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हिंदू धर्म में चातुर्मास को अत्यधिक शुभ माना जाता है। पंचांग के मुताबिक यह आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है। इस दौरान भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। पौराणिक कथा के मुताबिक इसका प्रमुख कारण है राजा बलि को दिए गए भगवान विष्णु के वचन का पालन।
इस चार महीने के दौरान भगवान विष्णु पाताल लोक में निवास करते हैं, जबकि भगवान शिव सृष्टि का संचालन करते हैं। यह समय विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा के लिए महत्वपूर्ण होता है और यह अवधि धार्मिक कार्यों के लिए अत्यंत फलदायक मानी जाती है।
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राजा बलि और भगवान विष्णु की कथा
भगवान विष्णु के पाताल में निवास करने की कथा राजा बलि से जुड़ी हुई है, जो हिंदू धर्म में एक प्रसिद्ध और प्रेरणादायक कहानी है।
राजा बलि का पराक्रम और दानवीरता
राजा बलि एक महान और पराक्रमी राजा थे। उनके दान की ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी थी और वह न केवल अपने राज्य में, बल्कि स्वर्गलोक में भी अपने प्रभाव से जाने जाते थे।
उनकी दानवीरता का इतना असर था कि उन्होंने स्वर्गलोक पर अपना अधिकार जमा लिया था। इस कारण देवताओं ने भगवान विष्णु से मदद की गुहार लगाई, क्योंकि स्वर्गलोक के देवता राजा बलि के प्रभाव से परेशान थे।
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वामन अवतार का आगमन
भगवान विष्णु ने देवताओं की प्रार्थना पर वामन अवतार लिया। वामन भगवान विष्णु का बौना रूप था, जो शांति और सरलता का प्रतीक था।
भगवान विष्णु वामन रूप में राजा बलि के पास गए और उनसे तीन पग भूमि का दान मांगा। राजा बलि, जो अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध थे, बिना किसी संकोच के इस दान को स्वीकार कर लिया।
वामन का विशाल रूप और तीसरा पग
भगवान विष्णु ने वामन रूप में तीन पग भूमि का वादा लिया था, लेकिन जब राजा बलि ने अपनी सहमति दी, तो भगवान विष्णु ने अपनी वास्तविक विराट रूप धारण किया। भगवान ने पहले दो पग में पृथ्वी और स्वर्गलोक को नाप लिया।
तीसरे पग के लिए कोई स्थान नहीं बचा, तो राजा बलि ने भगवान विष्णु के सामने अपना सिर झुका दिया। भगवान ने तीसरे पग को राजा बलि के सिर पर रख दिया और उन्हें पाताल लोक में निवास करने का आदेश दिया।
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विष्णु जी का पाताल लोक में निवास
भगवान विष्णु के पाताल लोक में निवास करने की कहानी प्राचीन हिंदू कथा से जुड़ी है। राजा बलि भगवान विष्णु से प्रसन्न होकर उनसे वरदान मांगने लगे। भगवान विष्णु ने उन्हें वरदान देने का वादा किया। राजा बलि ने भगवान से कहा, "आप मेरे साथ पाताल लोक में निवास करें, ताकि मैं आपके साथ हर पल बिता सकूं।"
भगवान विष्णु ने उनका यह वरदान स्वीकार किया और चातुर्मास के दौरान पाताल लोक में निवास करने का वचन दिया। इस प्रकार, भगवान विष्णु ने पाताल लोक में योग निद्रा में रहकर राजा बलि को वचन निभाया। इस समय के दौरान भगवान विष्णु योग निद्रा में रहते हैं, और यह अवधि भगवान शिव के लिए सृष्टि का संचालन करने का समय होती है। भगवान विष्णु के इस विश्राम के दौरान कोई भी शुभ कार्य, जैसे विवाह और अन्य मांगलिक कार्य, नहीं किए जाते।
चातुर्मास का धार्मिक महत्व
चातुर्मास के दौरान भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है। माना जाता है कि इस समय में भगवान शिव की पूजा करने से दोगुना पुण्य मिलता है। इसके साथ ही इस समय धार्मिक कार्यों और तीर्थ यात्रा का भी महत्व बढ़ जाता है।
इन चार महीनों में अधिक से अधिक पूजा और धार्मिक कार्य करने से अक्षय फलों की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त, इस अवधि के दौरान भक्तों को भगवान विष्णु की योग निद्रा का आदान-प्रदान करने के लिए समय मिलता है।
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