होलिका दहन एक महत्वपूर्ण हिंदू परंपरा है, जो हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि पर मनाई जाती है। इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है। यह एक ऐसा अवसर है जब लोग होलिका के राक्षसी रूप को जलाकर खुशी मनाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि होलिका कभी देवी थी? आइए जानते हैं उस कारण के बारे में, जिसके चलते होलिका राक्षसी बन गई और उसकी दुखद कहानी किस प्रकार फलीभूत हुई।
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पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के मुताबिक होलिका, दैत्यराज हिरण्यकश्यप की बहन थी। उसे ब्रह्मा जी से एक विशेष वरदान प्राप्त था, जिसके तहत अग्नि उसे नहीं जला सकती थी। इस वरदान को लेकर होलिका बहुत घमंड करने लगी। उसने अपने भाई हिरण्यकश्यप की मदद से भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद को मारने की योजना बनाई।
एक दिन, होलिका ने प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठने का प्रयास किया, ताकि वह जलकर मर जाए। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रहलाद बच गए, और होलिका अपनी राक्षसी घमंड की सजा के रूप में अग्नि में जलकर भस्म हो गई।
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होलिका दहन का महत्व
पौराणिक कथा के मुताबिक, होलिका दहन का उद्देश्य बुराई पर अच्छाई की जीत को दर्शाना है। हर साल इस दिन लोग अग्नि जलाते हैं और होलिका की पूजा करते हुए उसकी राक्षसी प्रवृत्तियों के लिए उसे जलाकर उसका अंत करते हैं। यह दिन विशेष रूप से हिंदू धर्म में बुराई के खिलाफ अच्छाई की शक्ति को स्वीकार करने का प्रतीक है। हालांकि होलिका के राक्षसी रूप के बावजूद, उसे श्रद्धा से पूजा जाता है, क्योंकि वह देवी थीं, जिन्होंने अपनी शक्तियों का गलत इस्तेमाल किया।
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इस साल कब है होलिका दहन
इस साल होलिका दहन फाल्गुन महीने की पूर्णिमा तिथि पर मनाया जाएगा। हिंदू पंचांग के मुताबिक, इस साल 13 मार्च को होलिका दहन का आयोजन होगा। तिथि की शुरुआत 10 बजकर 35 मिनट से होगी और इसका समापन अगले दिन 14 मार्च को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट पर होगा। इस दिन होलिका दहन का मुहूर्त रात 11 बजकर 26 मिनट से 12 बजकर 30 मिनट तक होगा।
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होली का त्यौहार
होलिका दहन के बाद अगले दिन 14 मार्च को होली खेली जाएगी। यह दिन रंगों का उत्सव होता है, जो खुशी, भाईचारे और समाजिक एकता का प्रतीक है। होलिका दहन और होली का पर्व विशेष रूप से भारतीय संस्कृति में बहुत महत्व रखता है।