जन्माष्टमी स्पेशल: कौन था वो अहंकारी राजा जो श्रीकृष्ण की नकल करके खुद को समझ बैठा था भगवान

कृष्ण जन्माष्टमी 2025 पर पौंड्रक की कहानी से यह सिखने को मिलता है कि नकली पहचान कभी असली सफलता का विकल्प नहीं हो सकती। भगवान श्रीकृष्ण ने अहंकारी राजा पौंड्रक को उसकी असली पहचान का अहसास कराते हुए उसे नष्ट कर दिया।

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Kaushiki
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Janmashtami Celebrations: कृष्ण जन्माष्टमी 2025 का पावन पर्व इस साल 16 अगस्त, शनिवार को मनाया जाएगा। यह वह दिन है जब भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भगवान श्रीकृष्ण ने धरती पर जन्म लिया था।

श्रीकृष्ण का नाम सुनते ही उनके दिव्य स्वरूप, मनमोहक मुस्कान और उनकी अद्भुत लीलाओं की याद आ जाती है। उनकी हर एक लीला सिर्फ एक कहानी नहीं बल्कि जीवन को बेहतर बनाने की एक गहरी सीख है।

ऐसी ही एक कम चर्चित लेकिन बहुत ही महत्वपूर्ण कथा एक अहंकारी राजा पौंड्रक की है, जिसने खुद को असली श्रीकृष्ण घोषित कर दिया था। यह कहानी हमें बताती है कि असली और नकली में क्या फर्क होता है और अहंकार का अंत हमेशा बुरा ही होता है।

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कौन था अहंकारी राजा पौंड्रक

पौराणिक कथा के मुताबिक महाभारत काल में, काशी के पास एक शक्तिशाली राजा था जिसका नाम पौंड्रक था। वह बहुत ही अहंकारी और घमंडी था। अपने विशाल साम्राज्य और ताकत के कारण वह खुद को भगवान से भी बढ़कर समझने लगा था।

पौंड्रक की असली दिक्कत यह थी कि वह भगवान श्रीकृष्ण से बहुत ईर्ष्या करता था। वह उनकी बढ़ती हुई लोकप्रियता और लोगों के बीच उनके सम्मान को बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था। उसने खुद को असली श्रीकृष्ण घोषित करने का एक अजीब सा तर्क दिया।

उसने दावा किया कि उसके पिता का नाम भी वासुदेव था, इसलिए वह ही असली वासुदेव कृष्ण है। अपने इस दावे को सच साबित करने के लिए उसने अपनी मायावी शक्तियों का सहारा लिया और हूबहू भगवान श्रीकृष्ण की नकल करने लगा।

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कैसे किया पौंड्रक ने भगवान श्रीकृष्ण का अपमान

राजा पौंड्रक सिर्फ खुद को कृष्ण कहकर नहीं रुका, उसने उनके दिव्य प्रतीकों का भी अपमान किया। उसने अपने लिए नकली सुदर्शन चक्र, कौस्तुभ मणि और मोर पंख बनवाए।

उसने ठीक वैसे ही पीले रंग के वस्त्र (पीतांबर) पहने जैसे श्रीकृष्ण पहनते थे। उसने अपनी पूरी प्रजा को यह विश्वास दिलाया कि वह ही असली कृष्ण है और हर किसी को उसकी पूजा करनी चाहिए। उसने अपने आसपास के क्षेत्रों में भी इसका खूब प्रचार किया।

जब उसे लगा कि अब वह अपनी नकली छवि को मजबूत कर चुका है, तो उसने एक दूत के हाथ भगवान श्रीकृष्ण के पास एक अपमानजनक संदेश भेजा। उसने श्रीकृष्ण को चुनौती दी कि या तो वे मथुरा छोड़कर चले जाएं या फिर उससे युद्ध करें, क्योंकि धरती पर एक ही श्रीकृष्ण हो सकते हैं।

