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Janmashtami 2025: श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व हिंदू धर्म में एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह पर्व भगवान विष्णु के आठवें अवतार भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। हर साल भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को यह उत्सव मनाया जाता है।
इस दिन भक्त उपवास रखते हैं, भजन-कीर्तन करते हैं और आधी रात को भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का जश्न मनाते हैं। इस बार, वर्ष 2025 में जन्माष्टमी को लेकर कुछ विशेष संयोग बन रहे हैं।
ज्योतिषीय गणनाओं के मुताबिक, इस साल जन्माष्टमी पर निशितव्यापिनी तिथि यानी भाद्रपद कृष्ण अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र दोनों एक साथ नहीं मिल रहे हैं, ऐसा योग कई वर्षों बाद बना है। इस स्थिति में जन्माष्टमी 2025 कब मनाई जाएगी और पूजा का शुभ मुहूर्त क्या होगा यह जानना भक्तों के लिए बेहद जरूरी है।
जन्माष्टमी शुभ मुहूर्तज्योतिषशास्त्र के मुताबिक, इस बार जन्माष्टमी का व्रत 16 अगस्त 2025 को मनाना शास्त्र सम्मत होगा। यहां तिथि और मुहूर्त से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी दी गई है:
इस वर्ष रोहिणी नक्षत्र का क्षय है। ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक, जब कोई नक्षत्र एक दिन सूर्योदय के बाद शुरू होकर दूसरे दिन सूर्योदय से पहले ही समाप्त हो जाए, तो उसे क्षय नक्षत्र कहा जाता है। इसलिए, जन्माष्टमी 2025 के दिन रोहिणी नक्षत्र का योग नहीं मिल रहा है। इस स्थिति में, वैष्णव और शैव संप्रदाय के लोग 16 अगस्त को ही जन्माष्टमी का व्रत मनाएंगे। |
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स्मार्त और वैष्णव संप्रदाय का निर्णय
ज्योतिषीय गणनाओं के मुताबिक, स्मार्त संप्रदाय (जो गृहस्थ जीवन में रहते हुए पूजा करते हैं) 15 अगस्त को ही जन्माष्टमी मनाएंगे, क्योंकि उनके लिए अष्टमी तिथि का अधिक महत्व है।
वहीं, वैष्णव संप्रदाय (जो साधु-संत और मठों में रहते हैं) 16 अगस्त को जन्माष्टमी मनाएंगे क्योंकि उनके लिए निशितव्यापिनी तिथि यानी मध्यरात्रि को अष्टमी तिथि का होना अधिक महत्वपूर्ण है।
हालांकि कई विद्वानों के मुताबिक, जब दो दिन अष्टमी तिथि मिल रही हो तो दूसरे दिन ही भगवान का जन्मोत्सव मनाना चाहिए, इसलिए 16 अगस्त को जन्माष्टमी मनाना अधिक शास्त्र सम्मत होगा।
जन्माष्टमी का शास्त्रों में उल्लेख
श्रीमद्भागवत पुराण के मुताबिक, भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि, बुधवार, रोहिणी नक्षत्र और वृष राशि में मध्यरात्रि में हुआ था। यह योग अत्यंत दुर्लभ माना जाता है। शास्त्रों में इसका विशेष उल्लेख है:
"अर्द्धरात्रे तु रोहिण्यां यदा कृष्णाष्टमी भवेत्। तस्यामभ्यर्चनं शौरिहन्ति पापों त्रिजन्मजम्।"
अर्थात, जब अष्टमी तिथि, जन्म के समय रोहिणी नक्षत्र और हर्षण योग में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत और जन्मोत्सव मनाया जाता है, तो भक्तों के तीन जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। यह योग शत्रुओं का दमन करने वाला भी होता है।
इसी प्रकार, निर्णय सिंधु में भी एक श्लोक है:
"त्रेतायां द्वापरे चैव राजन् कृतयुगे तथा। रोहिणी सहितं चेयं विद्वद्भि: समुपपोषिता।"
अर्थात, हे राजन, त्रेता, द्वापर और सतयुग में भी विद्वानों ने रोहिणी नक्षत्र युक्त अष्टमी तिथि में ही उपवास किया था, इसलिए कलियुग में भी इसी योग को उत्तम माना जाए। यह योग विद्वानों और श्रद्धालुओं को अच्छी प्रकार से पोषित करने वाला होता है।
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जन्माष्टमी में पूजा विधि
जन्माष्टमी के व्रत और पूजा विधि का पालन करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
- व्रत का संकल्प: व्रत के एक दिन पहले सप्तमी को हल्का और सात्विक भोजन करें। जन्माष्टमी के दिन सुबह स्नान करके साफ कपड़े पहनें और सूर्य, सोम, पवन, दिग्पति, भूमि, आकाश, यम और ब्रह्मा को प्रणाम करके व्रत का संकल्प लें।
- प्रसूति गृह की स्थापना: दोपहर में काले तिल का जल छिड़ककर देवकी जी के लिए प्रसूति गृह बनाएं। इस सूतिका गृह में सुंदर बिछौना बिछाकर कलश स्थापित करें।
- मूर्ति की स्थापना: भगवान श्रीकृष्ण और माता देवकी की मूर्ति या सुंदर चित्र स्थापित करें। देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी जी का नाम लेते हुए उनका विधिवत पूजन करें।
- व्रत का पारण: यह व्रत रात 12 बजे के बाद ही खोला जाता है। इस व्रत में अनाज का उपयोग नहीं किया जाता। व्रती फलाहार के रूप में कुट्टू के आटे कीपकौड़ी, मावे की बर्फी, सिंघाड़े के आटे का हलवा आदि खा सकते हैं।
- भोग: भगवान लड्डू गोपाल को माखन मिश्री का भोग सबसे प्रिय है। इसके अलावा, आप केसर वाला घेवर, पेड़ा, मखाने की खीर, रबड़ी, मोहनभोग, रसगुल्ला, लड्डू आदि का भोग भी लगा सकते हैं।
जन्माष्टमी का व्रत करने से मिलने वाले लाभ
श्रीमद्भागवत पुराण के मुताबिक, जब जन्माष्टमी पर ऐसा दुर्लभ संयोग बनता है, तो इस मौके को गंवाना नहीं चाहिए। इस दिन व्रत और पूजा करने से:
- तीन जन्मों के जाने-अनजाने हुए पापों से मुक्ति मिलती है।
- भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
- व्यक्ति को भगवत कृपा की प्राप्ति होती है।
- कई जन्मों से प्रेत योनि में भटक रही आत्माओं को मुक्ति मिल जाती है।
- भगवान कृष्ण के पूजन से सिद्धि की प्राप्ति होती है और सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।
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