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निर्जला एकादशी हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत मानी जाती है, जो प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह दिन भगवान विष्णु को समर्पित है, और इस दिन व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त होते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है।
इसे सबसे कठिन एकादशी भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन न केवल अन्न का सेवन वर्जित होता है, बल्कि जल भी त्यागना पड़ता है। इस दिन व्रति को केवल पूजा-अर्चना, भगवान श्री विष्णु का ध्यान और व्रत करना होता है।
इस दिन के विशेष महत्व को पौराणिक कथाओं से भी जोड़ा गया है। 2025 में यह व्रत 6 जून को पड़ रहा है, और इस दिन गंगा स्नान, तर्पण और दान-पुण्य किया जाता है।
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पौराणिक कथा
निर्जला एकादशी से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है, जिसके अनुसार पांडवों के सबसे बलशाली भाई भीमसेन (भीम) ने ऋषि व्यास के आदेश पर इस व्रत को स्वीकार किया। पौराणिक कथा के मुताबिक, भीम को भारी भूख लगती थी और वे अन्न के बिना रहने में असमर्थ थे।
इसके बाद ऋषि व्यास ने उन्हें एक विशेष व्रत का पालन करने का सुझाव दिया, जिससे वह सभी एकादशियों के फल को प्राप्त कर सकें। इस व्रत के माध्यम से भीम ने बिना पानी और अन्न के 24 घंटे उपवासी रहकर व्रत का पालन किया, जिससे उनकी सारी परेशानियां दूर हो गईं और उन्होंने श्री विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त की।
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महत्त्व
निर्जला एकादशी का व्रत पुण्य और मोक्ष की प्राप्ति के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं और सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, यह व्रत उन लोगों के लिए बहुत लाभकारी होता है जो किसी कारणवश अन्य एकादशियों का व्रत नहीं रख पाते हैं।
खासकर, यह व्रत उस व्यक्ति को पूर्ण पुण्य प्रदान करता है, जो किसी कारणवश पानी पीने में सक्षम नहीं है। ये एकादशी का व्रत न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमें संयम, तपस्या और भगवान के प्रति श्रद्धा की भावना को सिखाता है।
इस दिन को न केवल आत्मिक उन्नति के रूप में देखा जाता है, बल्कि यह समाज में समरसता और पारिवारिक सुख-शांति की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है।
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भगवान विष्णु को अर्पित करें ये विशेष भोग
इस दिन भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए कुछ विशेष भोग अर्पित किए जाते हैं। ये भोग न केवल उनके प्रिय हैं, बल्कि समृद्धि और सुख की प्राप्ति का माध्यम भी बनते हैं।
केले का भोग
- केला भगवान विष्णु को अर्पित करने के लिए विशेष रूप से प्रिय है। इसे तुलसी पत्र के साथ अर्पित करने से भगवान प्रसन्न होते हैं। केला एक सात्विक फल है, जो शरीर और मन को शांति प्रदान करता है।
पंचामृत
- पंचामृत, जो दूध, दही, शहद, चीनी और घी का मिश्रण होता है, इसे भगवान विष्णु को अर्पित करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। इससे सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
पंजीरी
- पंजीरी, जो धनिया और सूखे मेवों से बनाई जाती है, यह भोग भगवान विष्णु को अर्पित किया जाता है। पंजीरी का भोग देने से घर में धन-धान्य की वृद्धि होती है।
मखाने की खीर
- मखाने की खीर, जो दूध और मेवों के साथ बनाई जाती है, यह भी भगवान विष्णु को अर्पित की जाती है। यह भोग स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक है।
तुलसी पत्र
- तुलसी पत्र को भगवान विष्णु को अर्पित करना बहुत शुभ माना जाता है। यह पत्र भगवान विष्णु के प्रिय होते हैं और उन्हें अर्पित करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
इस दिन विशेष रूप से दान करना और तर्पण करना भी अत्यधिक पुण्यकारी माना जाता है। गंगा जल का प्रयोग करके तर्पण किया जाता है, जो पितरों को शांति और मोक्ष प्रदान करता है। इसे हर व्यक्ति को श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाना चाहिए, ताकि वह जीवन में संतुष्टि और आत्मिक उन्नति प्राप्त कर सके।
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