सिख विवाह में क्यों लिए जाते हैं चार फेरे, क्या है इसका आध्यात्मिक महत्व

सिख समुदाय में विवाह के दौरान चार फेरे लिए जाते हैं, जिनका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व होता है। पहले तीन फेरों में जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं की शिक्षा दी जाती है।

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Kaushiki
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सिख विवाह परंपरा
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हिंदू विवाह में सात फेरे महत्वपूर्ण होते हैं। यह माना जाता है कि यह सात जन्मों का साथ देता है। लेकिन, भारत के कुछ स्थानों और खास समुदायों में यह परंपरा कुछ अलग होती है।

मान्याता के मुताबिक, सिख समुदाय और राजस्थान के कुछ राजपूत घरानों में 7 की जगह केवल 4 फेरे लिए जाते हैं। इस परंपरा का अपना ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। आइए जानें

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सिख समुदाय में चार फेरे

सिख समुदाय की शादी में चार फेरे लिए जाते हैं और यह परंपरा एक गहरे धार्मिक संदेश से जुड़ी हुई है। इन चार फेरों का महत्व और उनका उद्देश्य अलग-अलग होता है:

  • पहला फेरा: धर्म के मार्ग पर चलने की सीख देता है, और यह बताता है कि वैवाहिक जीवन में धर्म से कभी समझौता नहीं करना चाहिए।
  • दूसरा फेरा: सीमित धन में खुश रहने और ज्ञान की महत्वता को समझाता है।
  • तीसरा फेरा: काम से अवगत कराता है, यानी कर्म की सच्चाई को समझाने का प्रयास करता है।
  • चौथा फेरा: मोक्ष की प्राप्ति का संदेश देता है, जो जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य की ओर मार्गदर्शन करता है।

Sikh wedding rituals

गुरु ग्रंथ साहिब के चारों ओर चार फेरे

सिख समुदाय में विवाह के दौरान दूल्हा और दुल्हन गुरु ग्रंथ साहिब के चारों ओर चार फेरे लेते हैं, जिसमें पहले तीन फेरों में दुल्हन अग्रणी होती है और चौथे फेरे में दूल्हा अग्रणी होता है। यह एक गहरी आध्यात्मिक यात्रा को दर्शाता है, जो विवाह को केवल सांसारिक नहीं बल्कि धार्मिक और जीवनोपयोगी बनाता है।

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Anand Karaj Ceremony,

सिख धर्म में शादी के रीति-रिवाज

सिख धर्म में आनंद कारज से पहले दूल्हा और दुल्हन अपने-अपने घरों में तैयार होते हैं। दूल्हा पारंपरिक शेरवानी या कुर्ता जैकेट सेट पहनता है, जबकि दुल्हन लहंगा या सूट पहनती है।

इसके बाद दूल्हा अपनी बारात लेकर गुरुद्वारा पहुंचता है, जहां दुल्हन का परिवार उसका स्वागत करता है। फिर वरमाला (माला बदली) का आदान-प्रदान किया जाता है।

इसके बाद दूल्हा और दुल्हन गुरुग्रंथ साहिब के सामने बैठते हैं और रागी द्वारा गाए गए लावां फेरे के गीत सुनते हैं। इस दौरान दूल्हा-दुल्हन चार फेरे लेते हैं, जिनमें से चौथे फेरे में मोक्ष की प्राप्ति की बात की जाती है।

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राजस्थान के राजपूत घरानों में चार फेरे

राजस्थान के कुछ राजपूत घरानों में भी 7 की जगह 4 फेरे लेने की परंपरा है। इसके पीछे एक प्रचलित कथा है...

पाबूजी राठौड़, जो राजस्थान के प्रसिद्ध लोक देवता हैं, के विवाह के समय यह घटना घटी थी। उनकी शादी के दौरान जब वे फेरे ले रहे थे, उन्हें अचानक सूचना मिली कि कुछ लुटेरे एक बुजुर्ग महिला की गाय चुराकर ले जा रहे हैं।

पाबूजी ने अपनी शादी के चार फेरे ही पूरे किए और गाय की रक्षा के लिए निकल पड़े। इसके बाद से इस परंपरा ने आकार लिया और आज भी राजस्थान में कुछ क्षेत्रों में 4 फेरे ही लिए जाते हैं।

विवाह में 4 फेरे लेने का महत्व

चार फेरे लेने का उद्देश्य विवाह को एक आध्यात्मिक और कार्यात्मक रूप से जोड़ना है। इस परंपरा में मुख्य रूप से ध्यान धर्म, ज्ञान, काम और मोक्ष पर केंद्रित होता है, जो जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं को दर्शाता है।

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