पौंड्रक ने यह भी कहा कि श्रीकृष्ण को तुरंत ही अपने सभी दिव्य प्रतीकों को त्याग देना चाहिए, क्योंकि उनके असली अधिकारी वह है। इस घमंड भरे संदेश को सुनकर श्रीकृष्ण मुस्कुराए और उन्होंने युद्ध की चुनौती स्वीकार कर ली।

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जब श्रीकृष्ण ने स्वीकार की चुनौती

श्रीकृष्ण अपनी सेना लेकर काशी पहुंचे और युद्ध शुरू हुआ। युद्ध के मैदान में श्रीकृष्ण ने देखा कि पौंड्रक का पूरा दिखावा उन्हीं की तरह था- पीले वस्त्र, मोर पंख और नकली सुदर्शन चक्र। लेकिन असली और नकली में हमेशा एक फर्क होता है।

पौंड्रक का अहंकार उसकी आंखों में साफ झलक रहा था, जबकि श्रीकृष्ण का तेज और दिव्य स्वरूप अद्वितीय था। युद्ध में श्रीकृष्ण ने अपने असली सुदर्शन चक्र को पौंड्रक पर छोड़ दिया।

श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र की शक्ति के आगे पौंड्रक का नकली चक्र हवा में ही टूट गया और उसके साथ-साथ उसका अहंकार और घमंड भी चूर-चूर हो गया।

सुदर्शन चक्र ने पौंड्रक का सिर उसके धड़ से अलग कर दिया। इस तरह, श्रीकृष्ण ने उस अहंकारी राजा का अंत कर दिया, जिसने खुद को भगवान बताने की मूर्खता की थी।

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श्रीकृष्ण के दिव्य प्रतीक का महत्व

  • सुदर्शन चक्र: यह भगवान विष्णु का सबसे शक्तिशाली हथियार है, जो अधर्म का नाश करता है। यह ज्ञान, न्याय और सत्य का प्रतीक है। पौंड्रक ने इसका एक नकली रूप बनवाया था, जो असली की शक्ति के आगे कुछ भी नहीं था।
  • कौस्तुभ मणि: यह एक दिव्य मणि है, जो भगवान विष्णु के हृदय में निवास करती है। यह ब्रह्मांड की चेतना और दिव्यता का प्रतीक है। पौंड्रक ने इसका भी नकली रूप धारण किया था।
  • मोर पंख: यह श्रीकृष्ण के मुकुट की शोभा बढ़ाता है। यह प्रेम, सौंदर्य और आनंद का प्रतीक है। पौंड्रक ने इसकी भी नकल की, लेकिन वह उस प्रेम और भक्ति का प्रतीक नहीं बन पाया जो मोर पंख दर्शाता है।

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पौंड्रक की कथा से क्या सीख मिलती है

पौंड्रक की यह कहानी सिर्फ एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि आज के समय के लिए भी एक बहुत बड़ा संदेश है। यह हमें सिखाती है कि:

  • नकली बनने की कोशिश मत करो: एक नकली छवि या पहचान कभी भी असली गुणों और मेहनत की जगह नहीं ले सकती। पौंड्रक ने श्रीकृष्ण की नकल करने की कोशिश की, लेकिन वह उनके जैसा नहीं बन पाया।
  • असली गुणों को पहचानो: हमें अपने असली गुणों को पहचानना चाहिए और उन्हें निखार कर आगे बढ़ना चाहिए। सफलता हमेशा अपनी असली पहचान और मेहनत से मिलती है।
  • अहंकार का अंत: अहंकार और घमंड हमेशा पतन की ओर ले जाता है। पौंड्रक का अहंकार ही उसके विनाश का कारण बना।

आज के सोशल मीडिया के दौर में जहां हर कोई एक नकली छवि बनाने की कोशिश करता है, यह कहानी हमें याद दिलाती है कि हमारी असली पहचान और आंतरिक शक्ति ही हमें महान बनाती है।

तो इस जन्माष्टमी पर जब हम असली श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाएं, तो हमें पौंड्रक की कथा को भी याद रखना चाहिए। हमें अपने जीवन में हमेशा सत्य और ईमानदारी के मार्ग पर चलना चाहिए।

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