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Latest Religious News:हिन्दू धर्म में हर महीना किसी न किसी खास देवी-देवता को समर्पित होता है। ये मार्गशीर्ष मास (अगहन) तो सीधे भगवान श्रीकृष्ण का ही रूप है। ज्योतिष पं. मनीष शर्मा (उज्जैन) के मुताबिक, साक्षात श्रीमद् भागवत गीता में श्रीकृष्ण ने खुद कहा है कि महीनों में, मैं मार्गशीर्ष हूं।
इस पूरे महीने में जो भी भक्त श्रीकृष्ण की पूजा करता है तो उसे सीधा भगवान (Margashirsha month 2025) का आशीर्वाद मिलता है। यह महीना 4 दिसंबर तक चलेगा। इस दौरान किया था गया हर धर्म-कर्म, पूजा-पाठ और योग-प्राणायाम आपके जीवन में सकारात्मकता और शांति भर देता है।
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अगहन मास की खास बातें
अगहन का महीना सिर्फ पूजा-पाठ के लिए ही नहीं, बल्कि सेहत के लिए भी बहुत अनमोल है। इस समय मौसम का मिजाज बदलना शुरू हो जाता है। ठंडी-ठंडी हवाएं चलती हैं और आसमान एकदम साफ रहता है।
जल्दी उठना:
इन दिनों सुबह जल्दी उठकर सैर करना और ध्यान करना बहुत फायदेमंद होता है। इससे शरीर में नई ऊर्जा आती है।
सूर्य दर्शन:
बारिश का मौसम जा चुका होता है, इसलिए सुबह की गुनगुनी धूप बहुत अच्छी लगती है। इस धूप में बैठने से शरीर को जरूरी विटामिन D मिलता है। इससे हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और हम मौसमी बीमारियों से बचे रहते हैं।
तेल मालिश:
सर्दी के मौसम में नियमित तेल मालिश करने की भी परंपरा है। इससे त्वचा का रूखापन खत्म होता है और शरीर में नमी बनी रहती है।
पूजन:
सुबह उठकर स्नान करें, सूर्य देव को जल चढ़ाएं। फिर श्रीकृष्ण के मंत्र "कृं कृष्णाय नम:" का सच्चे मन से जाप करते हुए पूजा-पाठ करें।
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पांचजन्य शंख से जुड़ी मान्यताएं और इतिहास
पांचजन्य शंख भगवान श्रीकृष्ण के चार प्रमुख आयुधों (शंख, चक्र, गदा और पद्म) में से एक है। यह केवल एक शंख नहीं, बल्कि विजय और यश का प्रतीक है।
मान्यता है कि इस शंख की उत्पत्ति पौराणिक समुद्र मंथन से हुई थी। यह 14 रत्नों में से छठा रत्न था, जिसे स्वयं भगवान विष्णु ने धारण किया था । एक अन्य कथा के मुताबिक, श्रीकृष्ण ने अपने गुरु सांदीपनि के पुत्र को शंखासुर नामक दैत्य के चंगुल से छुड़ाया था।
दैत्य के खोल को ही बाद में पांचजन्य नाम दिया गया, जिसे श्रीकृष्ण ने धारण किया था। महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण ने जब-जब यह शंख बजाया, तब-तब कौरवों की सेना में खौफ छा गया था।
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श्रीकृष्ण और पांचजन्य शंख की पूजा विधि
इस पूरे मार्गशीर्ष महीने (मार्गशीर्ष महीना) में भगवान श्रीकृष्ण के साथ-साथ उनके प्रिय शंख की पूजा भी जरूर करनी चाहिए। हमारे घरों में रखे साधारण शंख को भी भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य पांचजन्य शंख का स्वरूप मानकर ही पूजा करनी चाहिए।
स्थापना:
अपने घर के मंदिर में बाल गोपाल (श्रीकृष्ण), गौमाता की प्रतिमा और शंख को रखें।
अभिषेक:
तीनों को जल और पंचामृत से अभिषेक करें। (पंचामृत दूध, दही, घी, मिश्री और शहद मिलाकर बनता है)
श्रृंगार:
भगवान को सुंदर वस्त्र पहनाएं। कुमकुम और चंदन से तिलक करें। हार-फूल चढ़ाएं।
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मंत्र जाप:
पहले कृष्ण मंत्र "कृं कृष्णाय नमः" का जाप करें। इसके बाद शंख की पूजा करते हुए इस शंख मंत्र का जाप करें:
त्वं पुरा सागरोत्पन्न विष्णुना विधृत: करे।
निर्मित: सर्वदेवैश्च पाञ्चजन्य नमोऽस्तुते।
तव नादेन जीमूता वित्रसन्ति सुरासुरा:।
शशांकायुतदीप्ताभ पाञ्चजन्य नमोऽस्तुते।।
आरती:
अंत में धूप-दीप जलाकर भगवान की आरती (Margashirsha Purnima) करें और भोग लगाएं।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें। dharm news today | धार्मिक अपडेट
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