मध्यप्रदेश के सागर जिले के राहतगढ़ कस्बे में करीब 900 वर्ष पुराना एक अद्भुत शिव मंदिर स्थित है। इस मंदिर में एक ही जलहरी ( शिवलिंग स्थापित करने का पात्र ) में 108 शिवलिंग स्थापित हैं, और एक लोटा जल चढ़ाने से सभी शिवलिंगों का एक साथ अभिषेक हो जाता है।
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सावन में पूजा के विशेष समय
हिंदू धर्म में सावन महीने को भगवान शिव की पूजा का विशेष समय माना जाता है। पुराणों के अनुसार श्रावण मास में शिव पूजा विशेष फलदायी होती है। बात करें पूरे भारत कि तो यहां भगवान शिव के कई प्रसिद्ध मंदिर और मठ हैं, लेकिन कुछ धार्मिक स्थल ऐसे भी हैं जहां के बारे में बहुत कम लोग जानते हैं। ये धार्मिक स्थल अपनीअद्वितीयता के कारण विशेष महत्व रखते हैं।
सागर से 35 किमी दूर स्थित है मंदिर
राहतगढ़ का यह शिव मंदिर सागर जिले की पश्चिम दिशा में, सागर से 35 किलोमीटर दूर सागर-भोपाल रोड पर स्थित है। यह कस्बा अपनी ऐतिहासिक रहस्यमय और रोमांचक विरासतों के लिए जाना जाता है।
जानें क्या है मंदिर की विशेषताएं
यह शिव मंदिर पूर्णतः वास्तु शास्त्र के हिसाब से पत्थर से निर्मित है। मंदिर के प्रवेश द्वार पर नंदी विराजमान हैं, और गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित है। इस शिवलिंग को एक ही पत्थर पर निर्मित किया गया है। मुख्य शिवलिंग की जलहरी में छोटे-छोटे 108 पूर्ण शिवलिंग स्थापित हैं, जो हिंदू मान्यताओं में दुर्लभ माने जाते हैं।
मंदिर की एक परिक्रमा से 108 का फल
मंदिर के वर्तमान पुजारी बबलू महाराज और उनके पूर्वज बताते हैं कि इस शिवलिंग पर एक लोटा जल चढ़ाने से 108 शिवलिंगों का स्वतः अभिषेक हो जाता है। इसके अलावा, मंदिर की एक परिक्रमा करने से 108 परिक्रमा का फल प्राप्त होता है।
राहतगढ़ का इतिहास
राहतगढ़ का नाम मुगलकाल में मिला, जिसका अर्थ है 'शांति का गढ़ या स्थल'। इस कस्बे का प्राचीन इतिहास स्थानीय स्तर पर अधिक ज्ञात नहीं है। लोग इसे महाभारत काल और आल्हा-ऊदल के समय से जोड़ते हैं।
ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार यहां परमार, चंदेल, गौंड और मुगल राजाओं का आधिपत्य रहा। 18वीं शताब्दी में यह सिंधिया के हाथ में चला गया और बाद में अंग्रेजों के कब्जे में रहा। राहतगढ़ में परमार वंश के राजा भोज के उत्तराधिकारी जयसिंह के समय का एक खंडित शिलालेख मिला था, जिसमें इस जगह का नाम "उपराहड मंडल" लिखा है।
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