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चंद्र ग्रहण 2025: 7 सितंबर 2025 की रात आसमान में एक दुर्लभ और मनमोहक खगोलीय घटना देखने को मिला। यह साल का आखिरी पूर्ण चंद्र ग्रहण 2025 था, जिसने भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में 'ब्लड मून' का शानदार नजारा पेश किया।
यह ग्रहण रात 9:58 बजे शुरू हुआ और 3 घंटे 28 मिनट तक चला, जिससे यह 2022 के बाद का सबसे लंबा चंद्र ग्रहण बन गया। खगोल विज्ञान के जानकारों और आम लोगों दोनों के लिए यह एक यादगार अनुभव था जिसे बिना किसी विशेष उपकरण के खुली आंखों से देखा जा सका।
लाखों लोगों ने देखा इस अद्भुत नजारे को
पूरे भारत में, नई दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, जयपुर, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद और लखनऊ जैसे प्रमुख शहरों में लाखों लोगों ने इस अद्भुत नजारे का दीदार किया।
यह नजारा तब और भी खास हो गया जब चंद्रमा का रंग काला या नीला नहीं, बल्कि गहरा लाल हो गया, जिसे 'ब्लड मून' कहा जाता है। यह घटना तब होती है जब पृथ्वी पूरी तरह से चंद्रमा को ढक लेती है और सूर्य का प्रकाश उस तक सीधे नहीं पहुंच पाता।
इस खगोलीय घटना को भोपाल, इंदौर, उज्जैन, रायसेन सहित पूरे प्रदेश में लोगों ने देखा। कई लोग घरों की छतों से तो कुछ खुले मैदानों में इसका दीदार करते नजर आए।
धार्मिक मान्यताओं के चलते चंद्रग्रहण से पहले ही उज्जैन के विश्व प्रसिद्ध महाकाल मंदिर समेत प्रदेश के सभी छोटे-बड़े मंदिरों के पट बंद कर दिए गए थे।
जहां आम दिनों में रात 11 बजे मंदिर बंद होते हैं, वहीं ग्रहण के कारण समय से पहले ही बंद कर दिए गए। हालांकि, इस दौरान कई जगहों पर पाठ-पूजा, जप-आराधना और भजन-कीर्तन का दौर चलता रहा।
ब्लड मून का वैज्ञानिक कारण
वैज्ञानिकों के मुताबिक, पूर्ण चंद्र ग्रहण के दौरान 'ब्लड मून' का नजारा क्यों दिखाई देता है, इसके पीछे एक रोचक वैज्ञानिक कारण है। जब पृथ्वी सूर्य और चंद्रमा के बीच आती है तो पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है।
हालांकि, पृथ्वी का वायुमंडल सूर्य के प्रकाश को पूरी तरह से रोक नहीं पाता। यह वायुमंडल नीली रोशनी को बिखेर देता है (जिसे 'रेले स्कैटरिंग' कहते हैं), जबकि लाल और नारंगी रंग की रोशनी वायुमंडल से होकर चंद्रमा तक पहुंचती है।
यही कारण है कि चंद्रमा हमें लाल या नारंगी रंग का दिखाई देता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, चंद्र ग्रहण (Chandra Grahan) खगोल विज्ञान की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं। ये घटनाएं पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य के बीच के जटिल संबंधों को समझने में मदद करती हैं।
पृथ्वी की छाया दो हिस्सों में बंटी होती है: एक भीतरी गहरा भाग जिसे 'उंब्रा' कहा जाता है और एक बाहरी हल्का भाग जिसे 'पेनुंब्रा' कहा जाता है।
जब चंद्रमा पूरी तरह से उंब्रा में प्रवेश करता है, तभी पूर्ण चंद्र ग्रहण होता है। यह घटना वैज्ञानिकों को पृथ्वी और चंद्रमा की कक्षाओं और उनकी गति से जुड़ी कई महत्वपूर्ण जानकारियां प्रदान करती है।
ज्योतिषीय और धार्मिक महत्व
धार्मिक और ज्योतिषीय मान्यताओं के मुताबिक, चंद्र ग्रहण 2025 का विशेष महत्व है। इस बार का ग्रहण इसलिए और भी खास था क्योंकि यह पितृ पक्ष की शुरुआत के साथ हुआ ऐसा संयोग लगभग 122 साल बाद बना था।
इसके अलावा, यह ग्रहण 'मृत्यु पंचक' के दौरान हुआ जो 6 सितंबर को शुरू हुआ और 10 सितंबर तक चलेगा। हिंदू धर्म में, पंचक को पांच दिनों की अवधि माना जाता है जिसे अशुभ माना जाता है। इस दौरान कोई भी शुभ कार्य जैसे शादी, गृह प्रवेश या मुंडन नहीं किया जाता।
- पितृ पक्ष: यह 15 दिनों की अवधि होती है जब लोग अपने पितरों (पूर्वजों) का श्राद्ध और तर्पण करते हैं ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले।
- चंद्र ग्रहण और धार्मिक मान्यता: धार्मिक ग्रंथों में ग्रहण को एक अशुभ घटना माना गया है। इस दौरान नकारात्मक ऊर्जा बढ़ जाती है, इसलिए पूजा-पाठ और शुभ कार्यों से बचने की सलाह दी जाती है।
ग्रहण के बाद के उपाय
चंद्र ग्रहण के समाप्त होने के बाद, घर और शरीर को शुद्ध करना आवश्यक माना गया है। इसके लिए:
स्नान और गंगाजल का छिड़काव: ग्रहण खत्म होने के बाद तुरंत स्नान करें और पूरे घर में गंगाजल का छिड़काव करें।
मूर्ति पूजा: देवी-देवताओं की मूर्तियों को गंगाजल से स्नान कराएं और उनकी पूजा करें।
मंत्र जाप और दान: ग्रहण के अशुभ प्रभाव को खत्म करने के लिए मंत्रों का जाप करें और गरीबों को अन्न, वस्त्र या अन्य वस्तुएं दान करें।
साल का दूसरा सूर्य ग्रहण
बता दें कि, 7 सितंबर को हुए इस चंद्र ग्रहण के बाद अब इसी महीने में साल का दूसरा और आखिरी सूर्य ग्रहण 21 सितंबर 2025 को लगने जा रहा है। हालांकि, यह सूर्य ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा, फिर भी ज्योतिषीय और वैज्ञानिक दृष्टि से इसका महत्व रहेगा।
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