BETUL. नर्मदा परिक्रमा की तर्ज पर मां ताप्ती परिक्रमा लगातार 17 साल से पूर्ण श्रद्धा के साथ जारी है। इस साल भी मकर संक्रांति यानी 15 जनवरी को दूसरे उद्गम स्थल सूरत से प्रारंभ होकर 34 दिन में 900 किमी का सफर तय करेगी। इसके बाद इस साल (2024) 17 फरवरी को परिक्रमा यात्रा का समापन मुलताई में होगा। हर बार यात्रा का सूरत ( गुजरात ) में अर्ध विश्राम होता है।
17 साल पहले का प्रयास... कारवां बनता गया, श्रद्धालु जुड़ते गए
मां ताप्ती परिक्रमा यात्रा 17 साल पहले एक छोटे से प्रयास से प्रारंभ हुई थी। जिसके बाद कारवां बनता गया और ताप्ती नदी की परिक्रमा के लिए यात्रा में साल दर साल श्रद्धालु जुड़ते गए। यात्रा के संरक्षक केके पांडे और परिक्रमा यात्रा समिति के अध्यक्ष जितेंद्र कपूर के अथक प्रयासों से प्रारंभ हुई। मां ताप्ती परिक्रमा का इतिहास स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जाएगा। यात्रा में आसपास के लोग पूरी श्रद्धा और भक्ति से शामिल हो रहे हैं। इसमें महिला, बच्चे, युवा और बुजुर्ग शामिल होते हैं। इस साल 17 फरवरी को यात्रा का समापन मुलताई में होने जा रहा है। इसकी तैयारियों जोरों पर चल रही हैं।
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इन धार्मिक स्थलों से होकर गुजरती है यात्रा
यह पदयात्रा गुजरात, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों से होते हुए डुमस की खाड़ी से चलकर मुलताई में यात्रा पूर्ण होती है। इस यात्रा के दौरान मां ताप्ती नदी के तट पर धार्मिक स्थल मुलताई, बारह ज्योर्तिलिंग, देवल ऋषि, सांडिल्य ऋषि, रामेश्वरम की दादाजी के शिष्यों की समाधि, संत मुक्ताबाई, संत चॉगदेव, माकंर्डेय, उदलक, परसुराम, गौतम ऋषि, दर्वासा ऋषि, श्रप्तसिगि देवी आदि स्थान मिलते हैं। जानकार ताप्ती नदी के तट- प्रकाशा ( नन्दुवार महाराष्ट्र ) में स्थित स्नान को दक्षिण काशी मानते हैं। कहा जाता है इसके जल में अस्थियां और बाल गल जाते हैं। नदी में स्नान करने से कुष्ठ रोग खत्म हो जाता है। ताप्ती नदी में अनेकों छोटी -बड़ी नदियों का मिलन होता है। ताप्ती का जन्म असाढ़ शुक्ल सप्तमी के दिन माना जाता है।
पदयात्रा में कोई भी व्यक्ति एक या अधिक दिन के लिए अथवा पूर्ण यात्रा में शामिल हो सकता है। इस यात्रा के लिए सवा माह वैराग्य धारण करना होता है।
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आप भी यात्रा में शामिल होना चाहते हैं तो यह जान लें...
यात्रा में कोई भी व्यक्ति शामिल हो सकता है। इसके लिए एक आवेदन फार्म भरना होता है। जिसमें पूर्ण जानकारी और यात्रा में किसी भी तरह की घटना- दुर्घटना की जिम्मेदारी लेने का संकल्प पत्र भरना होता है। यात्रा के दौरान घने जंगल, पहाड़ और दुर्गम रास्तों से होकर गुजरना होता है। नीचे फर्श पर सोना होता है। एक माह वैराग्य धारण करना होता है। इसमें ग्रामीणजन प्रसाद के रूप में जो भी भोजन देते हैं। उसे ग्रहण करना होता है। नशा आदि से दूर रहना होता है। क्रोध करने से भी बचना होता है। रात्रि में भजन-कीर्तन करना होता है।