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कल (30 मार्च) से चैत्र नवरात्रि की शुरुआत हो रही है, जो हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक मां शैलपुत्री, हिमालय की पुत्री हैं और हिमालय पर्वत को राजा माना जाता है। जिस तरह हिमालय पर्वत अपनी अडिगता और स्थिरता के लिए प्रसिद्ध है, उसी तरह भक्तों को भी अपने मन में भगवान के प्रति अडिग विश्वास और निष्ठा रखना चाहिए। यही कारण है कि नवरात्र के पहले दिन इनकी पूजा की जाती है, ताकि भक्तों में भी वही अडिग विश्वास और आस्था उत्पन्न हो सके, जो पर्वतों की तरह अचल और मजबूत हो।
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मां शैलपुत्री का जन्म
मां शैलपुत्री का वास्तविक नाम सती था। पौराणिक कथाओं के मुताबिक, एक बार प्रजापति दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें भगवान शिव को निमंत्रण नहीं भेजा। इस अपमान से दुखी होकर माता सती यज्ञ में शामिल होने के लिए अपने पति भगवान शिव की अनुमति चाहती थीं, लेकिन शिव ने इसे अस्वीकार किया।
बावजूद इसके, सती ने यज्ञ में जाने की जिद की, और जब वह यज्ञ में पहुंचीं, तो उन्हें अपमानित किया गया। इससे दुखी होकर सती ने यज्ञ की अग्नि में कूदकर आत्मदाह कर लिया। भगवान शिव को जब यह समाचार मिला, तो वह शोक में तांडव करने लगे। इसके बाद भगवान विष्णु ने सती के शरीर के 51 हिस्से किए और जहां-जहां उनके अंग गिरे, वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए। कामाख्या मंदिर में सती का योनि गिरा और इस स्थान को कामाख्या शक्तिपीठ कहा गया।
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मां का विवाह
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, मां शैलपुत्री का जन्म इस प्रकार हुआ कि वह हिमालय पर्वत के राजा की पुत्री बनीं। उन्होंने फिर भगवान शिव से विवाह किया और शिव की अर्धांगिनी बन गईं। उनके विवाह के साथ ही उनका स्थान देवी शक्ति के प्रमुख रूप में स्थापित हो गया। उनके विवाह को भी एक महत्वपूर्ण धार्मिक घटना माना जाता है, क्योंकि भगवान शिव और मां शैलपुत्री का मिलन सभी बाधाओं को समाप्त करने वाला और भक्तों के लिए आशीर्वाद देने वाला माना जाता है।
मां का रूप और पूजा
मां शैलपुत्री का रूप अत्यधिक दिव्य और शक्तिशाली है। उन्हें वृषभ (बैल) पर सवार होते हुए दिखाया जाता है, इसलिए उन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। वृषभ एक मजबूत और स्थिर वाहन है, जो इनकी अडिग और मजबूत शक्ति को दर्शाता है। इनके बाएं हाथ में कमल और दाएं हाथ में त्रिशूल रहता है। त्रिशूल शक्ति और संहार का प्रतीक है, जबकि कमल पवित्रता और मानसिक शांति का प्रतीक है। इनकी पूजा विशेष रूप से नवरात्रि के पहले दिन की जाती है।
इस दिन उनका पूजन भक्तों के जीवन में सुख-समृद्धि और आशीर्वाद की प्राप्ति का कारण बनता है। धार्मिक मान्यता के मुताबिक विशेष रूप से, यदि किसी के जीवन में वैवाहिक कष्ट हैं, तो इनकी पूजा करने से उन कष्टों से मुक्ति मिलती है। उनकी पूजा से मनुष्य को धन, सुख, समृद्धि, और मानसिक शांति मिलती है। काशी नगरी में उनका एक प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर है, जहां मां शैलपुत्री के दर्शन से भक्तों की मुरादें पूरी होती हैं।
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चैत्र नवरात्रि 2025 के घटस्थापना मुहूर्त
हिंदू पंचांग के मुताबिक चैत्र नवरात्रि की घटस्थापना मुहूर्त हैं
तिथि: 30 मार्च 2025, रविवार
मुहूर्त: 6:13 AM से 10:22 AM तक (यह समय 4 घंटे 8 मिनट का होता है)
यदि घटस्थापना इस समय नहीं हो पाती है, तो अभिजीत मुहूर्त का भी पालन किया जा सकता है:
अभिजीत मुहूर्त: 12:01 PM से 12:50 PM तक
इस समय कलश स्थापना और मां दुर्गा की पूजा करनी चाहिए, जिससे न केवल देवी की कृपा मिलती है, बल्कि जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है।
पूजा विधि
नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा विशेष रूप से की जाती है। उनकी पूजा विधि सरल और प्रभावशाली है। धार्मिक मान्यता के मुताबिक इनकी पूजा करने के लिए इन विधि का पालन करें:
- सबसे पहले पूजा के लिए एक स्वच्छ स्थान का चयन करें।
- यदि संभव हो तो, पूजा स्थान को पूर्व दिशा में रखें, क्योंकि यह दिशा शुभ मानी जाती है।
- वहां एक चौकी रखें और उस पर लाल कपड़ा बिछाएं।
- उसपर मां की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।
- मां की तस्वीर या मूर्ति का जल से अभिषेक करें।
- फिर घी का दीपक और अगरबत्ती और धूप जलाकर मां का स्वागत करें।
- अब मां के सामने फल, मिठाई और अन्य भोग चढ़ाएं।
- कमल का फूल और दूर्वा घास अर्पित करें।
- गाय के घी का दीपक जलाएं और भगवान शिव के नाम से पांच बार मंत्र का जाप करें।
- पूजा के समय ध्यान केंद्रित रखें, ध्यान और प्रार्थना करें।
- पूजा के समय ओं मां शैलपुत्रि महाक्रूरी महादेव महाक्रूरी मां सच्चिदानंद महाशक्ति मंत्र का जाप करें।
- अब अपने जीवन में शांति, सुख, समृद्धि और मानसिक शांति के लिए संकल्प लें।
- संकल्प में आपके मन की इच्छाएं भी हो सकती हैं।
- पूजा के अंत में मां की आरती गाएं और ध्यान से सुनें।
- फिर पूजा का भोग चढ़ाएं, और उसके बाद प्रसाद को भक्तों में बांटें।
- इस प्रकार नवरात्रि के पहले दिन मां की पूजा विधि को सही तरीके से करने से भक्तों को मानसिक शांति, सुख, समृद्धि, और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है।
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