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मध्यप्रदेश के भोपाल से 32 किमी दूर स्थित भोजपुर शिव मंदिर में विश्व का सबसे बड़ा शिवलिंग है। इस मंदिर का निर्माण परमार वंश के राजा भोज ने कराया था, लेकिन यह अधूरा रह गया। यहां स्थित शिवलिंग दुनिया का सबसे बड़ा शिवलिंग है, जो एक ही पत्थर से तराशा गया है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, इस मंदिर का निर्माण एक रात में पूरा करने का प्रयास किया गया था, लेकिन सूर्योदय से पहले कार्य अधूरा रह गया।
यह मंदिर एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है और इसके समीप से बेतवा नदी बहती है। यह मंदिर पांडवों के अज्ञातवास से भी जुड़ा हुआ है। मकर संक्रांति और शिवरात्रि के अवसर पर यहां मेले का आयोजन होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु भाग लेते हैं। मंदिर के अधूरे निर्माण के कारण इसे "अधूरा मंदिर" भी कहा जाता है।
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क्यों अधूरा है ये शिव मंदिर
मंदिर के अधूरे निर्माण को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। मान्यता है कि, इस मंदिर का निर्माण केवल एक ही रात में पूरा करने का प्रयास किया गया था। लेकिन सूर्योदय से पहले ही कार्य अधूरा रह गया और उसके बाद निर्माण कार्य कभी पूरा नहीं हो सका। कहा जाता है कि, मंदिर के केवल सिर तक का ही निर्माण हो पाया था। इसके बाद, यह मंदिर आज भी अधूरा है और इसकी अधूरी संरचना इतिहास की कई कहानियों को समेटे हुए है।
मंदिर की अद्वितीय वास्तुकला
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक, इस मंदिर का निर्माण भारत में इस्लामिक शासन के आने से पहले किया गया था। मंदिर का दरवाजा अन्य किसी भी मंदिर के मुकाबले काफी बड़ा है और इसकी छत पर अधूरा गुंबद स्थित है। यह मंदिर वास्तुकला और शिल्पकला का अद्भुत उदाहरण है। इसकी विशालता और शिवलिंग की संरचना इसे अनोखा बनाती है। यहां भगवान शिव की पूजा का तरीका भी काफी विशेष है।
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पूजा-अर्चना की अनोखी परंपरा
मान्यताओं के मुताबिक, भोजपुर शिव मंदिर में पूजा-अर्चना का तरीका अन्य मंदिरों से अलग है। यहां स्थित शिवलिंग इतना विशाल है कि श्रद्धालु इसे खड़े होकर भी देख सकते हैं। इस मंदिर में शिवलिंग पर जल चढ़ाने के लिए जलहरी का उपयोग होता है। माना जाता है कि, पहले श्रद्धालु स्वयं जलहरी तक जाकर पूजा कर सकते थे, लेकिन अब यह कार्य केवल पुजारी ही कर सकते हैं। यहां भगवान शिव के अभिषेक के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं।
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पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, महाभारत काल में अज्ञातवास के दौरान पांडवों और माता कुंती ने इस मंदिर में भगवान शिव की पूजा-अर्चना की थी। कहा जाता है कि जैसे ही सुबह हुई, पांडव अदृश्य हो गए और मंदिर अधूरा ही रह गया। यह कथा मंदिर की पवित्रता और उसके ऐतिहासिक महत्व को और अधिक बढ़ा देती है। श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां पूजा करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।
साल में दो बार लगता है मेला
भोजपुर मंदिर में साल में दो बार भव्य मेले का आयोजन होता है। पहला मेला मकर संक्रांति के दौरान और दूसरा शिवरात्रि के समय लगता है। इन अवसरों पर दूर-दराज से लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं। मेले के दौरान मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना और धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। श्रद्धालुओं की भीड़ इस मंदिर के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को दर्शाती है।
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