ही, रंगोली बनाई जाती है और घर के वातावरण को शुभ बनाने के लिए विशेष ध्यान दिया जाता है।
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