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हिंदू पंचांग के मुताबिक, अपरा एकादशी ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को आती है। इसे अचला एकादशी भी कहा जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित होता है।
मान्यता है कि, इस व्रत से सभी कष्ट नष्ट होते हैं और व्यक्ति को अपार पुण्य प्राप्त होता है। इस दिन उपवास रखना अत्यंत शुभ माना जाता है जिससे भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। साथ ही, इस दिन भगवान शिव की भी पूजा की जाती है।
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शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के मुताबिक, ये एकादशी हर वर्ष ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है। इस वर्ष यह व्रत 23 मई 2025 को रखा जाएगा। पंचांग के मुताबिक, इस दिन आयुष्मान और प्रीति योग बन रहा है, साथ ही उत्तराभाद्रपद नक्षत्र का संयोग भी है।
ज्येष्ठ मास की शुरुआत हो चुकी है, जो भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस वर्ष इसका पारण अगले दिन 24 मई, शनिवार को किया जाएगा। पारण का शुभ समय 24 मई की सुबह 6:01 बजे से लेकर 8:39 बजे तक है।
धार्मिक महत्व
अपरा एकादशी ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इसे अचला एकादशी भी कहा जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित होता है।
मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से सभी पापों का नाश होता है और मनुष्य को अपार पुण्य की प्राप्ति होती है। इसे अत्यंत फलदायी और शुभ माना गया है। इस दिन उपवास करना भगवान विष्णु को बहुत प्रिय होता है।
जातक सुबह स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें। एक वेदी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। तुलसी के पत्ते, पीले फूल, फल, मिठाई और पंचामृत अर्पित करें। विष्णु चालीसा और वैदिक मंत्रों का जप करें। अपरा एकादशी कथा पढ़ें और अंत में आरती करें। अगले दिन प्रसाद से व्रत खोलें।
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पौराणिक कथा
शास्त्रों में बताया गया है कि, भगवान श्रीकृष्ण ने सबसे पहले धर्मराज युधिष्ठिर को अपरा एकादशी व्रत का महत्व समझाया था। इस व्रत को करने से प्रेत योनि, ब्रह्म हत्या जैसे गंभीर पापों से मुक्ति मिलती है। पौराणिक कथा के मुताबिक, प्राचीन काल में महीध्वज नाम का एक धर्मात्मा राजा था।
उसका छोटा भाई वज्रध्वज अत्यंत क्रूर, अधर्मी और अन्यायी था, जो अपने बड़े भाई से द्वेष करता था। अपनी सत्ता पाने के लिए उसने एक रात महीध्वज की हत्या कर दी और उसकी देह को जंगल में पीपल के पेड़ के नीचे गाड़ दिया। महीध्वज की अकाल मृत्यु के कारण उसकी आत्मा प्रेत योनि में फंसी और वह उस पीपल के पेड़ पर प्रेतात्मा बनकर रहने लगा।
वहां उसकी उपस्थिति से आसपास के इलाके में भय और उत्पात फैल गया। एक दिन धौम्य ऋषि ने उस प्रेत को देखा और अपनी माया शक्ति से उसकी स्थिति का पता लगाया। ऋषि ने महीध्वज को पीपल के पेड़ से मुक्त कर परलोक विद्या का उपदेश दिया।
मुक्ति के लिए ऋषि ने अपरा एकादशी व्रत रखा और भगवान विष्णु से उसकी रक्षा और मोक्ष की प्रार्थना की। इस व्रत के पुण्य से महीध्वज की आत्मा को प्रेत योनि से मुक्ति मिली। राजा खुश होकर ऋषि का धन्यवाद करते हुए स्वर्ग लोक में प्रस्थान कर गया।
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ऐसे करें शिव जी की पूजा
- बेलपत्र (Bel Patra): भगवान शिव को सबसे प्रिय, यह चढ़ाने से शिव प्रसन्न होते हैं।
- दूध (Milk): दूध से अभिषेक करने पर मानसिक दुखों से मुक्ति मिलती है और घर में समृद्धि आती है।
- धतूरा और भांग (Datura and Bhang): नकारात्मक ऊर्जा दूर कर जीवन में सकारात्मकता लाते हैं।
- शमी के फूल (Shami Flowers): शनिदेव की कृपा के लिए उपयोगी, जीवन की बाधाएं दूर होती हैं।
- अक्षत (Unbroken Rice): इसे चढ़ाने से धन वृद्धि होती है और अन्न-धन की कमी नहीं होती।
- दीपक जलाएं (Light a Lamp): शाम को घी का दीपक जलाना घर में सुख-शांति और लक्ष्मी जी का वास लाता है।
व्रत के फायदे
- सभी पापों का नाश होता है।
- मानसिक शांति और आंतरिक शक्ति मिलती है।
- घर में सुख-समृद्धि का वास होता है।
- माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है।
- जीवन के कष्ट दूर होते हैं और स्वास्थ्य लाभ होता है।
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