क्या है भगवान जगन्नाथ की अधूरी मूर्तियों के पीछे का रहस्य, क्यों रह गई ये मूर्तियां अधूरी

भगवान जगन्नाथ की अधूरी मूर्तियों का रहस्य एक प्राचीन कथा से जुड़ा है, जिसमें भगवान कृष्ण और भगवान विश्वकर्मा की भूमिका है। इन मूर्तियों को अधूरा बनाने का उद्देश्य भगवान के अनंत रूप और उनकी दिव्यता को दर्शाना है।

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Kaushiki
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Photograph: (The Sootr)

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भगवान जगन्नाथ के मंदिर में स्थापित मूर्तियां हमेशा से अधूरी मानी जाती हैं और इसे लेकर भक्तों के मन में कई प्रश्न उठते रहते हैं। ओडिशा के पुरी में स्थित इस मंदिर की मूर्तियां किसी अन्य मंदिर की मूर्तियों से भिन्न हैं। इन मूर्तियों का रहस्य और उनके अधूरे रूप के पीछे एक बहुत ही पुरानी और दिलचस्प कहानी है।

यह रहस्य न केवल हिंदू धर्म से जुड़ा हुआ है बल्कि यह अन्य धर्मों में भी अपनी महिमा के कारण जरूरी माना जाता है। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा, जो आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होती है, एक अभूतपूर्व धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, जिसमें लाखों श्रद्धालु हर साल भाग लेते हैं। इस साल ये यात्र 27 जून शुक्रवार को होगी।

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जगन्नाथ पुरी में श्रीकृष्ण, बलभद्र और सुभद्रा देवी की अधूरी मूर्ति स्थापित  होने की रोचक कथा

जगन्नाथजी की अधूरी मूर्ति की कथा

भगवान जगन्नाथ की अधूरी मूर्ति के बारे में एक बहुत ही दिलचस्प और प्राचीन कथा प्रचलित है। इस कथा के मुताबिक, एक समय भगवान कृष्ण राधा रानी का नाम लेकर सो रहे थे, जिससे उनकी पत्नियां चौंक जाती हैं।

सभी पत्नियों के मन में यह सवाल उठता है कि भगवान कृष्ण राधा रानी को क्यों नहीं भूल पाए हैं। फिर सभी पत्नियां भगवान कृष्ण की माता, रोहिणी के पास जाती हैं और उनसे भगवान कृष्ण और राधा रानी की कथा के बारे में पूछती हैं।

माता रोहिणी उनकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए कथा सुनाने के लिए तैयार हो जाती हैं, लेकिन उन्हें सुभद्रा को द्वार पर पहरा देने के लिए कह देती हैं।

सुभद्रा अपने स्थान पर बैठ जाती हैं और किसी को भी अंदर प्रवेश नहीं करने देती। इस बीच, भगवान कृष्ण, बलराम और सुभद्रा दोनों कथा सुनने के लिए वहां पहुंच जाते हैं।

भगवान कृष्ण, बलराम और सुभद्रा ने कथा की आवाज सुनी और ध्यान से सुनते-सुनते उनकी स्थिति ऐसी हो गई कि उनके हाथ-पैर भी ठीक से दिखाई नहीं दे रहे थे।

इस स्थिति को देखकर देवऋषि नारद हैरान हो गए और उन्होंने भगवान कृष्ण से कहा कि वे मूर्तियों के रूप में पृथ्वी पर हमेशा रहने के लिए तैयार हों। इस पर भगवान ने सहमति दे दी।

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भगवान विश्वकर्माजी की शर्त

भगवान विश्वकर्मा, जो कारीगरी के भगवान माने जाते हैं, राजा इंद्र घुम्न के पास पहुंचे। उन्होंने कहा कि वह भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियां बना सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें एक शर्त रखनी होगी।

विश्वकर्मा ने शर्त रखी कि वह मूर्तियों को 21 दिनों में तैयार कर देंगे, लेकिन इस प्रक्रिया में कोई भी कमरे का दरवाजा नहीं खोलेगा। राजा ने शर्त स्वीकार की और विश्वकर्मा ने कमरे में प्रवेश किया और मूर्तियां बनानी शुरू की।

वो शर्त जिसके टूटने से अधूरी रह गईं जगन्नाथजी की मूर्तियां

क्यों रह गई भगवान की मूर्ति अधूरी

हर दिन कमरे से आरी, छैनी और हथौड़ी की आवाजें आती रही, जिससे राजा को यह विश्वास हो गया कि भगवान की मूर्तियां बन रही हैं। लेकिन 21वें दिन, कमरे से आवाजें आनी बंद हो गईं। राजा को लगा कि कुछ गड़बड़ है और उन्होंने शर्त को तोड़ते हुए कमरे का दरवाजा खोल दिया।

जैसे ही दरवाजा खुला, भगवान विश्वकर्मा गायब हो गए और मूर्तियां अधूरी रह गईं। राजा ने इस स्थिति को भगवान की इच्छा मानते हुए अधूरी मूर्तियों को मंदिर में स्थापित किया। तब से लेकर आज तक, पुरी के मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की अधूरी मूर्तियों की पूजा की जाती है।

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नवकलेवर उत्सव का महत्व

हर 12 साल में, जब अधिकमास या मलमास होता है, पुरी के जगन्नाथ मंदिर में नवकलेवर उत्सव मनाया जाता है। इस दिन, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की पुरानी मूर्तियों को हटाकर नई मूर्तियां स्थापित की जाती हैं।

ये मूर्तियां नीम की लकड़ी से बनाई जाती हैं और इसे भगवान के शरीर के परिवर्तन के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। यह उत्सव भगवान के शरीर त्यागने और नया शरीर धारण करने का प्रतीक माना जाता है।

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