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हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को ओडिशा के पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा होती है। ये रथ यात्रा न केवल एक धार्मिक उत्सव है बल्कि आस्था, संस्कृति और प्रेम का अद्भुत संगम भी है। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा अपनी मौसी गुंडिचा देवी के घर जाते हैं। इस बार यह यात्रा 27 जून से शुरू होकर 5 जुलाई को समाप्त होगी।
यह परंपरा सिर्फ धार्मिक महत्व नहीं रखती बल्कि यह रिश्तों के गहरे और सशक्त संबंधों को भी दर्शाती है। हर साल लाखों श्रद्धालु इस यात्रा में भाग लेते हैं, जो एक भावनात्मक और सांस्कृतिक अनुभव बन जाती है। तो क्या आप जानते हैं कि हर साल भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर क्यों जाते हैं? आइए जानें...
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पौराणिक कथाएं
जगन्नाथ जी के मौसी के घर जाने की परंपरा कई पौराणिक कथाओं से जुड़ी हुई है, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:
बहन की इच्छा पूर्ण करने की कथा: एक प्रमुख कथा के मुताबिक, सुभद्रा ने एक बार नगर भ्रमण की इच्छा व्यक्त की। भगवान जगन्नाथ और बलभद्र ने उनकी इच्छा को पूरा करने के लिए उन्हें रथ पर बैठाकर नगर भ्रमण कराया।
इस दौरान वे अपनी मौसी गुंडिचा देवी के घर भी गए। इस यात्रा के बाद वे कुछ समय तक वहां ठहरे और इसी घटना की याद में हर साल रथ यात्रा आयोजित की जाती है, जिसमें भगवान अपनी मौसी के घर जाते हैं।
गुंडिचा देवी का सम्मान: एक अन्य मान्यता के मुताबिक, गुंडिचा मंदिर वह स्थान है जहां जगन्नाथ जी, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों का निर्माण देवशिल्पी विश्वकर्मा द्वारा किया गया था।
राजा इंद्रद्युम्न की रानी गुंडिचा के अनुरोध पर यह मंदिर बनाया गया था। इसलिए भगवान जगन्नाथ उन्हें अपनी मौसी मानते हुए उनके घर जाते हैं और उनका सम्मान करते हैं।
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रथ यात्रा का संदेश
पुरी रथ यात्रा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह जीवन में रिश्तों की गहराई, सेवा भावना और समर्पण का प्रतीक है। भगवान का हर साल अपनी मौसी के घर जाना यह सिखाता है कि रिश्तों की डोर कभी नहीं टूटती और संस्कारों में गहरी निष्ठा होती है।
यह यात्रा भक्तों को भगवान से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ने का अवसर प्रदान करती है, क्योंकि इस दौरान भगवान अपनी मूर्तियों से बाहर निकलकर भक्तों के दर्शन करते हैं।
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गुंडिचा मंदिर में भगवान का प्रवास
जगन्नाथ जी, बलभद्र और सुभद्रा गुंडिचा मंदिर में लगभग सात दिनों तक विश्राम करते हैं। इस दौरान उन्हें विशेष पकवानों का भोग अर्पित किया जाता है। कहा जाता है कि कभी-कभी मौसी के पकवानों से भगवान का पेट खराब भी हो जाता है, जिसके लिए उन्हें विशेष पथ्य और औषधियां दी जाती हैं।
इस प्रकार, जगन्नाथ जी की रथ यात्रा और उनकी मौसी के घर जाने की परंपरा एक धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि मानवीय रिश्तों और आत्मीयता का जीवंत उदाहरण है, जो सदियों से चली आ रही है। यह परंपरा हर साल लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है, जो इसे अपने जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं।
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