होली स्पेशल : सुख नहीं, दुख से जुड़ा है रंगों के त्योहार का इतिहास

होली को रंगों और खुशियों का त्योहार माना जाता है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इसकी शुरुआत दुख और शोक से हुई थी। इतिहास के अनुसार, जब होलिका दहन हुआ, तो राजा हिरण्यकश्यप के राज्य में शोक फैल गया और लोगों ने चिता की राख अपने शरीर पर मली।

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Jitendra Shrivastava
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holi-history-from-sorrow-to-celebration Photograph: (thesootr)

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भारत में होली को उत्साह, उमंग और भाईचारे का पर्व माना जाता है। रंगों में सराबोर इस त्योहार की एक ऐतिहासिक और धार्मिक पृष्ठभूमि भी है, जो शायद बहुत कम लोग जानते हैं। यह त्योहार दरअसल शोक और गम से शुरू हुआ था। होलिका दहन के बाद हिरण्यकश्यप के राज्य में मातम छा गया था, लेकिन पांच दिन बाद यह शोक उत्सव में बदल गया। झांसी के एरच कस्बे को होली के जन्मस्थान के रूप में मान्यता प्राप्त है। आइए जानते हैं इस त्योहार के पीछे की अनसुनी कहानी।  

ऐसे हुई थी होली पर्व की शुरुआत 

होली का रंग अभी से देश पर चढ़ना शुरू हो गया है। मथुरा के बरसाने में तो लट्ठ और रंग बरसने लगे हैं। साथ ही देश के ज्यादातर लोग शुक्रवार 13 तारीख को आने वाली होली की तैयारी में लगे हैं। देश भर में होली का त्यौहार उत्साह उमंग और खुशी के साथ मिलकर मनाया जाता है, लेकिन शायद ये बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि होली का त्यौहार असल में दुख के त्यौहार के तौर पर शुरू हुआ था। 

होली की कहानी यूं है कि भक्त प्रहलाद की भक्ति से डरे राजा हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को कहा कि वो प्रहलाद को लेकर अग्नि में बैठ जाये ताकि प्रहलाद जल जाए। होलिका के पास ऐसी शाल थी जिससे वो नही जलती, लेकिन जब आग लगाई गई तो वो शाल ओढ़कर प्रहलाद के ऊपर आ गई और होलिका जल गई। ये कहानी सबको पता है, लेकिन यहीं से होली की शुरुआत कैसे हुई हम आपको बताते हैं।

देव-दानव की सभा के बाद लगाया रंग-गुलाल

जब होलिका का दहन हो गया तो हिरण्यकश्यप और उसके राज्य में शोक की लहर फैल गई। शोक मनाने के लिए दूर-दूर से रिश्तेदार आए और नाराजगी और शोक दिखाते हुए उन्होंने अपने शरीर पर चिता की राख मली। यहीं से होली की शुरुआत हुई आज भी कई जगहों पर होली की राख से ही टीका लगाने और एक दूसरे पर राख फेंकने का चलन है। ये राख से शोक का सिलसिला पांच दिन तक चलता रहा जब शोक गुस्से में बदलने लगा और दानव मिलकर देवों पर आक्रमण की तैयारी करने लगे तब दोनों की एक संयुक्त सभा रखी गई और उस सभा में समझौते के बाद पंचमी के दिन रंग और गुलाल लगाया गया इसलिए उत्तरभारत में रंग और गुलाल की होली रंग पंचमी को ही मनाई जाती है।

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झांसी जिले के एरच कस्बे से हुई थी होली की शुरुआत 

जिला मुख्यालय से लगभग 80 किलोमीटर दूर स्थित एरच कस्बे का धार्मिक दृष्टिकोण से काफी महत्व है। इस स्थान पर कई ऐसे अवशेष मौजूद हैं जिनके आधार पर इसे हिरण्यकश्यप की राजधानी माना जाता है। मान्यता है कि होली पर्व की शुरुआत झांसी जिले के इसी एरच कस्बे से हुई थी। पुरातात्विक खोजों में यहां कई ऐसे प्रमाण मिले हैं, जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि किसी समय में इस स्थान पर विकसित सभ्यता निवास करती थी।

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गजेटियर में है होली का उल्लेख

झांसी जिले के गजेटियर में इस बात का उल्लेख है कि एरच कस्बा एक ऐतिहासिक नगर है, जहां से होली की शुरुआत हुई थी। एरच कस्बे के पास स्थित बेतवा नदी के किनारे बसे डिकोली गांव को ऐतिहासिक डेकांचल पर्वत के किनारे बसा गांव माना जाता है। यह मान्यता है कि इसी डेकांचल पर्वत से भक्त प्रहलाद को नदी में फेंका गया था। जिस स्थान पर भक्त प्रह्लाद को फेंका गया था। उसे वर्तमान समय में लोग प्रह्लाद कुंड के नाम से जानते हैं।

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