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पुरी के जगन्नाथ धाम में आज, 11 जून को भगवान जगन्नाथ की स्नान पूर्णिमा मनाई जा रही है। धार्मिक मान्यता के मुताबिक इस दिन भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा को पवित्र स्नान कराया जाता है, जिसे स्नान यात्रा कहा जाता है। यह रथ यात्रा की शुरुआत का प्रतीक है, जो आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होती है।
इस दिन भगवान के साथ-साथ उनका रथ भी तैयार किया जाता है, ताकि 15 दिन बाद रथ यात्रा की शुरुआत हो सके। रथ यात्रा का महत्व केवल धार्मिक परंपरा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह श्रद्धा, भक्ति और भारतीय सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी है।
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स्नान यात्रा और भगवान का पवित्र स्नान
पंचांग के मुताबिक, इस दिन जगन्नाथ और उनके भाई-बहन को 108 घड़ों के पानी से स्नान कराया जाता है। इसमें जगन्नाथ को 35 घड़े, बलभद्र को 33 घड़े, देवी सुभद्रा को 22 घड़े और भगवान सुदर्शन को 18 घड़े पानी से नहलाया जाता है।
इस स्नान में तीर्थों से लाया गया जल और अन्य पवित्र द्रव्य जैसे चंदन, गुलाब, घी, और दही मिलाए जाते हैं। यह स्नान भगवान जगन्नाथ के लिए एक पारंपरिक अनुष्ठान है।
स्नान के बाद भगवान का साज-संभार किया जाता है और उन्हें एकांतवास में भेज दिया जाता है। इसके बाद मान्यता के मुताबिक, देवताओं को बुखार हो जाता है और उन्हें दो सप्ताह तक एकांतवास में रखा जाता है। इस दौरान, पुरी के श्रीमंदिर में सार्वजनिक दर्शन भी बंद रहते हैं।
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रथ यात्रा 2025 की तारीख
पंचांग के मुताबिक, इस साल की रथ यात्रा 26 जून 2025 को द्वितीया तिथि के साथ शुरू होगी। यह तिथि दोपहर 1:25 बजे शुरू होकर 27 जून को सुबह 11:19 बजे तक रहेगी।
इस प्रकार, जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत 27 जून 2025, शुक्रवार को होगी। लाखों श्रद्धालु इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं, क्योंकि यह यात्रा केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का अद्भुत प्रदर्शन है।
भगवान क्यों पड़ते हैं बीमार
आपके मन में यह सवाल जरूर उठ रहा होगा कि स्नान यात्रा के बाद भगवान बीमार क्यों पड़ते हैं? इसके पीछे एक रोचक पौराणिक मान्यता जुड़ी हुई है।
माना जाता है कि माधव दास, जो जगन्नाथ के परम भक्त थे, एक बार गंभीर रूप से बीमार पड़े थे। अपनी बीमारी के बावजूद वह भगवान की सेवा में लगे रहे और उन्होंने कभी भी इलाज नहीं लिया। उनकी भक्ति को देखकर भगवान जगन्नाथ ने खुद उनकी सेवा की और यह वादा किया कि वह अपने भक्तों का साथ कभी नहीं छोड़ते।
भगवान ने यह भी कहा कि माधव दास की बीमारी का जो अंतिम 15 दिन का कष्ट था, वह स्वयं अपने ऊपर ले लेते हैं। इसी कारण हर साल स्नान यात्रा के बाद भगवान जगन्नाथ 15 दिन के लिए बीमार पड़ते हैं, जिसे 'अनासर काल' कहा जाता है।
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जगन्नाथ रथ यात्रा
ऐसा माना जाता है कि, 15 दिन के बाद भगवान जगन्नाथ ठीक हो जाते हैं और इस समय को 'नैनासर उत्सव' के रूप में मनाया जाता है, जिसके बाद रथ यात्रा की शुरुआत होती है। भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा के रथों को खींचने के लिए श्रद्धालु उमड़ते हैं।
हर रथ की अपनी अलग-अलग महिमा होती है और उन्हें श्रद्धा भाव से खींचने का कार्य श्रद्धालु स्वयं करते हैं। यह यात्रा न केवल भक्तों के लिए एक पवित्र धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि भारतीय संस्कृति और भक्ति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी है।
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