क्यों प्रिय है भगवान शिव को भांग और धतूरा, समुद्र मंथन से जुड़ा है इसका रहस्य

समुद्र मंथन में विष पीने से शिव की जलन शांत करने के लिए भांग और धतूरा अर्पित किया गया। लेकिन क्या यह सिर्फ परंपरा है या इसके पीछे कोई गहरा रहस्य छिपा है? जानिए इसका आध्यात्मिक और औषधीय महत्व...

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Kaushiki
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भगवान शिव को भांग और धतूरा चढ़ाने की परंपरा सदियों पुरानी है। हिंदू धर्म में शिवलिंग पर अलग-अलग वस्तुएं चढ़ाने का विशेष महत्व है, लेकिन भांग और धतूरा विशेष रूप से शिव को अर्पित किए जाते हैं। यह परंपरा शिव पुराण में वर्णित समुद्र मंथन की घटना से जुड़ी हुई है, जब शिव ने सृष्टि को बचाने के लिए हालाहल विष का पान किया था। इन वस्तुओं को चढ़ाने से भगवान भोलेनाथ शीघ्र प्रसन्न होते हैं और भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। सावन के महीने में तो इसका विशेष महत्व होता है, जब भक्त पूरे श्रद्धा और भक्ति भाव से शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, धतूरा और भांग अर्पित करते हैं।

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शिव का नीलकंठ रूप

शिव पुराण के मुताबिक, देवताओं और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन के दौरान कई अनमोल वस्तुएं निकलीं, लेकिन उनके साथ ही एक अत्यंत विषैला पदार्थ "हालाहल विष" भी उत्पन्न हुआ। ऐसा माना जाता है कि, यह विष इतना प्रचंड था कि अगर वह सृष्टि में फैल जाता, तो सम्पूर्ण ब्रह्मांड नष्ट हो सकता था। इस विकट परिस्थिति में सभी देवताओं ने भगवान शिव से सहायता की प्रार्थना की। करुणा के सागर महादेव ने बिना किसी संकोच के समस्त विष को अपने कंठ में धारण कर लिया, लेकिन उसे अपने पेट में नहीं जाने दिया। इस कारण उनका गला नीला पड़ गया और वे "नीलकंठ" कहलाए।

शिव जी के विष पीने से हुए व्याकुल

माना जाता है कि, हालाहल विष अत्यंत शक्तिशाली था, जिसके कारण भगवान शिव के शरीर में तीव्र जलन और गर्मी उत्पन्न हो गई। इससे वे व्याकुल हो गए और उनकी चेतना खत्म होने लगी। देवताओं के लिए यह एक गंभीर संकट बन गया। भोलेनाथ की इस स्थिति को देखकर सभी देवता और ऋषि-मुनि समाधान खोजने लगे। इस विष के प्रभाव को शांत करने के लिए उपाय किए जाने लगे ताकि भगवान शिव को राहत मिल सके।

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भांग-धतूरा का महत्व

शिव पुराण के मुताबिक, माना जाता है कि इस विकट परिस्थिति में माता आदि शक्ति प्रकट हुईं और उन्होंने देवताओं को उपाय सुझाया। उन्होंने कहा कि शिव जी की इस जलन और विष के प्रभाव को कम करने के लिए औषधीय गुणों वाली जड़ी-बूटियों का उपयोग किया जाए। इसके बाद, देवताओं ने धतूरा और भांग को भगवान शिव के मस्तक पर रखा और उनके सिर पर जलाभिषेक किया। ऐसा करने से विष के प्रभाव को कम करने में सहायता मिली और भगवान शिव की व्याकुलता धीरे-धीरे समाप्त होने लगी।

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भांग और धतूरा चढ़ाने की परंपरा

माना जाता है कि, इस उपचार के प्रभावी होने के बाद, भगवान शिव पूरी तरह से होश में आ गए। यह घटना इतनी महत्वपूर्ण मानी गई कि तभी से शिवलिंग पर भांग और धतूरा चढ़ाने की परंपरा आरंभ हो गई। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, भांग और धतूरा भगवान शिव की व्याकुलता को दूर करने में सहायक सिद्ध हुए थे, इसलिए ये वस्तुएं उनके लिए अत्यंत प्रिय मानी जाती हैं। भक्तगण श्रद्धा और भक्ति के साथ शिवलिंग पर भांग, धतूरा और जल अर्पित करते हैं ताकि भोलेनाथ की कृपा उन पर बनी रहे।

धतूरा और भांग का औषधीय महत्व

माना जाता है कि, आयुर्वेद में भी धतूरा और भांग को अत्यंत प्रभावशाली औषधि के रूप में जाना जाता है। धतूरे में विषनाशक गुण होते हैं और यह विषैले प्रभाव को कम करने में सहायक होता है। इसके अलावा, यह औषधि पुराने बुखार, जोड़ों के दर्द और त्वचा संबंधी समस्याओं के उपचार में भी प्रयुक्त होती है। भांग को भी एक औषधीय जड़ी-बूटी माना जाता है, जो मानसिक शांति देने और तनाव को कम करने में सहायक होती है। धार्मिक दृष्टि से देखें तो ये दोनों पदार्थ शिव जी को अर्पित करने से विशेष आध्यात्मिक लाभ मिलता हैं।

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ज्योतिष शास्त्र में धतूरे का विशेष स्थान

धतूरे को ज्योतिष शास्त्र में राहु ग्रह का कारक माना जाता है। माना जाता है कि, जिन जातकों की कुंडली में राहु से संबंधित दोष होते हैं, जैसे कालसर्प दोष और पितृ दोष, वे शिव जी को धतूरा अर्पित करके इन दोषों को कम कर सकते हैं। यह ग्रहों की अशुभता को दूर करने और जीवन में शांति बनाए रखने में सहायक होता है। इसलिए भक्तगण शिवलिंग पर धतूरा चढ़ाकर भोलेनाथ की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं और जीवन के कष्टों से मुक्ति पाते हैं।

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