तमिलनाडु का रहस्यमयी शिव मंदिर, जहां साल में सिर्फ एक दिन होती है पूजा

तमिलनाडु के बोडू अवुदैयार मंदिर में शिवलिंग की नहीं, बल्कि बरगद के पेड़ की पूजा होती है। माना जाता है कि भगवान शिव इसी वृक्ष में विलीन हो गए थे, जिससे यह दिव्य आस्था का केंद्र बन गया...

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Kaushiki
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भारत के तमिलनाडु राज्य के तंजावुर जिले में स्थित बोडू अवुदैयार मंदिर अपनी अनोखी परंपराओं और रहस्यमय मान्यताओं के लिए जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि, यह मंदिर पूरे साल बंद रहता है और केवल कार्तिक मास के अंतिम सोमवार को श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है। इस दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है, जिसमें हजारों भक्त शामिल होते हैं।

इसकी अद्भुत बात यह है कि, इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा शिवलिंग के रूप में नहीं की जाती, बल्कि एक विशाल बरगद के पेड़ को शिव का अवतार मानकर उसकी पूजा की जाती है। यह मंदिर अपने विशेष रीति-रिवाजों के कारण न केवल स्थानीय श्रद्धालुओं बल्कि दूर-दराज से आने वाले भक्तों के लिए भी आस्था का केंद्र बना हुआ है।

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मंदिर में शिवलिंग नहीं, बरगद का पेड़

अधिकतर शिव मंदिरों में भगवान शिव की पूजा शिवलिंग के रूप में की जाती है, लेकिन बोडू अवुदैयार मंदिर इस परंपरा से बिल्कुल अलग है। ऐसा माना जाता है कि,यहां शिवलिंग की जगह एक विशाल बरगद के वृक्ष की पूजा की जाती है। इस मंदिर से जुड़ी मान्यता के मुताबिक, भगवान शिव एक बार अपने समर्थकों के साथ इस स्थान पर आए थे और इस बरगद के पेड़ के नीचे ध्यान लगाया।

इसके बाद वह इसी वृक्ष में विलीन हो गए। तभी से इस वृक्ष को भगवान शिव का रूप माना जाता है और उसकी पूजा की जाती है। मान्यता के मुताबिक, पूजा के दौरान श्रद्धालु इस वृक्ष पर विशेष प्रसाद चढ़ाते हैं, जिसमें बरगद के पत्ते और पवित्र जल शामिल होते हैं। भक्तगण मानते हैं कि, इस तरह पूजा करने से भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

कैसे पड़ा इस मंदिर का नाम

पौराणिक मान्यता के मुताबिक, बोडू अवुदैयार मंदिर के नाम के पीछे एक बहुत ही दिलचस्प कथा प्रचलित है। कथा के मुताबिक, दो महान ऋषि वंगगोबर और महागोबर इस स्थान पर गहन ध्यान कर रहे थे। वे दोनों इस विषय पर चर्चा कर रहे थे कि ईश्वर तक पहुंचने का सबसे श्रेष्ठ मार्ग कौन-सा है – गृहस्थ जीवन या संन्यास।

इस चर्चा के दौरान भगवान शिव स्वयं एक श्वेत कपास के वृक्ष के नीचे प्रकट हुए और उन्होंने ऋषियों को यह संदेश दिया कि जो भी व्यक्ति सच्चे सिद्धांतों का पालन करता है, वह न तो किसी से श्रेष्ठ होता है और न ही किसी से कम। इसी कारण इस मंदिर के देवता को ‘पोट्टू अवुदैयार’ और ‘मथ्यपुरीश्वर’ भी कहा जाता है।

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सिर्फ एक दिन खुलते हैं कपाट

इस मंदिर की एक और अनोखी विशेषता यह है कि, यह पूरे साल बंद रहता है और केवल कार्तिक मास के अंतिम सोमवार को ही श्रद्धालुओं के लिए खोला जाता है। ऐसा माना जाता है कि कार्तिक महीने के आखिरी सोमवार को भगवान शिव अपने अनुयायियों के साथ इस मंदिर में आए थे और इसी बरगद के वृक्ष में समा गए थे। इसी वजह से इस दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है और मंदिर के कपाट मध्यरात्रि में खोले जाते हैं।

भक्त करते हैं अनोखा दान

मान्यता के मुताबिक हर साल जब इस मंदिर के कपाट खुलते हैं, तो हजारों श्रद्धालु भगवान शिव के दर्शन के लिए उमड़ पड़ते हैं। इस दौरान भक्तगण भगवान शिव को सोना, चांदी, पीतल, पैसे, चावल, दाल, उड़द, मसूर, तिल, नारियल, आम, इमली, मिर्च और सब्जियां अर्पित करते हैं। इसके अलावा, कुछ श्रद्धालु भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए बकरों और मुर्गों की बलि भी चढ़ाते हैं। उनका मानना है कि ऐसा करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और उनके भक्तों की सभी इच्छाएं पूरी करते हैं।

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इस मंदिर की यात्रा क्यों है खास

मान्यता के मुताबिक ऐसा माना जाता है कि बोडू अवुदैयार मंदिर केवल धार्मिक स्थल ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक अनुभव भी प्रदान करता है। यहां आने वाले श्रद्धालु भगवान शिव की अनूठी परंपरा के तहत पूजा करते हैं और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए विशेष अनुष्ठान करते हैं। इसके अलावा, यह मंदिर तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत और आध्यात्मिक परंपरा को दर्शाता है। जो भी भक्त यहां सच्चे मन से प्रार्थना करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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FAQ

बोडू अवुदैयार मंदिर कहां स्थित है?
तमिलनाडु के तंजावुर जिले में स्थित है।
इस मंदिर में शिवलिंग की जगह क्या पूजा जाता है?
एक विशाल बरगद के पेड़ को भगवान शिव का रूप मानकर पूजा की जाती है।
मंदिर पूरे साल क्यों बंद रहता है?
मंदिर केवल कार्तिक मास के अंतिम सोमवार को खुलता है क्योंकि इस दिन शिव यहां प्रकट हुए थे।
भक्त इस मंदिर में क्या चढ़ाते हैं?
सोना, चांदी, चावल, तिल, मसूर, नारियल और कुछ जगहों पर बकरों की बलि भी दी जाती है।
मंदिर से जुड़ी खास मान्यता क्या है?
मान्यता है कि भगवान शिव इस पेड़ में समा गए थे, इसलिए इसे शिव का स्वरूप माना जाता है।

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