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हिन्दू पंचांग के मुताबिक संकष्टी चतुर्थी हर महीने शुक्ल और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत भगवान गणेश को समर्पित होता है और सभी संकटों के निवारण के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।
ज्येष्ठ माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को विशेष रूप से एकदंत संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस दिन भगवान गणेश के एक दांत टूटने की पौराणिक कथा के कारण उनका यह नाम पड़ा।
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शुभ मुहूर्त
हिन्दू पंचांग के मुताबिक, साल 2025 में एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत शुक्रवार, 16 मई को रखा जाएगा। इस दिन चतुर्थी तिथि सुबह 04:02 से प्रारंभ होकर अगले दिन 17 मई को सुबह 05:13 तक रहेगी। चंद्र उदय का समय रात 10:39 बजे है, जो व्रत पूजन का महत्वपूर्ण समय माना जाता है।
एकदंत संकष्टी व्रत का महत्व
एकदंत संकष्टी चतुर्थी के पीछे पौराणिक कथा बहुत प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि, भगवान गणेश परशुराम की अपमानजनक वाणी से नाराज होकर अपने दांत से परशुराम के परशु (कुल्हाड़ी) को तोड़ देते हैं।
परशुराम भी क्रोधित होकर भगवान गणेश पर परशु से प्रहार करते हैं, जिससे गणेश जी का एक दांत टूट जाता है। इस घटना के कारण उन्हें ‘एकदंत’ यानी ‘एक दांत वाले’ के नाम से जाना जाने लगा।
इस दिन भगवान गणेश की पूजा अर्चना कर उनके इस विशेष नाम का स्मरण किया जाता है और भक्त इस व्रत को रखने से सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति पाने की कामना करते हैं।
मान्यता के मुताबिक, इस व्रत से सभी प्रकार के संकट दूर होते हैं। माता-पिता संतान की लंबी आयु और परिवार की खुशहाली के लिए इस व्रत का पालन करते हैं।
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पूजा विधि
- सुबह जल्दी उठें: स्नान आदि के बाद साफ और शुद्ध कपड़े पहनें।
- संकल्प लें: भगवान गणेश के सामने हाथ जोड़कर व्रत का संकल्प लें।
- अभिषेक करें: गंगाजल या शुद्ध जल से भगवान गणेश का अभिषेक करें।
- श्रृंगार करें: पीले वस्त्र, चंदन, हल्दी और कुमकुम से सजाएं।
- भोग अर्पित करें: दूर्वा घास, लाल-पीले फूल, मोदक या लड्डू भोग में चढ़ाएं।
- मंत्र जाप: गणेश मंत्र का जाप करें या गणेश चालीसा पढ़ें।
- आरती करें: दीप जलाकर भगवान की आरती करें।
- रात्रि पूजा: चंद्र उदय के बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें और व्रत खोलें।
श्री गणेशजी की आरती
जय गणेश, जय गणेश,जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥
एकदन्त दयावन्त,चार भुजाधारी।
माथे पर तिलक सोहे,मूसे की सवारी॥
माथे पर सिन्दूर सोहे,मूसे की सवारी॥
पान चढ़े फूल चढ़े,और चढ़े मेवा।
हार चढ़े, फूल चढ़े,और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे,सन्त करें सेवा॥
जय गणेश, जय गणेश,जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥
अँधे को आँख देत,कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत,निर्धन को माया॥
'सूर' श्याम शरण आए,सफल कीजे सेवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥
दीनन की लाज राखो,शम्भु सुतवारी।
कामना को पूर्ण करो,जग बलिहारी॥
जय गणेश, जय गणेश,जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती,पिता महादेवा॥
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