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भारत में आस्था का विस्तार अक्सर एकता की मिसाल बनता है, लेकिन जगन्नाथ मंदिर को लेकर दो राज्यों पश्चिम बंगाल और ओडिशा में ठन गई है। नाम पर टकराव हो गया है। इन सबके बीच दोनों जगह श्रद्धा में कोई कमी नहीं आई है।
दरअसल, पश्चिम बंगाल के दीघा में हाल ही में बने भव्य जगन्नाथ मंदिर को लेकर उठा विवाद अब ओडिशा और बंगाल के बीच तीखी धार्मिक-राजनीतिक बहस में तब्दील हो चुका है। मुद्दा सिर्फ मंदिर का नहीं है, मामला 'धाम' शब्द का, जो ओडिशा के लिए केवल पुरी से जुड़ा हुआ गौरव और धार्मिक पहचान है।
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धाम सिर्फ पुरी ही रहेगा...क्या कहता है ओडिशा
ओडिशा के संतों, विद्वानों और जनप्रतिनिधियों का कहना है कि भगवान जगन्नाथ के मंदिर देश-विदेश में कहीं भी बनें, लेकिन जगन्नाथ धाम केवल पुरी है और पुरी ही रहेगा। ओडिशा के कानून मंत्री पृथ्वीराज हरिचंदन ने कहा, नई जगहों पर मंदिर स्वागत योग्य हैं, लेकिन दूसरा जगन्नाथ धाम नहीं हो सकता। यह परंपरा, आस्था और संस्कृति का विषय है, सिर्फ़ नाम का नहीं।
वहीं, ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन मांझी ने इस मुद्दे पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को औपचारिक पत्र लिखते हुए मंदिर के नाम में बदलाव की अपील की है।
पत्र में उन्होंने कहा कि जगन्नाथ धाम शब्द ओडिशावासियों और श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। इसका किसी और संदर्भ में प्रयोग भावनाओं को आहत कर सकता है। हालांकि, ममता बनर्जी की ओर से अभी तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
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धार्मिक नेतृत्व भी मुखर, शास्त्रों का हवाला
पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने इसे भ्रामक और अनुचित नामकरण बताया। उन्होंने आशंका जताते हुए कहा कि आर्थिक मंशा से प्रेरित हो सकता है।
वहीं श्री जगन्नाथ मंदिर प्रबंधन समिति के अध्यक्ष और प्रथम सेवक गजपति महाराज दिव्यसिंह देब ने कहा, श्रीक्षेत्र, नीलाचल, पुरुषोत्तम या जगन्नाथ धाम ये सभी नाम शास्त्रानुसार सिर्फ पुरी के लिए हैं। यह सांस्कृतिक नहीं, धार्मिक मान्यता है।
दीघा मंदिर पहुंचे सेवक को हटाया
पश्चिम बंगाल और ओडिशा के बीच टकराव इस कदर है कि पुरी मंदिर प्रशासन ने एक वरिष्ठ सेवक को निलंबित कर दिया। बताया जाता है कि इन सेवक ने पश्चिम बंगाल के दीघा मंदिर के उद्घाटन में हिस्सा लिया था। साथ ही अब प्रशासन भगवान जगन्नाथ से जुड़े शब्दों को पंजीकृत (ट्रेडमार्क) कराने की योजना पर काम कर रहा है।
इधर, दीघा की आस्था का विस्तार
विवाद के केंद्र में जो नया मंदिर है, वह 30 अप्रैल को दीघा में जनता को समर्पित किया गया है। समुद्र के किनारे बना यह भव्य मंदिर एक ओर जहां भगवान जगन्नाथ की नई प्रतिमा का केंद्र बन गया है, वहीं दूसरी ओर धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से भी नया अध्याय रच रहा है।
इसे इस्कॉन (ISKCON) द्वारा संचालित किया जा रहा है। आस्था ऐसी है कि यहां पहले ही महीने 30 लाख से अधिक श्रद्धालु दर्शन कर चुके हैं। यानी प्रतिदिन औसतन एक लाख से अधिक लोग पहुंच रहे हैं।
बंगाल सरकार की सफाई
पश्चिम बंगाल सरकार का कहना है कि इस मंदिर का निर्माण धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया गया है। जगन्नाथ धाम नाम किसी भी प्रकार की प्रतिस्पर्धा या भावनाओं को आहत करने की मंशा से नहीं रखा गया।
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पहले कहा था, देशभर में भगवान जगन्नाथ के मंदिर हैं। दीघा का यह मंदिर श्रद्धालुओं और पर्यटकों दोनों के लिए नया केंद्र है।
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दीघा में धार्मिक पर्यटन से उछाल
दीघा के 850 होटल अब रोजाना 75,000 से 80,000 पर्यटकों की मेजबानी कर रहे हैं। कमरे पहले के मुकाबले महंगे हुए हैं, लेकिन फिर भी लोगों की आस्था में कोई कमी नहीं है। इस्कॉन के उपाध्यक्ष राधारमण दास का कहना है कि जैसे अयोध्या में राम मंदिर ने धार्मिक अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाई दी है, वैसे ही दीघा में भी यह मंदिर सांस्कृतिक और आर्थिक नवोत्थान का प्रतीक बन रहा है।
खास बात यह है कि ओडिशा के बालासोर, मयूरभंज और जाजपुर जैसे जिलों से भी श्रद्धालु दीघा के मंदिर में दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। बालासोर के रहास रंजन सामल कहते हैं, पुरी हमेशा पूजनीय रहेगा, लेकिन दीघा का मंदिर भी नई अनुभूति है।
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