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भारत त्योहारों का देश है, जहां हर पर्व अपने आप में एक अनूठी संस्कृति और परंपरा समेटे हुए होता है। होली का पर्व भी इन्हीं में से एक है, जो रंगों और उल्लास का प्रतीक माना जाता है। हालांकि, बहुत कम लोग यह जानते हैं कि इस त्योहार की शुरुआत कहां से हुई थी।
पौराणिक कथाओं और ऐतिहासिक साक्ष्यों के मुताबिक, होली की शुरुआत उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले से हुआ था। हरदोई के ककेड़ी गांव में स्थित 5 हजार साल पुराना नृसिंह भगवान का मंदिर, प्रहलाद घाट और हिरण्यकश्यप के महल के खंडहर आज भी इस परंपरा की गवाही देते हैं। आईए जानें इन सभी के बारे में...
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हरदोई में होली
ऐतिहासिक साक्ष्यों के मुताबिक, हरदोई जिले का प्राचीन नाम हरिद्रोही था, जो कि हिरण्यकश्यप की राजधानी मानी जाती थी। हिरण्यकश्यप एक शक्तिशाली असुर था, जो भगवान विष्णु का कट्टर विरोधी था। उसकी इच्छा थी कि पूरी प्रजा उसे ही भगवान के रूप में पूजे, लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद विष्णु भक्त था। यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल स्वीकार नहीं थी, और उसने कई बार प्रहलाद को मारने का प्रयास किया।
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होलिका दहन की कथा
हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठे, क्योंकि उसे यह वरदान था कि वह अग्नि में नहीं जलेगी। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से होलिका जलकर भस्म हो गई और प्रहलाद बच गया। इस घटना के उपलक्ष्य में होली का त्योहार मनाया जाने लगा, जिसमें होलिका दहन बुराई के अंत और अच्छाई की विजय का प्रतीक बना।
हरदोई गजेटियर
होली की शुरुआत से जुड़ी इस ऐतिहासिक घटना का उल्लेख हरदोई गजेटियर में भी मिलता है। इसके मुताबिक, हरदोई वह स्थान है जहां भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया था और हिरण्यकश्यप का वध किया था। इस घटना के पश्चात, प्रहलाद की भक्ति की विजय का उत्सव मनाने के लिए लोगों ने रंग और गुलाल का उपयोग किया, जो कालांतर में होली के रूप में प्रचलित हो गया।
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नृसिंह भगवान का मंदिर
ऐतिहासिक साक्ष्यों के मुताबिक, हरदोई के ककेड़ी गांव में स्थित नृसिंह भगवान का मंदिर इस ऐतिहासिक घटना का जीवंत प्रमाण है। यह मंदिर 5 हजार वर्षों से भी अधिक पुराना माना जाता है, जिसमें भगवान नरसिंह की प्राचीन मूर्ति स्थापित है। मंदिर के समय-समय पर हुए जीर्णोद्धार के बावजूद इसकी प्राचीनता और महत्व बरकरार है। इस मंदिर में हर वर्ष होली का प्रारंभ भक्तजन भगवान नृसिंह को रंग अर्पित करके करते हैं।
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