/sootr/media/media_files/2025/10/06/valmiki-jayanti-2025-2025-10-06-16-53-06.jpg)
धर्म ज्योतिष न्यूज, Valmiki Jayanti 2025: भारतीय प्राचीन वैदिक काल के महान ऋषियों में महर्षि वाल्मीकि का स्थान सर्वोच्च है। उन्हें संस्कृत भाषा के आदि कवि होने का गौरव प्राप्त है और वे हिन्दुओं के आदि काव्य 'रामायण' के रचयिता के रूप में विश्वभर में प्रसिद्ध हैं।
उनका जीवन हमें यह अमूल्य सीख देता है कि कोई भी व्यक्ति अपने पाप कर्मों का प्रायश्चित और सच्ची निष्ठा से साधना करके सर्वोच्च ज्ञान प्राप्त कर सकता है और सद्मार्ग पर लौट सकता है। देशभर में हर वर्ष महर्षि वाल्मीकि जयंती को श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है।
इस अवसर पर वाल्मीकि मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और उनके जीवन पर आधारित झांकियां निकाली जाती हैं। शोभायात्राओं में उत्साह से राम भजन गाए जाते हैं, जो उनके प्रति गहरी श्रद्धा व्यक्त करते हैं। इस साल ये पर्व 7 अक्टूबर को मनाया जाएगा।
उत्पत्ति और प्राचेतस् नाम का रहस्य
पौराणिक कथा के मुताबिक, महर्षि वाल्मीकि (Valmiki Jayanti 2025) का जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नौवें पुत्र वरुण से हुआ था। वरुण का एक नाम प्रचेत भी है इसलिए उन्हें प्राचेतस् नाम से भी जाना जाता है। उनका नाम वाल्मीकि पड़ने के पीछे उनकी कठोर तपस्या की कहानी है।
वरुण-पुत्र एक बार इतने गहन ध्यान में लीन हो गए थे कि उनके शरीर को दीमकों ने पूरी तरह से ढंककर अपना घर बना लिया। दीमकों के इस घर को संस्कृत में 'वाल्मीकि' कहा जाता है।
जब वे अपनी साधना पूरी करके इससे बाहर निकले, तो उन्हें उसी नाम से पुकारा जाने लगा। यह नाम उनके कठोर तप और परम ज्ञानी होने का प्रतीक बन गया।
ये खबर भी पढ़ें...
रत्नाकर डाकू से महर्षि बनने की अद्भुत कथा
महर्षि वाल्मीकि (Valmiki Jayanti 2025) का पूर्व जीवन पाप और अज्ञान से भरा था। पौराणिक कथाएं के मुताबिक, महर्षि बनने से पहले वे रत्नाकर नामक एक डाकू थे, जो अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए लोगों को लूटा करते थे। एक बार रत्नाकर ने नारद मुनि को लूटना चाहा।
तब नारद जी ने उनसे पूछा कि, "तुम जिस परिवार के लिए इतने अपराध करते हो, क्या वे तुम्हारे पापों के भागीदार बनेंगे?" इस प्रश्न ने रत्नाकर को स्तब्ध कर दिया। जब रत्नाकर ने घर जाकर पूछा, तो परिवार के किसी भी सदस्य ने उसके पापों का भागीदार बनने से साफ मना कर दिया।
इस कड़वे सत्य को जानकर रत्नाकर ने नारद जी के चरण पकड़ लिए। नारद जी ने उन्हें राम-नाम के जप का उपदेश दिया। परंतु पाप कर्मों के कारण, रत्नाकर 'राम' नाम का शुद्ध उच्चारण नहीं कर पाते थे।
तब नारद जी ने उनसे 'मरा-मरा' जपने के लिए कहा। रत्नाकर ने नारद जी के निर्देशानुसार 'मरा-मरा' रटना शुरू किया, जो निरंतर जप से धीरे-धीरे 'राम' में बदल गया। इसी कठोर तपस्या के बल पर रत्नाकर डाकू ऋषि वाल्मीकि बन गए।
ये खबर भी पढ़ें...
जानिए मध्य प्रदेश के उन शहरों की हैरान करने वाली कहानी, जहां होती है रावण की पूजा
वाल्मीकि रामायण और आदि श्लोक का जन्म
वाल्मीकि रामायण को सनातन धर्म का आदि काव्य कहा जाता है। इसकी रचना का आधार एक करुणापूर्ण घटना बनी। एक बार महर्षि वाल्मीकि ने नदी किनारे क्रौंच पक्षी के एक जोड़े को देखा।
तभी एक व्याध ने बाण चलाकर नर पक्षी को मार दिया। नर पक्षी की मृत्यु पर मादा पक्षी का करुण विलाप सुनकर महर्षि का हृदय करुणा से भर गया। उनके मुख से अनायास ही एक संस्कृत श्लोक फूट पड़ा:
मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्।।
हे निषाद! त्वं शाश्वतीः समाः प्रतिष्ठां मा गमः।
यतः त्वं काममोहितं क्रौंच-मिथुनात् एकम् अवधीः।
(अर्थात: हे निषाद, तुम्हें कभी शांति नहीं मिलेगी, क्योंकि तुमने प्रेम में लीन क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक का वध कर दिया है।)
वाल्मीकि ने इस छंदबद्ध श्लोक को ही महाकाव्य रामायण का आधार माना और इसके बाद भगवान राम के प्रेम, त्याग और धर्म की गाथा लिखते हुए संपूर्ण रामायण की रचना की। यह पर्व हमें जीवन में ज्ञान, तप और सच्ची निष्ठा के महत्व को समझने का संदेश देता है।
डिस्क्लेमर: इस आर्टिकल में दी गई जानकारी पूरी तरह से सही या सटीक होने का हम कोई दावा नहीं करते हैं। ज्यादा और सही डिटेल्स के लिए, हमेशा उस फील्ड के एक्सपर्ट की सलाह जरूर लें।
ये खबर भी पढ़ें...
इस बार दिवाली 2025 पर 20 और 21 का चक्कर, जानें लक्ष्मी पूजा का सबसे श्रेष्ठ मुहूर्त और सही तारीख
दीवाली, छठ और तुलसी विवाह कब? जानें कार्तिक मास 2025 के 10 सबसे बड़े पर्वों की लिस्ट और पूजा विधि